सारस्वत ब्राह्मण भारत की पश्चिमी तटीय क्षेत्रों, जैसे महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्यों में वस्तुनिष्ठ रूप से निवास करने वाले ब्राह्मणों की एक समुदाय हैं। वे प्राचीन सरस्वती नदी घाटी सभ्यता के वंशज माने जाते हैं और भारत की सबसे पुरानी ब्राह्मण समुदायों में से एक हैं।
सारस्वत ब्राह्मण भूगोलीय स्थान, व्यवसाय और रीति-रिवाजों के आधार पर कई उपजातियों और उप-समूहों में विभाजित हैं। कुछ प्रमुख उप-जातियों में गौड़ सारस्वत ब्राह्मण, चित्रपुर सारस्वत ब्राह्मण, राजापुर सारस्वत ब्राह्मण और कुड़ळदेशकर गौड़ ब्राह्मण शामिल हैं।
सारस्वत ब्राह्मण समाज भारत के हिन्दू ब्राह्मण समाज का समुदाय है जो अपनी उत्पत्ति ऋग्वैदिक सरस्वती नदी के तट पर मानते हैं।कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में, सारस्वत ब्राह्मणों का उल्लेख विंध्य के उत्तर में रहने वाले पंचगौड़ ब्राह्मण समुदायों में से एक के रूप में किया गया है। इस समाज के अतिरिक्त पंचगौड़ ब्राह्मणों में अन्य चार ब्राह्मण समाज हैं -गौड़, कान्यकुब्ज, मैथिल और उत्कल।
सारस्वत ब्राह्मणों का इतिहास
सारस्वत ब्राह्मणों का इतिहास वेदिक काल से शुरू होता है, जब उन्हें ऋषि या दर्शक के रूप में जाना जाता था। वे हिंदू धर्म के प्राचीन शास्त्र वेदों के ज्ञान के लिए उच्च सम्मान पाते थे और धार्मिक अनुष्ठान और रीति-रिवाजों का जिम्मा था।
सारस्वत ब्राह्मणों का मूल निवास स्थान सरस्वती नदी के घाटी था, जहां से वे पश्चिमी भारत की तटीय क्षेत्रों में आए और एक प्रतिष्ठित समुदाय के रूप में स्थापित हुए। इनकी पूर्ण विस्तार की तारीख स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनके पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में वास करने का अनुमान 2000 BCE के आसपास लगाया जाता है। भारतीय सभ्यता के विकास में सारस्वत ब्राह्मणों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान हुआ। वे कला, साहित्य और संस्कृति के प्रोत्साहक थे और भारतीय सभ्यता के विकास में अहम भूमिका निभाते रहे। सारस्वत ब्राह्मणों को इतिहास के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें विदेशी शासकों द्वारा आक्रमण और पुर्तगाली शासनकाल में उन्हें उत्पीड़ित किया जाता था। इन चुनौतियों के बावजूद, वे अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित रखने में सक्षम रहे और आज भी एक समूह के रूप में सफलतापूर्वक आत्मनिर्भर हैं।
सारस्वत ब्राह्मण समाज की उत्पत्ति :
सारस्वत समाज का आदिपुरुष सरस जी महाराज को माना जाता है। इनका जन्म लुद्रजी की सातवी पीढ़ी में हुआ था। लुद्रजी जैसलमेर में लुद्रवा रियासत के राजा जयसिंह के मार्गदर्शक थे। मान्यता है कि वि.स. 933 में आषाढ़ मास कीअमावस्या को सूर्य ग्रहण का संयोग बना। इस दिन राजा ने लुद्रजी को दान देना चाहा तो उन्होंने दान लेने से मना कर दिया। परिणामस्वरूप राजा ने लुद्रजी को अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। लुद्रजी ने वि.स. 934 में पौड़ी गढ़वाल के पास लुद्रगढ़ बसाया और वहीं निवास करने लगे | इन्ही लुद्रजी की सातवीं पीढ़ी में सरस जी का जन्म हुआ। इन्हीं सरसजी के वंशज सारस्वत कहलाये।
दश प्रकार के ब्राह्मणों में “सारस्वत ब्राह्मण, जो पंजाब प्रदेश से उत्पन्न हुए हैं, उनकी उत्पत्ति का उल्लेख भी प्रसिद्ध है। जैसे अन्य ब्राह्मण विभिन्न प्रदेशों के नामों से जाने जाते हैं, वैसे ही सरस्वती नदी के तट पर निवास करने वाले ब्राह्मण ‘सारस्वत’ कहलाते हैं (वायु पुराण अ. 4 खं. 2) में लिखा है-
जनयामास पुत्रौ द्वौ सुकन्यायाश्च भार्गवः । आत्मवानं दधीचं च तावुभौ साधुसम्मतौ ॥
सारस्वतः सरस्वत्यां दधीचाच्चोपपद्यते । भारुकच्छाः समाहेयाः सह सारस्वतैस्तथा ॥
(मत्स्यपु. अ. 114 श्लो. 50 )
जब महर्षि भृगु की पत्नी पुलोम्न की पुत्री पौलोमी का अपहरण राक्षस ने किया, तब उसके आठ महीने के गर्भ से च्यवन नामक बालक का जन्म हुआ, जिसके तेज से वह राक्षस भस्म हो गया। च्यवन ऋषि की दूसरी पत्नी, राजा शर्याति की कन्या से दधीच ऋषि का जन्म हुआ। उनके पुत्र सारस्वत ब्राह्मण सरस्वती नदी के तट पर उत्पन्न हुए, जो दक्षिण दिशा के बासक देश में रहते थे। अन्य सारस्वत ब्राह्मण नर्मदा नदी के समीप भारुकच्छ, समाहेय और विन्ध्याचल के समीप के देशों में निवास करते थे। श्रीहर्षचरित्र में वर्णित है कि एक बार ब्रह्मलोक में दुर्वासा ऋषि के मुख से अशुद्ध शब्द निकला, जिस पर सरस्वती देवी ने हंसी। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दिया कि वह मर्त्यलोक में मानवी बनेंगी। तब सरस्वती देवी मानवी बनकर दधीच ऋषि से विवाहित हुईं और उनकी संतान सारस्वत ब्राह्मण के रूप में प्रसिद्ध हुईं। स्कन्द उपपुराण के हिंगुलाद्रिखण्ड की उत्तर संहिता के अनुसार, सिन्धु देश में हिंगुल तीर्थ के समीप दधीच ऋषि का आश्रम था, जहाँ सिन्धु नदी और सागर का संगम है और अनेक तीर्थ स्थित हैं। एक समय जब पृथ्वी पर वर्षा नहीं हुई, तब देवताओं ने सरस्वती नदी के समीप सारस्वत तीर्थ में यज्ञ किया, जिसमें सौत्रामणि अमृत को एक कलश में रखा गया और सरस्वती देवी की स्तुति की गई। उस समय सरस्वती देवी ने प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देकर वर मांगने को कहा। तब देवता बोले-
भिषजोर्हंसगागर्भात्पुत्रो भवति निश्चितम् ।
कि अश्विनी कुमारों के वीर्य से उत्पन्न पुत्र से वर्षा होगी, तब सरस्वती ने लज्जा के साथ कहा कि यदि ब्रह्मा जी अपना भाग और बल अश्विनी कुमारों को दें, तो ऐसा संभव है। इस पर सहमति बनने पर अश्विनी कुमारों ने सरस्वती के साथ संगम किया, और सरस्वती गर्भवती हुईं। किन्तु छठे महीने में गर्भपात हो गया, जिससे देवताओं को चिंता हुई। ब्रह्मा जी ने उस गर्भ को अपने हाथों में लिया और सौत्रामणि कलश में रखा, फिर सरस्वती को दिया। सरस्वती ने जब जल में उस गर्भ को देखा, तो उसमें दो रूप दिखाई दिए। उन्होंने सोचा कि एक रूप देवताओं को देंगी और एक को वे स्वयं रखेंगी। सौ वर्षों में वह गर्भ पुष्ट हुआ, और जब सरस्वती ने तटस्थ भाव से पुत्र को देखा, तो वह लाल रंग का हो गया, जिसे वेदों में लोहितेन्द्र के नाम से जाना जाता है। देवताओं ने वर्षा के लिए उसे स्वर्ग में ले गए।”
मन्नाम्नाप्यपरः पुत्रः सारस्वत दधीचकः ।
तब देवी ने कहा यह दूसरा पुत्र मेरे नाम से सारस्वत दधीच कहावेगा, ब्रह्माजी ने भी वरदान दिया है कि-
अयं पुत्रो दधीचस्तु सारस्वतकुलाधिपः । भविता मृत्युलोके तु ऋषीणां कुलपालकः ॥
यह सारस्वत वंश का संस्थापक होगा, ऋषियों का संरक्षक होगा। वेदमती आतूकर्ण्य ऋषि की पुत्री से दधीचि का विवाह हुआ, जिसके बाद दधीचि की संतानें काफी हुईं। उनमें से कुछ प्रमुखों का यहाँ वर्णन है – ब्रह्म, दालभ्य, जैभिनि, ताण्डव, दिकपाल, दक्ष, प्राची, कण्व, दाक्षायण, गोपाल, शंख, पाल, शाकिनी, शांभव, नंदी, आदी, समलाशरैं, शक्ति, पातंजलि, पालाशी, गोमय, दीपदेव, निष्णुक, रुद्र, क्षेत्रपाल, सुसिद्ध, अपर, पर, धर्म, नारायण, तिमिर, धमिण, तैत्तिर, दुदुर्र, जमदग्नि, लगत, कपालि, सभ्यक, सुदर्श, शिशुमारक, च्यवन, शुकक, चन्द्र, सुचन्द्र, मानद, आकन्दक, नन्द, मानक, मानसा, चंपक, व्यास, पिपप्लाद, आघातुक, देवल, घृतकौश्य, सूर्य, मर्क, अज, भैरव, कृष्णात्रि, विश्वपालक, नरपाल, तुम्बरु, तुलसि, वामदेव, वामनाकारक, ब्रह्मचारी, त्रह, भैरव, नरकपालक, बक, दाल्भ्य, सुषुव, कपि – ये अट्ठासी ऋषि हुए। सो ऋषि गोत्रों के प्रवर जानना । गांग और सांकृति ये क्षत्रियों के गोत्र हैं, अंगिस गोत्र भी है। ब्रह्मक्षत्रिय का दायाद सुहोता हुआ, इसका ज्येष्ठ पुत्र सारस्वत कुल में हुआ। दधीचि की मालिनी, केशनी, धूमिनी – तीन कन्याएँ हुईं, यह वंशानुवंश गोत्र बहुत चला।
सारस्वतकुलों के अवटंक आदि का वर्णन पञ्चाजाति । आढ्यकुल अढाई घर ।
- उपनाम गोत्र प्रवर वेदपूर्वशब्द 1 कुमडिये जामदग्न्य भार्गव च्यवन वत्स । आप्नवान् और्व जामदग्न्य यजु. कुमारीयवाकुमारोपासक
- जैतली गौतमवात्स्य। अंगिरस गौतम औसनस् 3 जैत अर्थात् कुलपृक्ष जयन्ती से
- झिंगण भारद्वाज अंगिरस बार्हस्पत्य झगण |
- तिक्खे पाराशर वशिष्ठ शक्ति तुत्सू पराशर 3
- मोहले सोमस्तम्भ काश्यप अवत्सार नैध्रुव मुशल ।
चार घर
कुमडिये, जेतली, झिंगण, तिक्खे, मोहले यह चार घर भी कहाते हैं।
तीसरी श्रेणी
तुमडिये, (कुमडिये) पेतली, (जेतली) पिगण (झिंगण) पिक्ख (आंडले तिक्खे) बोहले (मोहले) गोत्रादि पूर्ववत् यह चार घरों के नामान्तर किसी कारण कुछ न्यूनता लिये हैं।
अन्य उत्तम श्रेणी
” वग्गे, प्रभाकर, परदल, श्यामेंपोतरे, भठूरिये, दत्त, चूर्णा, भोजेपोतरे, कालिये, झिब्बर, अर्णा, धन्न, पोतरे, मालिये, वाली, सरदल, शेतपाल, कपूरिये, वैद्य ( वारी), खेतुपोतरे, नेवले, लव, कलिये, सिंधुपोतरे, रावडे, मुह्याल, प्रभाकर, वदेपोतरे, चूनीवालम्ब, मोहन, लखनपाल, द्रुवडे, सर्वलिये, ” ऐरी, गैधर, पंढित, पंडित, नाम वखतलाडली 1. ( अष्टवंश) पाठक मन्नन शामादासी 2. सण्ड ठंडे भवी पुश्रत 3. पाठक गडूरे पत्ती भारद्वाजी 4. कुरल ढौंकच चित्रचोर काठपाल 5. भारद्वाजी छकड़े शारद घोरके 6. जोशी अजपोत पुकरणे 7. शोरी सज्जरेपुंज मनोत सिन्धुपाल 8. तीवाड़ी वन्दू 9. मरूढ न्यासी ।
वामन जाई
अग्निहोत्री, अग्रफक्क, आचारज, अल, अंगल, आरी, ईसर, ईसराज, ऋषि (रिखि), ऐरे, ओगे, कपाल, कुन्दि, कलन्द, कुसरित, कपाले, कुण्ड, कण्ड्यारे, कलि, काई, पल्हण, कर्दम, करडम, किरार, कुतवाल, कुररपाल, कलस, कुच्छी, कैजर, कोटपाल, कारडगे, काठपाल, खटवंश, खती, खोरे, खिन्दडिये, गंगांहर, गांदर, गांधे, गजेसू, गन्दे, गांधी, गुटरे, घोटके, चनन, चित्रचोर, चुनी, घकपालिये, चवभे, चितचोट, चन्दन, चूडामन, जालप, चूनी, चूखन, छिव्वे, जालपोत, जोतशी, जक्ली, जैठके, जयचन्द, जोति, जलप, जसक, डिडूडि, जठरे, जचरे, झमाण, बेले, टाड, टगले, टनिक, तिवाड़, डगले, ढंगवाल, ठंडे, तिवाड़ी, त्रिपाणे, तेजपाल, तिनूनी, तल्लण, तोले, तोते, तिनमणी, दंगबल, तगाले, तंगणावते, दगाले, धायी, दिद्रिये, दवेसर, द्रुबारे, नारद, धम्मी, धिन्दे, नाहर, प्रभाकर, नाभ, नाद, पराशर । पाधे (पांधे), पंजन, पाल, पुंज, पधि, पलतू, पुजे, पट्टू, परींजे, पंडे, पांडे, पिपर, पन्व, पठल्ल, पठरू, पुच्छरतन, ब्रह्मी, वाहोये, ब्रह्मसुकुल, बटूरे, विजराये, विवडे, बन्दू, भाखरखोरे, भारखारी, भारद्वाजी, भारथे, भिंडे, भूत, भणोत, भटरे, भाजी, भम्बी, भोग, भागी, भटेर, मज्जू, मोहन, मकावर, मन्दार, मरुद, मसोदरे, मन्दहर, मैत्र, मदरखम्भ, मेडू, मेहद, मच्छ, महे, मुसतल, मण्डहर, मधरे, यम्य, रतनपाल, रूपाल, रनदेह, रति, रमताल, रतनिये, रूथडे, रांगडे, लखनपाल, लालडिये, लक्कडफाढ, लालीबच्चे, लुद्र, लटूटू, लाहद, लुघ, विनायक, वासुदेव, वशिष्ठ, विरद, व्यास, बटेपोतरे, बिरार, श्रीखर, श्रीडठेवासुदेव, शेतपाल, शालिवाहन, सीढी, संगद, संधि, सूरन, सूदन, सहजपाल, सनखोतरे, सोयरी, सणवल, सैली, संगर, सांग, सुन्दर, सट्टी, हरद, हांसले, सधीर, हरिये, हरी, हंसतीर ।
दत्तारपुर होशियारपुर के सारस्वतों की उत्तम श्रेणी ।
खजूरिये, दुबे, डोगरे, पाधे, घोहसनिये, पाधे, खिंदडिये, पाधे, ढोलवालवैये, पाधे, ददिये, लखनपाल, सरमायी ।
दूसरी श्रेणी
अल, कमाहटिये, कुटल्लैडिये, कालिये, गदोत्तरे, चपड़ोहिये, चिवभे, चंधियल, चिरणोल, छकोतर, जलरेय्ये, जुआल, झुम्मुटियार, झोल, स्वाहाये, डोसे, ताक, ताडी, थानिक, दगढ़, दल्लोहल्लिये, पटडू, पन्याल, पंडित, बाधले, भरधियाल, भटोल, भसूल, भदोये, भटोहये, भटरे, मकडे, मुचले, मदोदे, मिश्र, मैते, मिरट, मुकाती, रजोहद,
लाहद, लाठ, लई, बंटडे, श्रीधर, शारद, समनोल, सेल, संड । जम्बूजसरोटा प्रान्त की उत्तम श्रेणी मगोतरे, ढप्पे, वंभवाल, सपोलिये, पाधे, केसर, दवे, मोहन, खजूरेप्रोहत, नाथ, लब, छिब्बर, वडयाल, लट, वैद्य, वालिये, जम्बुआलपंडित ।
मध्यम श्रेणी
अधोत्रे, पराशर, मिश्र, सप्नोत्रे, कटोत्रे, बड़, मस्रोत्रे, सुधालिये, कश्मीरी, पंडित, वनालपाधे, रैणे, सुदाथिये, केर्णिये, पंडित, वनगोत्रे, ललोत्रे, पन्धोत्रे, टगोत्रे, भगोत्रे, विल्हानोच, महिते, भरैड, सतोत्रे, पुरोच ।
तृतीय श्रेणी
उपाधे, गराडिये, धरिऔच, भरंगोल, उदिहल, घोडे, धमानिये, भलोच, उत्रियाल, धम्मे, नभोत्रे, भैनखरे, कलंपरी, चरगांट, पटल, भूरिये, किरले, चन्दन, पिन्धड, भूत, कुन्दन, चकोत्रे, पृथ्वीपाल, मुण्डे, कीडे, छछियाले, पलाधू, मरोवे, कमनिये, जलोत्रे, पंगे, मगडोल, कम्बो, जखोत्रे, फनफण, मनसोत्रे, कुडिदव्ब, जरड, वगनाछाल, मगदियालिये, कर्नाठिये, जरंघाल, वसमोत्रे, माथर, कठियालू, जड, वरात, महीजिये, कानूनगो, जम्बे, वडकुलिये, मधोत्रे, कालिये, ऊनगोत्रे, वाल्ली, मखोत्र, कफनखो, झिन्धड, वनोत्रे, मच्छर, खडोत्रे, झलू, ब्रह्मिये, यन्त्रधारी, खगोत्रे, झावडू, वरगोत्रे, रजूलिये, खिदडिये, पाधे, झाफाडू, वच्छल, रजूनिये, गौडपुरोहित, ठकुरेपुरोहित, वटयालिये, रतनपाल, मशोच, ढडोरिच, वधोत्र, रोद, गुहलिवे, तिरपद, वहल, रेडाथिये, गुड्डे, यमनोत्रे, विसगोत्रे, लाढञ्चन, गोकुलियेगुसाई, थन्मथ, बुधार, लग्वनपाल, गल्हन, दव्व, वणदो, लबादे, गन्धरगाल, दुहाल, भूरे, लभोत्रे, शशगोत्रे, सांगडे, सशेच, सेनहसन, सूदन, सुर्नचाल, सरमायी, सुहण्डिये, सुक्खे, सिरखडिये, सुथडे, सोल्हे, संगडोल, सलूर्ण, सिगाड, सागुणिये, सणाहोच।
कांगड़े के पहाड़ी सारस्वतों की प्रथम श्रेणी
आचारिये, ओसदि, कसदु, दीक्षित, नाग, पण्डित, कश्मीरी, पञ्चकर्ण, मिश्रकश्मीरी, मदिहारी, राइणे, सोत्रि, वेदवे ।
द्वितीय श्रेणी
खजूरे, सुरवध, गलवढ, गुटरे, चिथू, चलिवाले, छुतवन, डुम्रे, डांगमार, डेहैडी, धामुडू, पनयालू, पम्बर, पीतअड़टोटरोटिये, पाधेसरोज, पाधेखजूवू, पाधेमहिते, मनवाल, मंगरूडिये, मैते, रक्खे, रम्बे, विष्टप्रोत ।
कुमडिये सारस्वतों का शुक्ल यजुर्वेद, माध्यन्दिनी शाखा, उपवेद धनुर्वेद, सूत्र कात्यायन, सारस्वत देश, सरस्वती नदी, बिल्व वृक्ष, कुलेश बाबा जयजय कुमार, पूज्य कार्तिकेय, औशनस तीर्थ है। जेतली अंगिरा गण में गौतमवंश की औशनस शाखा में कहे जाते हैं, (मथुरावृत्ति श्रीगोकर्णेश्वर मन्दिरस्थ महामहेश आत्मकुलदेवता) पञ्चाजातीय कुलदेवतार्चनपद्धति में लिखा है यह मथुराप्रान्त के निवासी रहे, नीलरुद्र इनके उपास्यदेव हैं, जयन्तीशमीवृक्ष का इनके यहाँ पूजन होता है इसको जंड भी कहते हैं, इस कारण इसके उत्सव को इस समय कहा जाता है। झिंगणसारस्वत परमर्षि अंगिरा की भारद्वाजशाखा में हैं, इनका वेद शु.यजु. है, झ नाम बृहस्पति का है झगण भारद्वाज ही झिंगण नाम से प्रसिद्ध हैं, मांध्यन्दिनी शाखा है, कुलदेव की भाटियानी चण्डिका भवानी, भह गौतम नाई मेढा धर्म्मा गौतमभइ ही, असीरपूरीनां, रुवावी जवारी, सन्ने और टंडन यजमान, सत्तीदी निकास, झिंगण भारद्वाजों में वावा पैडी के थंभे में सर्व ज्येष्ठ अत्तू, मध्यम नत्थू और कनिष्ठ सहोदर। गौतम से अत्तूपोतरे, नत्थू पोत्रे और गौतम पोत्रे यह तीन शाखा उत्पन्न हुईं, गुसाई वावे और व्यास नाम से इनकी प्रसिद्धि हुई । इनकी कुलदेवी की मूर्त्ति भट्ट के घर रहती है डाउड देव सर्पमूर्त्ति का पूजन होता है, कहते हैं इस कुल में किसी स्त्री के गर्भ से सर्प जन्मा था और वह शान्तभाव से उसी घर में रहता था, एक दिन नई आई हुई वधू ने दुअञ्चिया चूल्हे में आग जला दी और वह सर्प भस्म हो गया। तब से इनमें दुअंचिया चूल्हा नहीं बनता, सर्प की पूजा होती है, नत्थूपोत्रे झिंगणों में विहारी गुसाई के पुत्र मिश्र मूलचन्द जी से कक्कांडवाले झिंगणों की वंशावली का आरम्भ होता है, मात कोरी और बिबा चन्द्रतपा इनके कुलपूज्य हैं। तिक्खे महर्षि वशिष्ठ के कुलप्रसूत हैं, सम्भव है तृत्सू शब्द जो वसिष्ठगणों के सम्बन्ध से ऋग्वेद सप्तम मण्डल के ( उदद्यामिवेत्…) तृसुभ्यो अकृणो दुलोकम्) मन्त्र में आता है उससे बिगड़कर तिक्खा शब्द बना हो और तीखा स्वभाव इनका रहा हो, इस वंश में वट के सात पत्रों को सालू के टुकड़े लपेट कर शुभ कार्य में पूजन करते हैं। वटवृक्ष ही इनका कुलेश, वीर माता कुलपूज्या है, वटवृक्ष शास्त्रों में शंकररूप से माना है ( रुद्ररूपी वटस्तद्वत् ) पद्मपु. इनके यजमान तालवाड़ हैं, इनके गोत्रादि पूर्वलिखित अनुसार हैं। इनकी शिखा दक्षिण तुर्क भट्ट, तामसी नाई, ततिला मिरासी, तेजपाल असारत धर्म विदित नहीं। उज्जे दुज्जे पढ़ावन्दे आटुडे आदि इनके कुलों की अल्ल हैं।
मोहले यह पञ्चाजातिम तट से मिलाये गये हैं जब से पम्बू इस जाति से पृथक् किये गये हैं। कहते हैं कि पंचाजाति की पंचायत के समय जब यह विचार हो रहा था कि पम्बुओं को निकालकर किसको ग्रहण करें, उस समय कोठे से एक मूसल अकस्मात् गिर पड़ा, पंचों ने इस घटना को दैवी समझकर मोहलों को पंचा जाति में ग्रहण किया। कारण कि पंजाबी भाषा में मूसल को मोहला कहते हैं, मोहलों का सोमस्तम्व गोत्र है और स्तम्बशब्द जिसके अन्त में आता है उसको द्वामुष्यायण वा दो कुलों की सन्तति में गिना जाता है। पुत्रिका पुत्र कृत्रिम दत्तक आदि द्वामुष्यायण कहे जाते हैं। प्रवर इनके लिख दिये हैं, यह भरद्वाज नहीं हैं इन मोहले सारस्वतों के यजमान शैगल खत्री हैं यह शैगल ही छागल्य हैं इसमें सन्देह नहीं । इनके तीन थम्भे हैं—दिलवालिये, सिरन्दिये और गुजरातिये | परन्तु यह देशानुसार नामान्तर हैं थंभे नहीं हैं, गुदराल, मिरासी, चण्डी दास भट्ट और मेढा नाई, इनकी वृत्ति कमाते हैं ।
यद्यपि पम्बू इस समय पञ्चाजाति में सम्मिलित नहीं हैं परन्तु इनका उपमन्यु गोत्र हैं, चौंजाती के कुलीन कपूर क्षत्रियों की यजमानी वृत्ति भी इनके हाथ से जाती रही है। पम्बू संज्ञा पंवयानप्रदेश के निकास कारण से प्रसिद्ध हुई है, यथार्थ में यह भी वसिष्ठ कुल के कहे जाते हैं, इनकी कुलदेवी भगवती चण्डिका ईशपूज्य माता कही गई हैं। इनका महोत्सव वैशाखशुक्ल नवमी को होता है । इनकी दक्षिण शिखा, भट्टमाहल नाई मेढा है । इनके खोती पोतरे, मनोहर पोतरे और सरन पोतरे यह तीन थम्बे हैं ।
सारस्वतों में वामन जाइयों की जाति संज्ञा अनेक प्रकार की है और वे अपने-अपने नामों से विख्यात हैं । अष्टकुल वाले अष्टवंश, षट्जाति वाले खिजाति और बारह जाति वाले बारी नाम से कहे जाते हैं । इस जाति के अनेक भेद और विस्तार हो गये हैं, जिनका वर्णन उनकी वंशावली में विशालरूप से दीखता है । पर वास्तव में ब्राह्मणों की जो शाखा सरस्वती के किनारे सारस्वत देश में बसी वही सारस्वत ब्राह्मणों के नाम से विख्यात हुई ।
अब सेणवी सारस्वत ब्राह्मणों की उत्पत्ति कहते हैं – सह्याद्रि खण्ड में लिखा है कि जब परशुरामजी तीर्थ यात्रा के निमित्त शूर्पारक क्षेत्र में आये और वहाँ श्राद्ध करने की इच्छा की तब बुलाने से वहाँ के ब्राह्मण नहीं आये, उस समय परशुराम ने भारद्वाज, कौशिक, वत्स, कौण्डिन्य, कश्यप, वशिष्ठ, जमदग्नि, विश्वामित्र, गौतम, अत्रि इन दश ब्राह्मणों को श्राद्ध यज्ञादि में भोजन व्यवहार चलाने के निमित्त त्रिहोत्रदेश के पंचगौडान्तर्गत सारस्वत ब्राह्मणों को मटग्राम में, कुट्ठलांत में, केलोशी और गोमांचल इत्यादि स्थानों में स्थापन किया। इनकी कुलदेवता मंगेश महादेव; महालक्ष्मी, ह्यालसा, शांता दुर्गा, नागेश, सप्तकोटेश्वरादिक हैं । इन दश ब्राह्मणों के छयासठ कुल थे, उनमें से कुशस्थली, केलोसी इन दो क्षेत्रों में कौत्स, वत्स्य और कौण्डिन्य इन तीन गोत्रों को दश दश कुलसहित स्थापित किया, यह सब रूप गुण सम्पन्न थे, और मठग्राम वरेण्य (नाखे) अम्बूजी और लोटली मिलके इन चार ग्रामों में छः कुल स्थापित किये। चूड़ामणि मयाक्षेत्र में दशकुल तीन-तीन देवताओं से युक्त स्थापित किये। दीपवती में आठ कुल स्थापित किये, गोमांचल के बीच मे बारह कुल स्थापित किये, इस प्रकार छयासठ हुए। इनमें साष्टीकर पहला भेद और सेणवी दूसरा भेद है, तीसरा भेद-
प्रथमस्तेष्वयं भेदः साष्टीकर इतीरितः ।
साणवीतिद्वितीयस्तु भेदस्तेषामुदाहृतः ॥
तथा च कोंकणा इत्थं भेदाः सन्ति ह्यनेकशः ।
कोंकण भी कहते हैं, अब इसका कारण कहते हैं । कर्णाटक देश में मयूरवर्मा नामक एक राजा था उसका पौत्र शिखिवर्मा। इसने सारस्वत ब्राह्मणों को छन्नूग्राम का अधिकार दिया, इस कारण शास्त्र में छन्नू अंक का नाम षण्णवती है इस कारण षण्णवी उपनाम शेणवी हुआ है।
अधिकारं षण्णवतिग्रामाणां च ददौ किल ।
एतद्ग्रामाधिकाराच्च षाण्णवीत्युपनामकम् ॥
कोंकण देश में रहने से कोंकण नाम वाले कहे गये हैं ।
दूसरी प्रकार की उत्पत्ति का विस्तार
एक समय रामचन्द्रजी हिंगुलादेवी का दर्शन करने गये तब वहाँ लक्षब्राह्मण भोजन कराने के संकल्प किया पर उस समय वहाँ ब्राह्मण न थे, चोरों के भय से भाग गये थे, उस समय सरस्वती देवी का स्मरण किया उसी समय सरस्वती देवी प्रगट हुई और राम से मन इच्छित मांगने को कहा तब रामचन्द्रजी ने ब्राह्मणों के निमित्त सरस्वती से कहा, सुनते ही सरस्वती ने पृथिवी में अपने हाथ घिसे। उसी समय पृथ्वी से 1296 (बारह सौ छानवे) ब्राह्मण उत्पन्न हुए, सरस्वती से पैदा होने से सारस्वत कहाये-
सारस्वतास्तदोत्पन्ना दीप्तपावकसन्निभाः । त्रयोदशशतं तेषां दीप्तपावकसन्निभान् ॥ इस प्रकार उनको भोजन और सुवर्णदान देकर रामचन्द्र ने अपना व्रत समाप्त किया और वे ब्राह्मण सारस्वत नाम से पृथिवी में विख्यात हुए और चारों दिशाओं में निवास करने लगे, इनके यजमान लवाणा क्षत्रिय हैं । अथ नर्मदोत्तरवासिसारस्वतब्राह्मणोत्पत्तिप्रकरणम् महाभारत गदापर्व के तीर्थ यात्रा प्रसंग में लेख है कि, दधीच ऋषि बड़े तपस्वी थे उनकी तपस्या डिगाने के निमित्त अलंबुषा अप्सरा भेजी। ऋषि सरस्वती नदी में स्नान कर रहे थे। अप्सरा को देखकर सरस्वती नदी में उनका वीर्य स्खलित हुआ, वह वीर्य सरस्वती की अधिष्ठात्री देवी ने ग्रहण किया और नौ महीने पीछे जब गर्भ से बालक जन्मा तब सरस्वती उस बालक को लेकर ऋषि के पास आई और सब वृत्तान्त सुनाया, ऋषि ने बड़ी प्रसन्नता से उस पुत्र को ग्रहण करके कहा-
मम प्रियकरं चापि सततं प्रियदर्शने।
तस्मात्सारस्वतः पुत्रो महांस्ते वरवर्णिनि।
तवैव नाम्रा प्रथितः पुत्रस्ते लोकभावनः ।
सारस्वत इति ख्यातो भविष्यति महातपाः ॥
हे प्रियदर्शने! जिससे कि तुमने मेरा प्रिय किया है, इस कारण यह तेरे नाम से महातपस्वी सारस्वत विख्यात होगा, वह पुत्र लेकर ऋषि ने पालन किया और सब विद्या सिखाई। कुछ काल में इन्द्रदेव ने दधीच ऋषि से वज्र बनाने को उनके शरीर की अस्थि मांगी। ऋषि अस्थि देकर सायुज्य को प्राप्त हुए, पीछे बड़ी अनावृष्टि होने से वहाँ के ऋषि इधर-उधर गमन करने लगे, उस समय सारस्वत
मुनि ने भी जाने की इच्छा की तब सरस्वती ने उनसे कहा तुम कहीं मत जाओ। तुम्हारे निमित्त भोजन का प्रबन्ध यहीं करूँगी, यह सुनकर ऋषि वहाँ ही रहे पीछे अनावृष्टि दूर हुई और सब ऋषि एकत्र हुए परन्तु वेद भूल गये थे, सारस्वत मुनि ने उन सबको वेद अध्ययन कराया, ऐसे साठ सहस् ऋषि सारस्वत मुनि के बालक हैं, वे सब ही सारस्वत नाम से विख्यात हुए, परन्तु आदि में जो ब्राह्मण जाति सरस्वती नदी के समीप निवास करने वाली थी, वही सारस्वत ब्राह्मण के नाम से विख्यात हुई।
Kuldevi List of Saraswat Brahmin Samaj | सारस्वत समाज के गोत्र एवं कुलदेवियां
Gotra wise Kuldevi List of Saraswat Brahmin Samaj : सारस्वत समाज की गोत्र के अनुसार कुलदेवियों का विवरण इस प्रकार है –
सं. | कुलदेवी | उपासक नख/ खांप (सामाजिक गोत्र) (Gotra of Saraswat Brahmin Samaj) |
---|---|---|
1. | आशावरी माता | ढीलीवाल। |
2. | अर्णोलीमाता | वालमीक। |
3. | कनसूरी माता | पटणी। |
4. | कालिकामाता | दीक्षित। |
5. | करणोला माता | बावा। |
6. | कर्णेश्वरी माता | धम्मू, पालीवाल। |
7. | कजली माता | कांथड्या। |
8. | कामाक्षा माता | कुकड़ा भानोत। |
9. | चतुर्भुजा माता | रत्नपाल, टिमटिमा। |
10. | चण्डिका माता | कूरबिलाव। |
11. | चामुण्डा माता | घोमंच, जांगलवा, अवस्थी, काहल, जयचंद, तंवालवा, नवला, पण्डित, हुंडावण, सोदका, भेहाणी। |
12. | ज्वालामुखी माता | आजर्डा, छकड़ा, जासू, डोडिया, मोठ, शारदा, हयताजा, मोतिया। |
13. | जीणमाता | सिन्धुवेग। |
14. | नवदुर्गा माता | कोडका। |
15. | बटवासिनी माता | बीजल, दंद्राणी, शाण्डिल्य। |
16. | बीजासणी माता | मालिया, लुद्रेवा, सारसवा। |
17. | ब्रह्माणी माता | केलवाड़ा, ढिल्लीवाल, भटनेरी, रैण्या, कोडूका, दुबे। |
18. | भद्रकाली माता | गुडगीला, गुरावा, पाण्डया, कुरल, चित्रचोट, लीलाडिय़ा, शीली, भूरला, राखसा, क्रियाएत, भडिय़ा, गंगवाल, सिरसीवाल। |
19. | भटियानी माता | झींगरन, टण्डन। |
20. | मनसा माता | गुसाई। |
21. | महाकाली माता | मोठ्या। |
22. | संचायमाता | गीतावण्या, तावणिया, पवर, लखनपाल। |
जिन कुलदेवियों व गोत्रों के नाम इस विवरण में नहीं हैं उन्हें शामिल करने हेतु नीचे दिए कमेण्ट बॉक्स में विवरण आमन्त्रित है। (गोत्र : कुलदेवी का नाम )। इस Page पर कृपया इसी समाज से जुड़े विवरण लिखें।
how can I know about my kuldevi ,I m Bhanot, Vats Gotra ,and Argowal.
help me please on bhanotaks@gmail. com
my kuldevi missing here
May gotra baar saraswat
My gotra is kashyap. Who is my kuldevi tell me
में सारस्वत ब्राहमण हूँ मेरा गोत्र कुंजिल है जो कि आपके द्वारा ऊपरलिखित गोत्रो में नहीं है कृपया कारण बतायें
Hum saraswat hain or hamara gotra kushi kriya hain kripya hamari kildevi ka naam batta dijiye
Chahat ji ek pustak hai सारस्वत सर्वस्व usme dekhiye
I am saraswat brahman gotra siporia village mahandipur teh. Mant distt. Mathura Uttar Pradesh Kuldevi Nagarkot wali brajeshwari durga kangra himachal pradesh India please pl.tell kuldevta&Rishi gotra
मैं सारस्वत ब्राह्मण हूँ।मेरा गोत्र आक्षकर्ण है और कुलदेवी वटवासिनी माता है। कृपया आपकी लिस्ट में यह जानकारी update करें
हमारा भी गोत्र आक्ष्कर्ण है । मुझे भी अपने कुलदेवी के बारे मैं जानकारी चाहिए । कृपया मेरी भी मदद करे ।
how can I know about my kuldevi ,I m Bhanot, Vats Gotra ,and Argowal.
help me please on bhanotaks@gmail. com
सारस्वत ब्राह्मणों में एक गौत्र कण्व ऋषि भी है। मुझे मेरे कुल देवी या कुल देवता की जानकारी नहीं है। मुझे मेरे कुल देवी या कुल देवता कौन है बताने का कष्ट करें।
Are you from Punjab
Saraswat Samaj ki Kuldeviya… Well Done . Keep it up
मेरा आडनाम पोतदार है मै सारस्वत ब्राह्मण हू मेरा गोत्र जामदग्नी है हमारे कुलदैवत मंगेशी और शांतादुर्गा है ( गोवा )
Kural joshi kul devi temple kaha he
Parashar gotra ki kuldevi kaunsi hai..?
please let me know sir if you come to know about the kuldevi of parashar gotra.
I’m Sarsvat brahmin surname markendey who is my kuldevi?
Kalia brahmin ki kuldevi kaun hain
We are saraswat brahmin from Rajasthan ( Arya Joshi ) Bharadwaj Gotra,we are not knowing our kuldevi place, Can you please help me out in finding the same.
my gotra is saamrayan ( bada paliwal ) i am not knowing our kuldevi and where his place. so can you please help me.
My kuldevi is bhadra kali mata but i don’t know where is the goddess temple please help me to locate it . My gotra is swarkha.
Kurukshetra Haryana
I am sarasvat brahma and kaushal gotta can you please tell my kuldevi
Please suggest me Punjabi jaitley brahmin vats gotra kuldevi
I found in an internet, vats gotra has kuldevi, Tarini devi. I am Odia, surname Nayak, Brahmin, goyra vats. I did not know before my Kuldevi. Now, I got it. Tarini temples are in Odisha. Do you have Tarini temples in Punjab?
RIGHT SIR
आप जेतली हैं आपके पूर्वज कहाँ के थे कृपया बताएं मैं भी जेतली हूँ आपकी कुलदेवी के लिए सहायता क्र सकता हूँ
मेरा ई-मेल – [email protected] है आप सम्पर्क करें
Sir / mem mera 1 saraswat grop he jisme only saraswat hi hee contact number 8233374440
is me saraswat samaj ki new our khash bate hi send ki jati he is Liy roajana new s chahiy
हमारा गोत्र “LAHRIA”.लहरिया है, कुलदेवी बेलोन वाली माता हे। ये आपकी लिस्ट में नहीं हे। कृपया शामिल करें।
I am saraswat brhaman (Marwari) and I am Relyawat Tugnayat . I don’t know my kuldevi. Plz help me to find
हमारा गोत्र पाराशर है व हम सारस्वत ब्राह्मण है उत्तर प्रदेश के | वर्तमान में अजमेर में निवास कर रहे है |
हमारी कुलदेवी अम्बा माता आबूरोड है उनके बारे में कोई विवरण मौजूद नही है
कृपया जानकारी उपलब्ध कराये |
धन्यवाद
सारस्वत तुगनायत ब्राह्मण गौत्र कर्ण की कुलदेवी कौनसी है और उनका स्थान कहाँ है कृपया बताने की कृपा करें
गोत्र – सेंगर
सारस्वत ब्राह्मण
कुलदेवी, देवता और इनके वंशज के विषय में जानकारी उपलब्ध कराने का कष्ट करें, यदि संभव हो सके
Gurawa ki kuldevi Bhardrakali Mata ka Mandir kaha hai please address send karo
mob. 8698184377
राजस्थान में है।
Tindni Saraswat
सारस्वत ब्राह्मणों में कौशल गोत्र की कुल देवी कौन है
Aap panjabi saraswat ho shayad ?
My surname is GABA.. I M A SINDHI.. I DO NOT KNOW MY GOTRA OR KULDEVI/ KULDEVTA… NOBODY IN MY FAMILY KNOWS.. KINDLY HELP ME..
you are ARORA BY CASTE AND YOUR gotra is kashyap. gaba are also in punjab too. ARORKOT IS THE LAND OF ARORA IN SINDH..but best of my knowledge you are not bhramin
Yes…agreed Gaba is from Arora community
Arora community is basically from Kshatriya varna
sarshwat Brahmin …atak ratneshwar ………gotra atri rushi ….kul Devi ….ambika mataji …..is gotra ki jankari chahiye … pls muje send karna ….09979919593
Comment *
ojha ki kuldevi brhmani mata h..
isse bhi add kre
Upmanyu saraswat kuldevi Raj rajeshwari Kaila mata
My gotra is modgil and i am swarswat brahmin…and my kuldevi is naina devil..please mention in this list
Our gotra KAPIL saraswat brahmin belong to Punjab our kul Devi chintpurni devi (chinnmastika dham) himachal, near hoshiar pur p.b hey but not mentioned in your list
Dear pls help me we are Saraswat Brahmins and Vashisht gotra caste chanan pls tell me our kuldevi
My name is MUKESH Sharda.Saraswat Brahmin.From.Sham Chauraasi village.District.Hoshiarpur.Pl help to tell my Kulldevi name and place.
.naina devi
kul devi of shandilya gotra
Mai Baijnath saarswat Punjabi Brahman Pakistan Lahore ki chuhni tehsil usse pehle Punjab me Jalandhar k pass gaaon ththha tibba gaaon k itihaas Ko jaanta hoon or hmaara gotra kplaksh hai sb gotra palan hai ISS se pehle hmaare poorvaj khaan k rehne ਵਾਲੇ the isle baare me Jaan na hai aur hmaari kuldevi k baare me Jaan na hai
Information is correct. I’m Tawniya. 🙂
All gotra kuldevi s name publish kare plz
जय सियाराम जी की
हमारा गौत्र कपिलक्षय है हमें पता नहीं है कि हमारी कुल देवी कौन है कृपया मेरा what’s no 7988615876 पर बताया जाय
Aap ka gotra kaplash ha tu aapki kuldevi kanyamata ha joki ambala ke pass pls call me 7206619128
Our gotra is Bharwaj Saraswat brahmin Pl.tell us Our kuldevi or Kuldewta
गौत्र वत्स,उपाधि प्रभाकर
कुल देवी 3 है लेकिन अभी नहीं मालुम
Me sonami pathak hair kuldevi our gotta batane ka last karey
Hum bhi sonami Pathak hai gotra vashisht hai lekin kuldevi ka sthaan nahi pata . kuldevi ka naam pata hai radhsha mata.
मेरा नाम संध्या शर्मा है में गुरसाराय यूपी से हुँ मेरा गोत्र वसेरया है मेरी कोन सी कुल देवी है में सारस्वत ब्रह्मभट्ट ब्रहमन हुँ
Kundalini of upadhyay Gumbaj Gotham Bharadwaj
Kuldavi of upadhyay Gumbaj Gotra Bharadwaj
Place of kuldavii
Koudilya gotra & shantadurgamata…..combination right hai kya ? I,m sarswat Brahman……
Add Bisbhuja mata / Biswat mata, sathika gaon nagaur
we r bhardwaj gotra hans frm lahore please tell our kuldevi shayd up number 9413689675
I am punjabi saraswat brahmin and gotra is vats and my surname is hansla please tell me my kuldevi.
PARIDA KHANDAYAT KI KULDEVI MAA MANGALA HAI KAKATPUR WALI
I am Korpal, Vatsa Gotra…..Kuldevi Shree Mata Naina Devi ji….
Please mention in your list.
I am KORPAL, Vatsa Gotra…Kuldevi Shree Mata Naina Devi Ji….
Please update in your list.
I AM ,MUDGAL GOTRA ,SIND SARASWAT BRAHMAN.
I WANT TO KNOW ABOUT MY
KULDEVI
KULDEVTA.
CAN U HELP ME TO KNOW IT
kripaya Love Ojha Ki kuldevi ke bare maine bataya?
गाडूणीया गोत्र नहीं है
कुलदेवी बिजासन माता जी हैं
please tell me the kul devi and kul devta for saraswat brahmin vyas gotra.
Aap kaha ke saraswat hai
SARASWAT BRAHMIN …
KULDEVI JWALA MATA JI HAI
LEKIN HAMARA GOTRA NAHI HAI ISME
HAMARA GOTRA HAI ..MUDIYA OJHA .. KRIPYA KARKE ISE JODNE KI KRIPA KARE
My Details are
Gotra:Kashyap
Caste:Dogra (Lalotre Brahmin)
Orignated Place:Duggar (Jammu)
Can you please share details of my Gotra Kuldevi
Hamari Kuldevi Nagarkot Kangra wali Mata hain…par hamara Gotra list mei nahin hai
Hum Sarswat Brahman hai hamara gotar Sankas hai hamari kul devi kaun hai
How can I get to know my kuldevi I am sarswat bardhaman and my gotra is kalhan.
में सारस्वत ब्राह्मण हूं। मेरा गोत्र कायल है, और हमारी कुल देवी चामुंडा देवी है। हमारा विवरण इस में नही है।
Rakesh rampal in punjab hamari kuldevi konsi hai? gharwale jab bhi kisi bache ka janam hota hai to jwala mata ji ke mandir mein bal katva kar arpit karte hain.
मेरा गोत्र पिपलोदिया है मेरी कुलदेवी बताने की कृपा करें।
Mera gotra vats Hai or muje meri kuldevi k bare me Janna Hai plz
Hii plz help… Mera gotra vats Hai Mujeeb meri kuldevi Maa ke bare me Janna Hai…I don’t know my kuldevi Maa’s name plz