Sharda Devi Temple Maihar History and Alha Udal Story in Hindi : मध्य प्रदेश के सतना जिले की मैहर तहसील के समीप त्रिकूट पर्वत पर स्थित है माता मैहर देवी का मंदिर। मैहर का अर्थ है माँ का हार। इस मन्दिर में विराजमान देवी की प्रतिमा माँ शारदा की है जिसे मैहर देवी के नाम से पुकारा जाता है। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माँ शारदा देवी विराजमान है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का एकमात्र मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
आल्हा और उदल आते हैं यहाँ माँ के दर्शन करने
कहा जाता है कि इतिहास प्रसिद्ध आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे आज भी सबसे पहले माता के दर्शन करते हैं। मान्यता के अनुसार आल्हा और उदल शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सर्वप्रथम यहाँ जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तब से यह मंदिर माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मंदिर के पीछे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
मन्दिर का नाम कैसे पड़ा ‘ मैहर ‘
जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को अपने कन्धों पर उठाये ताण्डव रहे थे तब भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिए अपने चक्र से सती के शरीर को कई भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था। इस कारण देवी को मैहर माता कहा जाता है। इसे “माई-हार”का अपभ्रंश माना जा सकता है।
यह भी पढ़ें- 20,000 से भी ज्यादा चूहे हैं इस मन्दिर में, इनकी जूठन होता है प्रसाद >>Click here
मन्दिर का महत्त्व-
शारदा देवी के इस मन्दिर का आस्था व धर्म के अलावा ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यहाँ माता की प्रतिमा की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। प्रतिमा पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है।
मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी,परंतु 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।
यह भी पढ़ें- लिंगई माता: यहाँ लिंग के रूप में होती है देवी की पूजा
कैसे पहुंचे –
दिल्ली से मैहर तक की सड़क से दूरी लगभग 800 किलोमीटर है। ट्रेन से पहुंचने के लिए महाकौशल व रीवा एक्सप्रेस उपयुक्त हैं। दिल्ली से चलने वाली महाकौशल एक्सप्रेस सीधे मैहर ही पहुंचती है। यहाँ पहुंचकर धर्मशालाओं की समुचित व्यवस्था है जहाँ विश्राम करने के पश्चात् मन्दिर के लिए चढ़ाई की जा सकती है। रीवा एक्सप्रेस से यात्रा करने वाले भक्तजनों को मजगांवां पर उतरना चाहिए। वहां से मैहर लगभग 15 किलोमीटर दूर है। त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माता के मन्दिर के लिए लगभग 1060 सीढियां बनी हुई हैं। जिन पर बीच में जल व विश्राम की भी व्यवस्था है।
यह भी पढ़ें- इस मदिर में चोरी करने पर ही पूरी होती है मनोकामना >>Click here
kya yahi Chatral ke Vyas Gautam gautra ke Mahodari mata ka Tempal hai?
or Nahi to Mahodari mata Ka Tempal Kaha hai pl Batai ?
Rajpipla ke Vyas ke kuldevi konse Hai or Unka tempal kahay hai?