Shakti Peeth Danteshwari Mata Temple Dantewara History in Hindi : छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर क्षेत्र की मनोहर वादियों में स्थित है दंतेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी माता का मंदिर। इस धाम को 52 शक्तिपीठों में स्थान प्राप्त है। देवी पुराण के अनुसार शक्तिपीठ 51 हैं। तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। कुछ ग्रंथों में इनकी संख्या 108 बताई गई है। दंतेश्वरी माता के मन्दिर को 52 वा शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि यहाँ देवी सती का दांत गिरा था। इसीलिए इस स्थान का नाम दंतेवाड़ा तथा देवी का नाम दंतेश्वरी प्रसिद्ध हुआ। दंतेश्वरी माता का मन्दिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है। दंतेश्वरी माता को बस्तर क्षेत्र में कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि मन्दिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही है। माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोती पहनकर ही मन्दिर के भीतर जाना होगा।
दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की काले ग्रेनाइट की प्रतिमा षट्भुजी है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल धारण किए हुए है। यह प्रतिमा नक्काशीयुक्त है। माताजी के सिर के ऊपर चांदी से बना छत्र है। द्वार पर दो चतुर्भुजी द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो काले पत्थर के सिंह विराजमान हैं। यहां भगवान गणेश, शिव, विष्णु आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में स्थित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने गरुड़ स्तम्भ अवस्थित है। बत्तीस काष्ठ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है।
यह भी पढ़ें – इस मन्दिर के दीपक में काजल नहीं, केसर बनता है
दंतेश्वरी माता के मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन भुवनेश्वरी देवी का मन्दिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। भुवनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं। छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और माता दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है।
होली से दस दिन पूर्व यहां फाल्गुन मड़ई का आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी संस्कृति परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है। यह उत्सव नौ दिनों तक चलता है। इस महोत्सव में लगभग 250 से भी ज्यादा देवी-देवताओं के साथ माताजी की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है और लौटकर पुनः मंदिर आती है। इस दौरान बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच और फाग गीत गाया जाता है।
यह भी पढ़ें – महाशक्तिपीठ हिंगलाज देवी, जिसकी मुसलमान भी करते हैं पूजा
मन्दिर के निर्माण की कथा :
दन्तेवाड़ा शक्ति पीठ में माँ दन्तेश्वरी के मन्दिर का निर्माण कब व कैसे हुआ इसकी एक कथा है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर के पहले काकतीय राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्हें दंतेश्वरी माता का वरदान प्राप्त था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था और माता उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की भूमि पर नाम देव का राज हो जाता।
यह भी पढ़ें : अंग्रेजों को भयभीत कर देने वाली आउवा की सुगाली माता
अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नंदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज़ महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी। नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी। राजा के रूकते ही माताजी भी रूक गई। वचन के अनुसार माता के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर मन्दिर बनवा दिया। तब से माताजी वहीं स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरण-चिन्ह विद्यमान है।
Ditoni mata mandir ki jankari ho to kripya bataye.
Danteshwari mata ke shuruvati naamo ki jankari share kare.