झाला वंश का इतिहास, खांपें और कुलदेवी – शक्तिदेवी /आद माता

Jhala Kuldevi Aad Mata History in Hindi : झालावंश का प्राचीन नाम मकवाना था।  उनका मूल निवास कीर्तिगढ़ (क्रान्तिगढ़ ) था।  हरपाल मकवाना का  मूल निवास कीर्तिगढ़ था जहाँ  सुमरा लोगों से लड़ाई हो जाने के बाद वह गुजरात चला गया जहां के राजा कर्ण ने उसे पाटड़ी की जागीर सोंप दी। मरमर माता को मकवानों की कुलदेवी माना जाता है  कालान्तर में मकवानों  को झालावंश कहा जाने लगा। अनन्तर आदमाता अथवा शक्तिमाता को झालावंशज कुलदेवी के रूप में पूजने लगे ।

मकवाना राजवंश | Makwana Rajput Vansh:-

छत्तीस राजपूत राजकुलों में मकवाना एक राजकुल हैं | इन क्षत्रियों की एक खांप झाला है झाला अपने को चंद्रवंशी मानते हैं | कुछ झाला राजपूत अपने को सूर्यवंशी बतलाते हैं लेकिन पन्द्रहवीं शताब्दी में गंगाधर रचित ‘मडवीक’ काव्य में इनको चन्द्रवंशी लिखा गया है | इस बात की पुष्टि विक्रम की 15वीं शदी में गंगाधर रचित मण्डलीक चरित्र ग्रन्थ से भी होती है जिसमें लिखा है “रवि वधूदव गोहिल झल्लकै” अर्थात गोहिल सूर्यवंशी और झल्लकै (झाला) चन्द्रवंशी हैं | अतः सिद्ध है कि मकवाण चंद्रवंशी थे | अब हमें यह विचार करना चाहिए कि मकवाना (मकवाणा) नामकरण कैसे हुआ ? कई विद्वानों का मत है कि सिन्ध क्षेत्र के मकराण स्थान के कारण मकवाण कहलाये | बांकीदास लिखते हैं मारकण्डे मौखरी वंश में हुआ जिणसू मकवाणा कहलाया | (बाकीदास की ख्यात पृ. 164) श्यामलदास ‘वीर विनोद’ में लिखते है झाला अपनी पैदाइश मार्कण्ड ऋषि से बतलाते है और कांतिपुर में जो थल में पारकर के पास है, आबाद हुए | (वीर विनोद भाग 4 पृ. 1470) इन सब उदाहरणों से माना जाता है कि मार्कण्ड नामक व्यक्ति से माकवाणों का सम्बन्ध है | नैणसी री ख्यात में भी मकवाणा के पूर्वजों में
राणा मख नामक व्यक्ति का अस्तित्व ज्ञात होता है | अतः मार्कण्ड (मख) की संतान मकवाणा हो सकती है |

कैसे पड़ा मकवाना वंश का नाम ‘झाला वंश’| Makwana to Jhala

झाला राजपूत सिन्ध पार कीर्तिगढ़ में मूलरूप से रहते थे | वहाँ के प्रथम राणा व्यासदेव का पुत्र केसरदेव सिन्ध नरेश हम्मीर सूमरा से लड़ता मारा गया | उसका पुत्र हरपाल गुजरात के बधेल नरेश कर्णदेव (ई.सन् 1286-1300) के यहाँ जा रहा था | वहाँ कुछ गाँव जागीर में मिल गये और वह पाटड़ी में रहने लगा | एक दिन पाटड़ी में एक मस्त हाथी की चपेट में हरपाल के तीन पुत्र आ गए लेकिन उनकी माता ने उन्हें हाथ बढ़ाकर पकड़ लिया और अपने पास खींच कर हाथी की फेंट से बचा लिया | पकड़ने को गुजराती भाषा में झालना कहते हैं | इसी कारण ये पुत्र झाला कहलाने लगे | और इसी से इनके वंशज झाला कहलाते हैं |

मकवाणा क्षत्रियों में 14 वीं (शताब्दी में झाला खांप की उत्पत्ति हुई झाला नामकरण के सन्दर्भ में नैणसी ने लिखा है | “इनकी माँ देवी स्वरूपा थी | एक बार इसका पुत्र खेल रहा था | माँ झरोखे में बैठी ही नीचे  हाथ पसार कर अपने पुत्र का झाल लिया बाद में वह अन्तर्धान हो गई | उस दिन से यह झाला कहलाया |

झालावाड़ राज्य की स्थापना  | Jhalawar

 ई.सन् 1500 के बाद इनके वंशज मेवाड़ में जा बसे | इनके वंशज बड़ी सादड़ी,गोगूंदा,देलवाड़ा आदि के जागीदार थे | झालों के एक वंशज भावसिंह कोटा में जा बसे | भावसिंह का पुत्र माधवसिंह कोटा में फौजदार हो गया तथा कोटा के महाराव से अपनी बहन का विवाह कर दिया | माधवसिंह का एक वंशज जालमसिंह कोटा में बड़ा कुशल मुसाहिब था | उसके पुत्र मदनसिंह ने अंग्रेजों से मिलकर ई.सन् 1839 में कोटा राज्य के 17 परगने अलग कर अपना स्वतंत्र राज्य झालावाड़ स्थापित किया |

झाला राजपूतों की खांपें | Branches of Jhala Rajput :-

झाला राजपूतों की निम्न खांपें जानी जाती है पर उनके उत्पत्ति स्थान का पता नहीं चलता है |

1. देवत झाला :- झालावाड़ (गुजरात) से कई झाला राजपूत राजपूत जैसलमेर में चले गए | वे वहां देवत झाला कहलाये |

2. टावरी झाला :- जैसलमेर रियासत के झालों में रायमल झाला के बड़े पुत्र हम्मीर के वंशज महेश्वरी हुए और छोटे पुत्र अनाड़ के वंशज टावरी गांव के नाम से टावरी कहलाये | (क्ष.जा.सू.पृ.77)

3. खोदास झाला :- झाला खोदास के वंशज | पाटन के पास गुजरात में है |

4. जोगू झाला :- जोगू झाला के वंशज |

5. भाले सुलतान झाला :- राणोजी व बाजोपी दो भाइयों के वंशज | माण्डवी के पास |

6. बलवन्त झाला :- झाला बलवन्तसिंह के वंशज (कच्छ में) |

7. लूणी झाला :- झाला लूणाजी के वंशज | बनारस के पास | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 77 ) |  

झाला वंश की कुलदेवी | Kuldevi of Jhala Vansh

मरमर माता को मकवानों की कुलदेवी माना जाता है  कालान्तर में मकवानों  को झालावंश कहा जाने लगा। अनन्तर आदमाता / शक्तिमाता को झालावंशज कुलदेवी के रूप में पूजने लगे। 

राजकवि नाथूरामजी सुंदरजी कृत बृहद ग्रन्थ झालावंश वारिधि में हरपालदेव को पाटड़ी की जागीर मिलने के सम्बन्ध में वृत्तान्त दिया गया है कि हरपाल क्रान्तिगढ़ छोड़कर गुजरात में अन्हिलवाड़ा पाटन की ओर रवाना हुआ।  मार्ग में उसकी प्रतापसिंह सोलंकी से भेंट हुई जो उसे पाटन में अपने घर लाया।  जहाँ उसकी भेंट एक सुन्दर कन्या से हुई। वह कन्या शक्ति स्वरूपा थी।  हरपाल ने राजा कर्ण से भेंट की।  परिचय पाकर कर्ण ने उसको अपने दरबार में रख लिया।  उस समय राजा कर्ण की रानी को बावरा नामक भूत ने त्रस्त कर रखा था।  जब राजा कर्ण सिरोही से विवाह कर लौट रहा था तो मार्ग में पालकी में बैठी देवड़ी रानी के इत्र की शीशी ऐसे स्थान पर फूट गयी जहां बावरा भूत का निवास था।  इत्र उस पर गिर गया और वह रानी के साथ पाटन आ गया।  तब से वह रानी को सता रहा था।  हरपाल ने रानी को उस भूत से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया।  वह महलों में गया और अपनी कुलदेवी मरमर माता की आराधना कर अपनी विधियों तथा उस चमत्कारी शक्तिरूपा कन्या की सहायता द्वारा भूत को प्रताड़ित करना शुरू किया।  बावरा भूत ने हरपाल से उसे छोड़ने की प्रार्थना की और वचन दिया कि वह आगे से उसका सहायक बन कर काम करेगा।  हरपाल ने बावरा को छोड़ दिया।  हरपाल देवी हेतु बलिदान के लिए श्मशान गया।  वहां शक्तिदेवी / मरमर माता प्रसन्न हुई और वर मांगने को कहा।  हरपाल ने प्रतापसिंह की भैरवीरूपा कन्या से विवाह की इच्छा जताई। शक्तिदेवी ने उसे आशीर्वाद दिया।  हरपाल ने उस कन्या से विवाह कर लिया।

हरपाल के एक रात में 2300 गाँव 

उधर कर्ण  ने उसकी रानी को प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के बदले हरपाल को कुछ मांगने को कहा।  इस पर शक्ति के कथनानुसार हरपाल ने उत्तर दिया कि एक रात में आपके राज्य के जितने गाँवों को तोरण बाँध दूँ, वे गाँव मुझे बक्षे जावें।  राजा ने मंजूर कर लिया।  हरपाल ने शक्तिदेवी और बावरा भूत की मदद से एक रात्रि में पाटड़ी सहित 2300 गाँवों में तोरण बाँध दिए।  राजा को अपने वचन के अनुसार सभी गाँव हरपाल को देने पड़े।  इससे राजा घबरा गया क्योंकि उस राज्य का अधिकाँश भाग हरपाल के पास चला गया था।  राजा का यह हाल देखकर हरपाल ने भाल इलाके के 500 गांव राजा कर्ण की पत्नी को ‘कापड़ा’ के उपलक्ष्य में लौटा दिए।

आज होती है बावरा भूत की पूजा

हलवद के बाहर श्मशान में भवानी भूतेश्वरी का का मन्दिर है, जिसमें बावरा भूत की मस्तक प्रतिमा विद्यमान है, जिसकी पूजा होती है।

झाला और टापरिया चारण 

पाटड़ी राजधानी बनाने के बाद हरपाल देव ने वहां महल, भवन आदि बनवाये, जिनके अवशेष वहाँ आज भी दिखाई देते हैं।  पाटड़ी में निवास करने के बाद ही मकवाना वंश का नाम झाला वंश पड़ा। भाटों की कथा के अनुसार राजा हरपाल की पत्नी शक्ति भैरवी पाटड़ी के महल के झरोखे में बैठी हुई थी। उस समय तीन राजकुमार और एक चारण बालक झरोखे के नीचे खेल रहे थे।  तभी एक हाथी बंधन तोड़कर भागता हुआ उधर आया और संभव था कि बालक हाथी के पैरों तले कुचले जाते । देवी रानी शक्ति ने अपने हाथ फैलाकर उन बालकों को ऊपर उठा (झेल) लिया।  झेलकर रक्षा करने के कारण उस पीढ़ी से मकवाना झाला कहलाने लगे और उस चारण बालक को भी देवी ने टप्पर (धक्का) देकर बचा लिया, इस कारण उस बालक की संताने टापरिया चारण कहलाई।

कुलदेवी आद माता के रूप में रानी देवी शक्ति | Aad Mata / Marmar Mata / Devi Shakti

रानी शक्ति देवी भैरवी का देहान्त 1115 ई. में होना माना जाता है।  तब से झाला लोग इसी शक्ति देवी या आद माता को कुलदेवी के रूप में पूजते आये हैं।  ध्रांगध्रा और हलवद दोनों स्थानों पर शक्तिदेवी के मंदिर हैं जहां उनकी विशेष पूजा अरचना होती है।  हलवद में किसी झाला दम्पति का विवाह होने पर वे हलवद में स्थित शक्ति माता के प्राचीन मन्दिर में जाकर शक्तिमाता के दर्शन करते हैं।  वहां के झाला लोग शक्ति देवी के मृत्यु दिवस को शोकदिवस के रूप में मनाते हैं। हलवद और ध्रांगध्रा में देवी को शक्ति देवी के नाम से ही पूजते हैं, वहाँ आद माता नाम नहीं मिलता।  मेवाड़ के झाला शक्तिदेवी को आद माता नाम से पूजते हैं।  रानी देवी के देहांत के बाद शोकाकुल राजा हरपाल देव ने पाटड़ी छोड़ दिया और वह अपने अन्तिम दिनों में धामा गाँव में रहा जहां 1130 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

Shakti Mata Temple Dighadiya Halvad
Shakti Mata Temple Dighadiya Halvad

Shakti Mata Temple Dighadiya-Halvad Map

Shakti Mata Temple Dhragandhra Map

आद माता के मन्दिर

झाला वंश के प्रमुख ठिकाने बड़ी सादड़ी में नवरात्रि के उपलक्ष में कुलदेवी आद माता के मन्दिर में नवमी के दिन विशेष हवन भी हुआ करता है, इसी प्रकार गोगुन्दा ठिकाने में कुलदेवी आद माताजी की पूजा अर्चना की जाती है।  कानोड़ स्थित आद माता का मन्दिर झाला वंश के साथ आम जन की भी इस मन्दिर के प्रति धार्मिक आस्था का बोध कराता है।

28 thoughts on “झाला वंश का इतिहास, खांपें और कुलदेवी – शक्तिदेवी /आद माता”

      • मेवाड़ में झाला के तीन ठिकाने है ( बड़ी सादड़ी , देलवाड़ा और गोगुन्दा )। उनके इतिहास पर भी प्रकाश डाले ।

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  1. उस समय तीन राजकुमार और एक चारण बालक isme appne charna baalak to bataya lekin teen rajkumar koun -koun the
    kripya batave

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  2. हम बंजारा है हमारी गोत मकवाना है तो किया ये हमारी कुल देवी है

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  3. जय विशांता मैया, जय मरमारा माता ,जय शक्ति माता, जय केवड़ा स्वामी भैरव की जय

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