Chauth Mata Temple Chauth Ka Barwara Sawai Madhopur : चौथमाता का मन्दिर बरवाड़ा गाँव में एक विशाल और ऊँची पहाड़ी पर स्थित है । जयपुर सवाईमाधोपुर रेलमार्ग पर चौथ का बरवाड़ा एक रेलवे स्टेशन है जिसका नामकरण चौथमाता के मन्दिर के आधार पर हुआ । देवी मन्दिर तक पहुँचने के लिए लगभग 600 सीढियाँ बनी हैं । इस चौथ माता मंदिर को राजस्थान सरकार ने राज्य के प्रसिद्ध ग्यारह मंदिरों में शामिल कर लिया है।
चौथ माता मंदिर सवाई माधोपुर के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना 1451 में वहां के शासक भीम सिंह ने की थी। 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी और तालाब का निर्माण कराया गया।
शहर से 35 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मंदिर राजस्थान के शहर के आस-पास का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। एक हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में दर्शनों के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। वैसे तो प्रतिदिन ही मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है पर यहां हर माह में चतुर्थी पर मेला लगता है। साल में चार चौथ बड़ी आती है, जिसमें एक ही दिन में लगभग डेढ़ – दो लाख माता के भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर में हर साल माघ माह में मेला लगता है। इस मेले में सात दिनों में करीब दस लाख से भी अधिक श्रद्धालु माताजी के दर्शनार्थ आते हैं।
मंदिर सुंदर हरे वातावरण और घास के मैदान के बीच स्थित है। सफेद संगमरमर के पत्थर से खूबसूरती से स्मारक की संरचना तैयार की गई है। दीवारों और छत पर जटिल शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है। मन्दिर परिसर में. गणेशजी व भैरवजी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित है। मन्दिर में सैकड़ों वर्षों से अखण्ड ज्योति भी प्रज्वलित है। इस मंदिर में दर्शन के लिए राजस्थान से ही नहीं अन्य राज्यों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। नवरात्र के दौरान यहां होने वाले धार्मिक आयोजनों का विशेष महत्व है।
चौथ माता मन्दिर की स्थापना शिव भक्त राजा बीजल के पराक्रमी पुत्र महाराज भीम सिंह जी ने आज से करीब 550 वर्ष पूर्व बरवाडा से 15 कि.मी. दक्षिण की तरफ स्थित पचाला नामक स्थान से श्री चौथ माताजी की प्रतिमा लाकर बरवाडा के पास स्थित अरावली श्रृंखला की एक ऊॅची पहाडी पर की।
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बरवाडा मे चौथ माताजी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस गॉंव का नाम चौथ का बरवाड़ा हो गया । राजा भीम सिंह ने अपने पिता कि स्मृति मे गॉंव के बाहर एक विशाल छतरी का निर्माण करवाकर शिवलिंग की स्थापना करवाई तथा उसके समीप ही एक तालाब बनवाया । छतरी आज भी बीजल की छतरी तथा तालाब माताजी का तालाब के नाम से प्रसिद्ध है।
अक्षय तृतीया (आखा तीज ) को नहीं होते 18 गाँवों में शुभ कार्य –
चौथ का बरवाड़ा व इसके अधीन 18 गाँवों में अक्षय तृतीया को कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। इसका कारण यह है कि एक बार राजा भीमसिंह के उत्तराधिकारियों पर राठौड़ों ने आक्रमण कर दिया। भीमसिंह के उत्तराधिकारी देवी चौथ माता को भूल चुके थे व उनकी पूजा उपासना नहीं किया करते थे। जिस समय राठौड़ों ने आक्रमण किया उस समय माताजी के मन्दिर की नीचे वाली बस्ती में अक्षय तृतीया को एक बारात प्रवेश कर रही थी। उस हमले में सम्पूर्ण बारात मारी गई। इस कारण आखातीज के दिन की चौथ का बरवाड़ा व इसके 18 गाँवों में माताजी की आंट पड़ गई। इसलिए इन गाँवों में आखातीज के दिन शादी-विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। यहाँ तक कि घरों में कढ़ाई भी नहीं चढ़ती।
मन्दिर कमेटी ने बनाया सुगम रास्ता –
करीब पंद्रह साल पहले इस मंदिर तक जाने के सही रास्ता नहीं था और लोगों को बहुत मुश्किलों से यहां तक पहुंचना पड़ता था। मंदिर ट्रस्ट की स्थपना के साथ ट्रस्ट के अध्यक्ष बने भगवती सिंह के साथ कमेटी ने मंदिर तक जाने के लिए आरामदायक रास्ता बनवाया। इसी तरह बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए धर्मशाला का भी निर्माण करवाया गया हैै।
कैसे पहुँचे ? ( How to reach Chauth Mata Temple ) –
जयपुर से बस मार्ग द्वारा अथवा रेल मार्ग द्वारा चौथ का बरवाड़ा पहुंचा जा सकता है। जयपुर से इसकी दूरी लगभग 132 किलोमीटर है। तथा सवाई माधोपुर से यह लगभग 27 किलोमीटर है।
नोट:- यदि आप लोदर माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं तो कृपया Comment Box में अपना समाज व गोत्र लिखे।
Chauth Mata Temple Map-