Devi Chudamani Temple Uttarakhand History in Hindi : इस मन्दिर में चोरी करने पर ही मनोकामना होती है पूरी – Mission Kuldevi में हम आपको कुलदेवियों सहित देवी माँ के विभिन्न धामों का दर्शन करवाते हैं। हमारे भारत में कई ऐसे अनोखे मन्दिर हैं जिनकी परम्पराएं और मान्यतायें अनोखी होती हैं। पिछले लेख में हमने आपको बताया एक ऐसे देवी मन्दिर के बारे में जहाँ पति और पत्नी एक साथ पूजा नहीं कर सकते। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे शक्तिपीठ के बारे में जहाँ चोरी करने पर मनोकामना पूरी होती है। ये तो हम सब जानते हैं कि चोरी करना पाप होता है और उस पर भी चोरी जब देवस्थान पर की जाये तो वह तो महापाप होता है लेकिन देव भूमि उत्तराखंड में एक अनोखा मंदिर है सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर, जहां से जुड़ी मान्यता है कि यहां चोरी करने पर हर शख्स की मनोकामना पूरी होती है। रुड़की के चुड़ियाला गांव स्थित प्राचीन सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर में पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले पति-पत्नी माथा टेकने आते हैं।
चोरी करने की है परम्परा
यहाँ की मान्यता है कि जिन्हें पुत्र की चाह होती है वह जोड़ा यदि मंदिर में आकर माता के चरणों से लोकड़ा (लकड़ी का गुड्डा) चोरी करके अपने साथ ले जाए तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। उसके बाद संतान के साथ माता-पिता को यहां माथा टेकने आना होता है और अपनी संतान के हाथों एक लोकड़ा मन्दिर में चढ़ाना होता है। और इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है और उस लोकड़े को अन्य जोड़ा चुरा ले जाता है।
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मन्दिर के निर्माण की कथा
गांव के लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने करवाया था। एक बार राजा शिकार करने जंगल में आए हुए थे कि घूमते-घूमते उन्हें माता की पिंडी के दर्शन हुए। राजा के कोई पुत्र नहीं था। इसलिए राजा ने उसी समय माता से पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी। माता की कृपा से शीघ्र ही उनके पुत्र हुआ। राजा की इच्छा पूरी होने पर उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।
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यहाँ गिरा था माता सती का चूड़ा
प्रचलित कथा के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किए जाने से नाराज माता सती ने यज्ञ में कूदकर आत्माहुति दे दी थी। भगवान शिव जब माता सती के मृत शरीर को लेकर जा रहे थे, तब माता का चूड़ा इस घनघोर जंगल में गिर गया था, जिसके बाद यहां पर माता की पिंडी स्थापित होने के साथ ही भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। यह प्राचीन शक्तिपीठ मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। माता के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु देश के कोने-कोने से यहां आते हैं।
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यहाँ शेर भी रोजाना टेकने आते थे पिंडी पर मत्था
जिस स्थान पर आज मन्दिर बना हुआ है पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था। कहा जाता है की यहाँ जंगल में उस समय माता की पिंडी पर रोजाना शेर भी मत्था टेकने आते थे।
यह स्थान बाबा बनखंडी का भी है धाम
माता चूड़ामणि के अटूट भक्त रहे बाबा बनखंडी का भी मंदिर परिसर में समाधि स्थल है। बताया जाता है कि बाबा बनखंडी महान भक्त एवं संत हुए है। इन्होने इसी मन्दिर में 1909 में समाधी ली थी।
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