Bhramari Devi and Shakambhari Mata Avtar story in Hindi : माँ जगदम्बा ने समय-समय पर जगत के कल्याण के लिए कई अवतार लिए। उन अवतारों को लोक में पूरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। देवी माँ के कुछ अवतारों को कुलदेवियों के रूप में स्वीकार किया गया। ऐसे ही अवतारों में से दो अवतारों के बारे में बता रहे हैं –
भ्रामरी देवी का अवतार
1. भ्रामरी देवी – देवी माँ का यह रूप अपने आप में अनूठा है। यह देवी भंवरों से घिरी रहती है तथा भंवरों की सहायता से अपने भक्तों की रक्षा करती है तथा दुष्टों को दण्ड देती है। कई स्थानों पर भ्रामरी देवी को भंवर माता के नाम से भी पुकारा जाता है। भ्रामरी देवी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार देवी ने अरुण नामक एक दैत्य से देवताओं की रक्षा करने के लिए भ्रामरी देवी का रूप धारण किया था। इस कथा के अनुसार –
प्राचीन समय में अरुण नामक एक दैत्य ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मदेव ने प्रकट होकर अरुण से वर मांगने को कहा तब उसने यह वर माँगा कि मुझे कोई भी युद्ध में ना मार सके। मेरी मृत्यु किसी भी अस्त्र-शस्त्र से ना हो। ना ही कोई स्त्री-पुरुष मुझे मार सके और ना ही दो व चार पैरों वाला कोई प्राणी मेरा वध कर सके। इसके साथ ही मैं देवताओं पर भी विजय पा सकूँ। ब्रह्माजी ने उसे ये सब वर दे दिए।
वर पाकर अरुण ने देवताओं से स्वर्ग छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता घबराकर भगवान शिव के पास गए। तभी आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती की उपासना करें, वे ही उस दैत्य को मारने में सक्षम हैं। आकाशवाणी सुनकर सभी देवताओं ने देवी की आराधना की। प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को दर्शन दिए। उनके छह पैर थे। वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों (एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी) से घिरी थीं। भ्रमरों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें भ्रामरी देवी के नाम से संबोधित किया। देवताओं से पूरी बात जानकार देवी ने उन्हें आश्वस्त किया तथा भ्रमरों को अरुण को मारने का आदेश दिया। पल भर में भी पूरा ब्रह्मांड भ्रमरों से घिर गया। कुछ ही पलों में असंख्य भ्रमर अतिबलशाली दैत्य अरुण के शरीर से चिपक गए और उसे काटने लगे। अरुण ने काफी प्रयत्न किया लेकिन वह भ्रमरों के हमले से नहीं बच पाया और उसने प्राण त्याग दिए। इस तरह देवी भगवती ने भ्रामरी देवी का रूप लेकर देवताओं की रक्षा की।
भ्रामरी देवी का एक मन्दिर शेखावाटी अंचल के सीकर जिले में स्थित जीण माता के मन्दिर में विद्यमान है। जिसे भमरिया माता तथा भंवर माता के नाम से जाना जाता है।
शाकम्भरी देवी का अवतार
2. शाकम्भरी माता – दानवों के विनाशकारी उत्पात से जब पृथ्वी पर कई वर्षों तक अकाल तथा सूखा पड़ा तब देवी के भक्तों ने जगदम्बा से इस अपार दुःख से उबारने हेतु प्रार्थना की। तब देवी ने एक ऐसा अवतार लिया जिसके हजारों नेत्र थे। यह देवी शताक्षी कहलाई। इस देवी के नेत्रों से जलधारा निकली तथा अंगों से कई प्रकार की शाक व वनस्पतियां उत्पन्न हुई। इसलिए इस देवी का नाम शाकम्भरी प्रसिद्ध हुआ। माँ भगवती शाकम्भरी की कृपा से पृथ्वी पर हरियाली छा गई तथा जीवन पुनः लौट आया। पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकंभरी नवरात्रि का आरंभ होता है, जो पौष पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस दिन शाकंभरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन असहायों को अन्न, शाक (कच्ची सब्जी), फल व जल का दान करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती हैं तथा माँ भगवती जगदम्बा दुर्गा प्रसन्न होती है। शाकम्भरी माता की अधिक जानकारी के लिए Click करें >>Get Shakambhari Mata Book –
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