शिव केवल महाशक्ति के द्वारा ही प्रकाशित होते हैं, अन्यथा कभी नहीं। गहरी समाधि में लीन तपस्वी भी महाशक्ति के प्रकाश के बिना शिव को नहीं पा सकते। शक्ति को जानने के लिए इनकी छः भागों में परिकल्पना की गई है। ये षट् शक्ति हैं- 1. पराशक्ति 2. ज्ञानशक्ति 3. इच्छाशक्ति 4. क्रियाशक्ति 5. कुण्डलिनीशक्ति और 6. मातृका शक्ति ।
1. पराशक्ति:- यह परम ज्योतिरूपा है तथा सब शक्तियों का मूल और आधार है।
2. ज्ञानशक्ति:- यह ज्ञानमूलक होने के कारण सब प्रकार की विद्याओं का आधार है।
3. इच्छाशक्ति:- इसके द्वारा शरीर में लहरें उत्पन्न होती हैं, जिससे कर्मेन्द्रियाँ इच्छित कार्य करने के लिए सञ्चालित होती हैं।
मैं शिव की शक्ति शिवा हूँ >>
4. क्रियाशक्ति:- यह आभ्यन्तरिक विज्ञानशक्ति है। इसके द्वारा सात्विक इच्छाशक्ति कार्यरूप में परिणत होकर व्यक्त फल उत्पन्न करती हैं। योगियों की सिद्धियाँ इन्हीं सात्विक और आध्यात्मिक इच्छा एवं क्रियाशक्ति के द्वारा व्यक्त होती है।
5. कुण्डलिनीशक्ति:- प्रारब्ध कर्मानुसार यही शक्ति बाह्याभ्यन्तर में समानता सम्पादित करती है। विद्युत और आतंरिक तेज भी इसीके रूपान्तर हैं। इसीके कारण पुनर्जन्म होता है। यह जीवनशक्ति का मूल है, जिनके द्वारा इन्द्रियाँ कार्य करती हैं। इसी शक्ति के द्वारा मन भी संचालित होता है।
6. मातृका शक्ति:- इसी शक्ति की सहायता से इच्छाशक्ति अथवा क्रियाशक्ति फल देती है। यह अक्षर, शब्द, वाक्य, यथार्थ गानविद्या की शक्ति है। मन्त्र शास्त्र के मन्त्रों का प्रभाव इसी शक्ति पर निर्भर करता है। संसार के सब नाम और रूप इस शक्ति के रूपान्तर हैं। मन्त्र सिद्ध हो जाने पर यह शक्ति उस पवित्रात्मा का उद्धार माता की भाँति करती है।
Jai Maa Adishakti.. Jai Para Shakti… Well Done about six types of Shakti as Para shakti, Ichha shakti, Gyan shakti, Kriya shakti, Kundlini Shakti and Matrika Shakti