चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलों के उत्तर में बायीं ओर कालिकामाता का भव्य और विशाल मन्दिर है जिसके स्तम्भों, छत और निजमंदिर के प्रवेशद्वार पर अलंकरण का सुन्दर काम हुआ है । इस मन्दिर के स्थापत्य को देखते हुए इसका निर्माण काल 8वीं., 9वीं. शताब्दी ई. संभावित लगता है । इतिहासकारों की मान्यता है कि मूलतः यह एक सूर्य मन्दिर था । इसके निज मन्दिर के द्वार और उसके बाहर ताकों पर रथारूढ़ सूर्य प्रतिष्ठापित सूर्य प्रतिमाओं से इसके सूर्य मन्दिर होने की पुष्टि होती है । विद्वानों की मान्यता है कि इस मन्दिर की मुख्य सूर्य प्रतिमा चित्तौड़गढ़ किले पर मुस्लिम आक्रमण के समय नष्ट कर दी गई तथा कालान्तर में यहाँ कालिकामाता की मूर्ति स्थापित कर दी गई जिससे यह कालिकामाता का मन्दिर कहलाने लगा । ज्ञात इतिहास के अनुसार मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा मन्दिर के नवीन शिखर और देव मूर्तियों को उत्कीर्ण करवाया ।
इस मन्दिर के प्रवेश द्वार की चौखट और सिरदल बहुत भव्य,कलात्मक और आकर्षक हैं । जिसकी शोभा देखते ही बनती है । इसके मध्य में सूर्य देव की प्रतिमा उत्कीर्ण है तथा उनके दोनों और अत्यंत विशद और प्रभावशाली ढंग से विविध देवताओं और अपने हाथों में माला लिए गन्धर्वो की स्वागत मुद्रा में आकृतियाँ बानी है।
चित्तौड़ और उसके आसपास के क्षेत्र में इन कालिकामाता की बहुत मान्यता है । नवरात्र के अवसर पर यहाँ श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब उमड़ता है।
Chittorgarh ki Kalika Mata ki Jai.. Maa sab pr kripa karo.. Jai Maa Bhagwati. Jai Maa Ambe.. Jai Maa Kalika
Mata ka mantra kya hai
kripaya kr bataye