Shila Devi Amber History in Hindi : आम्बेर (Amber) की शिलादेवी (Shila Devi) आम्बेर-जयपुर के कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी हैं। शिलादेवी अष्टभुजी महिषमर्दिनी की मूर्ति है। इन्हें मुग़ल बादशाह अकबर के सेनानायक आम्बेर के राजा मानसिंह प्रथम लाए थे, जिसे उन्होनें अपनी राजधानी आम्बेर में प्रतिष्ठापित किया। इस सम्बन्ध में अधिकांश ग्रंथों के अनुसार राजा मानसिंह यह प्रतिमा बंगाल से लाये।
आम्बेर के राज-प्रासाद के मोहन बाड़ी के कोने पर शिलादेवी का प्राचीन मन्दिर है । शिलादेवी आम्बेर जयपुर राजवंश की कुलदेवी हैं। मंदिर में संगमरमर का सुंदर अलंकरण, चाँदी की परत से सुसज्जित किवाड़, पूजा के लिए चाँदी का घण्टा शाही शान की झलक प्रस्तुत करते हैं।
Shila Devi Amber Video :
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कलात्मक प्रवेशद्वार :
मंदिर के प्रवेशद्वार पर लगे चाँदी के पत्र पर दस महाविद्याओं नवदुर्गा की आकृतियाँ हैं। मन्दिर का मुख्य द्वार, चांदी का बना हुआ है, जिस पर नवदुर्गा, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री उत्कीर्ण हैं । दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोड़सी, भुवनेश्वरी, छिन्ननमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, श्रीमातंगी और कमला देवी को भी चित्रित किया गया है ।
दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेश मूर्ति प्रतिष्ठित है। द्वार के सामने झरोखे के अंदर चांदी का नगाड़ा रखा हुआ है, जिसे प्रातः एवं सायंकाल आरती के समय बजाया जाता है । मन्दिर की तरफ प्रवेश करते ही दाईं ओर महालक्ष्मी व बाईं ओर महाकाली के चित्र हैं ।
बंगाल से लाये थे महाराजा मानसिंह :
शिलादेवी के रूप में प्रतिष्ठित अष्टभुजी दुर्गा की मूर्ति को महाराजा मानसिंह (प्रथम) 16वीं शताब्दी के अन्त में बंगाल प्रवेश के पूर्वी भाग से लाये थे । इस मूर्ति के विषय में दो मत प्रचलित हैं एक तो यह कि यह मूर्ति राजा के पूजान्तर्गत थी तथा राजा को यह वरदान था कि जब तक इस प्रतिमा की अनवरत पूजा होती रहेगी वह अपराजेय रहेगा । महाराजा मानसिंह को इस रहस्य की जानकारी होने पर उसने पुजारी के माध्यम से पूजा के क्रम में विघ्न उत्पन्न करवाया, जिससे केदार राजा पराजित हुआ । पराजित होने पर उसने अपनी पुत्री का विवाह महाराजा मानसिंह से किया तथा यह प्रतिमा दहेज़ में दी । दूसरा मत यह है कि प्रतिमा शिला रूप में समुद्र में पड़ी हुई थी । महाराजा मानसिंह ने समुद्र से इस काले पत्थर की शिला को निकाला और आमेर लाकर विग्रह शिल्पांकित करवाकर प्रतिष्ठापित करवाया ।
शिला देवी की तिरछी नजर :
शिलादेवी की प्रतिमा पहले पूर्वाभिमुख प्रतिष्ठित थी । महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर नगर की स्थापना किये जाने पर निर्माण में व्यवधान होने लगा, क्योंकि शिलामाता की इस ओर तिरछी दृष्टि पड़ रही थी । जयपुर के तंत्रशास्त्र के पण्डितों ने सवाई जयसिंह को राय दी कि शिलामाता को उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवाने से ही जयपुर शहर का निर्माण संभव हो सकेगा । सवाई जयसिंह ने प्रतिमा को वर्तमान गर्भगृह में उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवाया ।
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शिला देवी का स्वरुप :
शिलामाता की काले चमकीले प्रस्तर से निर्मित यह अष्टभुजा मूर्ति एक पाषाण शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण है । शिलादेवी महिषासुरमर्दिनी के रूप में प्रतिष्ठित है । मूर्ति वस्त्रों और पुष्पों से आच्छादित रहती है, अतः माता का मुख और हाथ ही दिखलाई देते हैं । महिषासुरमर्दिनी के रूप में देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिने हाथ के त्रिशूल से मार रही है । इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई है । इस मूर्ति के ऊपरी भाग में बाएं से दाएं तक अपने वाहनों पर आरूढ़ गणेश, ब्रह्म, शिव, विष्णु एवं कार्तिकेय की सुन्दर किन्तु छोटे आकार की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।
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शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खड्ग, चक्र, त्रिशूल तीर तथा बाईं भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड और धनुष उत्कीर्ण हैं । यह प्रतिमा चमत्कारी मानी जाती है । शिलादेवी की बाईं ओर अष्टधातु की हिंगलाज माता की स्थानक मूर्ति प्रतिष्ठित है । यह मूर्ति कछवाहा राजाओं से पूर्व आमेर में शासन कर रहे मीणा राजाओं के द्वारा ब्लूचिस्तान से लाई गई थी । दाईं ओर गणेश की स्थानक मुद्रा में मूर्ति प्रतिष्ठित है । स्फटिक का शिवलिंग शिलादेवी के मन्दिर में रखा हुआ है । इसके पीछे यंत्र रखा हुआ है । मन्दिर के सामने के कक्ष में नवरात्रों में नवरात्र स्थापन (कलश-स्थापन) किया जाता है । इस मन्दिर में कलात्मक संगमरमर का कार्य महाराज सवाई मानसिंह (द्वितीय) ने ईस्वी 1906 में करवाया था । पूर्व में यह साधारण चूने का बना हुआ था । इस मन्दिर में प्रतिदिन प्रातः छ बजे भोग लगने के पश्चात् ही पट खुलते हैं । श्रद्धालु गुंजी, नारियल आदि का प्रसाद चढ़ाते हैं । शिलादेवी लोक देवी हैं। नवरात्रियों में माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है । आश्विन और चैत्र दोनों नवरात्र के अवसर पर यहां मेला लगता है जिसमें लोगों की अपार भीड़ शिलामाता के दर्शनार्थ उमड़ती है।
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शिलादेवी को कुलदेवी के रूप में पूजने वाले समाज और गोत्र
सं. | समाज | गोत्र |
---|---|---|
1. | राजवंश | कछवाहा |
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Jai mata di
Jai Maa Shila Devi
Please add our society also in this
Samaj : Lodha
Gotra : Chauhan
Shila Devi is our kul Devi
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जय मां शिला देवी मां