खलकाली / खलकाय (Khalkali / Khalkay Mata) माता का मन्दिर राजस्थान के दौसा जिले (Dausa) में नांगल (Nangal) के पास लाहड़ी का बास (Lahri ka Bas) में एक खेत में स्थित है। मन्दिर में माताजी की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर के भीतर प्रवेश करते ही द्वार के पास भैरव की प्रतिमा है। मन्दिर के उत्तरी द्वार के बाहर एक चबूतरे पर सती माता की प्रतिमा स्थापित है। खलकाय माता मीणा (Meena Samaj) समाज में डोबवाल (Dobwal) गोत्र की कुलदेवी है।
डॉ रघुनाथ प्रसाद तिवाड़ी ने अपनी पुस्तक ”मीणा समाज की कुलदेवियाँ” में खलकाई माता का विवरण इस प्रकार दिया है -” खलकाई माता आदिशक्ति का स्वरूप है। यह प्राणी मात्र का कष्ट दूर करती है। (खलक-प्राणी मात्र,काई-दुःख दूर करना) भक्त माता की भक्ति से मनोवांछित दुर्लभतम वस्तु भी प्राप्त कर सकते हैं। इसकी आराधना से मनुष्य मोक्ष तक की प्राप्ति कर सकता है। आवश्यकता है माता के श्री चरणों में प्रेम पूर्वक भक्ति की।
खलकाई माता का मंदिर दौसा से लालसोट रोड पर 13 की.मी. राहु वास होते हुए लाहड़ी का वास के पास डोब (डोभ) ग्राम में अवस्थित है। माता का मंदिर हजारों वर्ष पूर्व का बताया जाता है। माता की पूजा पहले मीना समाज द्वारा की जाती थी किन्तु अब माता की पूजा-अर्चना ब्राह्मण समाज के व्यक्ति द्वारा की जाती है।
माता के मंदिर के विकास हेतु तीन बीघा जमीन तय की गई है। पुजारी के योग क्षेम की व्यवस्था हेतु मीना समाज के प्रत्येक परिवार से प्रतिवर्ष 10 किलो अनाज माता के भेंट स्वरूप चढ़ाया जाता है। माता के मंदिर के पास पहले बड़ का विशाल वृक्ष था, अब खेजड़े का वृक्ष है। माता के सात्विक भोग अर्पित किया जाता है। माता के बलि चढाने की प्रथा अब बंद हो चुकी है।
माता के गर्भगृह के ऊपर गुम्बद है। मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 15 वर्ष पूर्व मीणा समाज के डोब (डोभ) वाल गोत्र के मीणाओं द्वारा कराया गया था। मंदिर के सुव्यवस्थित संचालन हेतु एक कमेटी “खलकाई माता सेवा समिति” डोब (डोभ) का गठन किता गया है।
डोबवाल वंश का कथानक इस प्रकार बताया जाता है कि बेनपाल के उदयपाल हुए। उदयपाल के राव तथा महाराव दो लड़के हुए। महाराव ने गढ़ बयाना से आकर पछवाड़े में गाँव डोब (डोभ) बसाया। उनकी संतान डोब निवासी हुए व डोबवाल गोत्र के भी कहलाये। डोबवाल गोत्र के भी मीणों का विकास डोभ ग्राम से ही माना जाता है। यहाँ से इस ग्राम के डोभवाल मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के अनेकानेक स्थानों पर बस गये। वे आज भी अपनी कुलदेवी खलकाई माता के यहाँ आते है। माता का मंदिर महाराव के डोभ ग्राम बसाने के पूर्व में भी था।
इसी डोभवाल परिवार में हड़पो नामक (राजसी का बेटा) हुआ जो बाद में मेवासी हो गया – ग्राम ढोलावास (वि.स. 1600) के सम्बन्ध में माता के चमत्कार का एक किस्सा इस प्रकार बताया जाता है-
हड़पा डोभवाल व राव वादाराव (व्याडवाला) की वासना (गाँव) में बरात जानी थी। वहाँ राव वादा रुपये व पैसे बाँटने की चर्चा से चिन्तित था (दूल्हे पक्ष द्वारा लाग के नाम से रूपये बाँटने की प्रथा थी जो आज भी कई स्थानों पर प्रचलित है)। हड़पा को माता खलकाई ने स्वप्न में दृष्टांत दिया कि हे! भक्त चिन्तित मत हो, कल बंजारे इधर से जावेंगे तथा रात्रि विश्राम मेरे मंदिर के पास ही करेंगे। उसमे अमुक स्थान पर मोहरों की थैली होगी वह उतार लेना तथा मोहरे बाँट देना – आज भी कहावत है –
पहले तो ढोल बाज्या हड़पा डोभवाल का।
पाछे बाजा बाज्या वादा राव का ||
हड़पा मेवासी के सम्बन्ध में निम्न दोहा भी प्रसिद्ध है-
हड़पा ने हेवड़ छड़ी,गारथ राख्या गौड़। मुखां सरावै मालदे छै राठौङे ||
खलकाई माता डोभवाल मीणों (Dobhwal Meena) की कुलदेवी है।
यह वंश यदुकुल से उत्पन्न है। ये चन्द्रवंशी क्षत्रिय हैं और इनका उद्गम मथुरा,बयाना,तिमनगढ़ से है। इनकी कुल देवियाँ अन्जनी माता तथा खलगाई (खलकाई) माता है।”
Khalkali Mata ki Jai… Jai Maa Khalkay
Jai mata ki