चित्तौड़गढ़ से लगभग 13 कि.मी. दूर कपासन जाने वाले मार्ग पर वटयक्षिणी देवी का मन्दिर है जो लोक में झांतलामाता के नाम से प्रसिद्ध है । जनश्रुति है कि सैकड़ों वर्षों पूर्व यहाँ एक विशाल वट वृक्ष था जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी । कालान्तर में इस स्थान पर विक्रम संवत् 1217 के लगभग एक विशाल मन्दिर का निर्माण किया गया जो अद्यावधि वहाँ विद्यमान है । इस मन्दिर के गर्भगृह में पाँच देवी प्रतिमाएँ हैं तथा सभामण्डप में भी देवी प्रतिमाएँ लगी हैं।
पाण्डोली तालाब की पाल पर बना यह मन्दिर लोक आस्था का केन्द्र है तथा लोकविश्वास है कि देवी के इस मन्दिर में आने से लकवा तथा अन्य असाध्य रोगों से पीड़ित रोगी स्वस्थ हो जाते हैं । यहाँ उल्लेखनीय है कि राजस्थान में वटयक्षिणी की पूजा की परम्परा बहुत पुरानी है । वि. संवत् 1003 के एक शिलालेख में प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल द्वितीय द्वारा धोंटवार्षिक (प्रतापगढ़) स्थित वटयक्षिणी देवी के मन्दिर में निमित एक गाँव दान में देने का उल्लेख है । इस अभिलेख के प्रारम्भिक श्लोकों में से एक देवी के महिषमर्दिनी स्वरूप का वर्णन करता है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वटयक्षिणी महिषमर्दिनी का ही स्थानीय नामकरण था । इन्द्रराज चाहमान भी वटयक्षिणी का उपासक था ।
VataYakshini Mata ki Jai.. Jai Mata Di
How do I know my Gotra and kuldevi
लसोड़ गौत्र की कुल देवी का नाम क्या है और कहाँ है कृपया बतावे