‘कुलदेवीकथामाहात्म्य’
हिंगुलालय की हिंगलाजमाता
इतिहास
भारतीय संस्कृति में 53 शक्तिपीठों की मान्यता है। उनमें हिङ्गुलालय का सर्वप्रथम स्थान है। शक्तिपीठों की मान्यता भगवती सती की कथा पर आधारित है। उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवान् शिव के लिए यज्ञभाग अर्पित न होने से रुष्ट होकर प्राण त्याग दिये थे। भगवान् शिव दक्ष के यज्ञस्थल से सती का शव लेकर, उद्विग्न दशा में दसों दिशाओं में घूमने लगे। भगवान् विष्णु ने शिवजी की यह दशा देखकर उन्हें उद्वेग से मुक्त करने के लिए, सुदर्शन चक्र से शव के अंग काट दिये। सती के शव के अंग एवं आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ बन गए। हिंगुला नदी के किनारे भगवती सती का ब्रह्मरन्ध्र गिरकर मूर्ति बन गया। मातेश्वरी की मांग हिंगुलु (कुमकुम) से सुशोभित थी इससे वह स्थान हिंगुलालय नाम से प्रसिद्ध हो गया।
हिंगुलालय शक्तिपीठ में विराजमान माता हिंगुला एवं हिंगलाज नामों से विख्यात हैं। एक गुफा के बाहर दीवार पर शक्ति का प्रतीक त्रिशूल अंकित है। गुफा में माता का सिंदूर – वेष्टित पाषाणपाट लाल वस्त्र से आच्छादित है। पवित्र गुफा अखण्ड ज्योति से आलोकित है।
भक्त हिंगलाजमाता के दर्शन के लिए हिंगुलालय की यात्रा करते हैं। इस पावनयात्रा में श्रद्धालु यात्री माता के दर्शन कर पाट पर लाल चूंदड़ी चढ़ाते हैं।
हिंगलाज माता का मुख्य स्थान हिंगुलालय अब पाकिस्तान में है। इसे शरण हिंगलाज कहते हैं। भारत से शरणहिंगलाज की यात्रा के लिए पाकिस्तान में लासबेला पहुँचना होता है।
लासबेला में जसराज की मंढी से हिंगलाज-यात्रा की छड़ी उठती है। चन्द्रकूप, अघोरकुण्ड आदि स्थानों को पार करते हुए यात्री शरणकुण्ड पहुँचते हैं। शरणकुण्ड में स्नान कर यात्री नये कपड़े पहनकर गर्भगुफा में दर्शन के लिए प्रवेश करता है।
गर्भगुफा से बाहर आने पर कोटड़ी के पीर गुफा के शिखर पर लटकती हुई एक शिला पर भगवान राम के हाथ से अंकित सूर्य और चन्द्र दिखाते हुए बताते हैं कि यहाँ आकर ही भगवान राम ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे। राजस्थान के प्रसिद्ध पीर रामदेव जी , गुजरात के प्रसिद्ध सन्त दादा मरवान और राजस्थान के फतेहपुर शेखावाटी के प्रसिद्ध सन्त बुधगिरिजी ने हिंगलाजमाता के दर्शन के लिए वहाँ की तीर्थयात्रा की थी। सिद्धसन्त बुधगिरिजी ने हिंगुलालय में हिंगलाजमाता के दर्शन कर फतेहपुर में हिंगलाजमाता के मन्दिर की स्थापना की। इस क्षेत्र के शासक ने हिंगलाजमाता के मन्दिर के क्षेत्र में विशाल बीड़ ( ओरण ) छोड़ा था। श्री बुधगिरिजी लोकदेवता के रूप में विख्यात हैं। हिंगलाजमाता स्वयं प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद देती थी। बुधगिरिजी ने मंढी परिसर में स्थापित मन्दिर में हिंगलाज माता के विग्रह की प्रतिष्ठा कर अखण्डज्योति जलाई जो आज भी प्रज्वलित है।
हिंगलाजमाता के दो अवतार अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। उन्होंने चालकनू गाँव के भक्त मामड़ पर प्रसन्न होकर उनके घर पुत्रीरूप में अवतार लिया। वह अवतार आवड़माता नाम से विख्यात है। दूसरा अवतार करणीमाता नाम से सुवापग्राम के भक्त मेहाजी के घर हुआ।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, एवं महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में हिंगलाजमाता के अनेक मन्दिर स्थित हैं। उनमें सबसे प्राचीन जैसलमेर के पास लुद्रवा नामक स्थान पर है। जैसलमेर के गढ़, सिवाणा के गढ़, चूरू के लोहसणा गाँव, फालना की पहाड़ी, लास के भाखर, आदि स्थानों पर स्थित हिंगलाज माता के मन्दिर राजस्थान के मुख्य मन्दिर माने जाते हैं।
अनेक समाजों में विभिन्न गाँवों में हिंगलाज माता की कुलदेवी के रूप में पूजा की जाती है। भारत – विभाजन के बाद पाकिस्तान-स्थित हिंगुलालय के दर्शन के लिए कई औपचारिकताओं का निर्वाह करना होता है। फिर भी श्रद्धालु वहाँ हिंगलाजमाता के दर्शनार्थ जाते हैं। अधिकांश श्रद्धालु अपने आस-पास के हिंगलाज मन्दिर में ही जात-जडूला आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न करते हैं।
जातिभास्कर ग्रन्थ में वर्णित एक कथा के अनुसार ब्रह्मक्षत्रिय समाज का उद्भव हिंगलाजमाता की कृपा से ही हुआ था, अतः उस समाज में एकमात्र हिंगलाज माता को ही कुलदेवी माना जाता है। चारण समाज में भी हिंगलाजमाता और उसके अवतारों की ही मान्यता है।
श्री हिंगलाज माता दुर्लभ संस्कृत कथा स्तुति
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Thank you Shriman
gosai ki giri kuladevi kon hai? kaha hai? mandari aur pooja vadhi bataya..
मुझे कुछ दिनो पहले पता चला के हिंगळाज माता हमारे भावसार (रंगारी) समाज की कुलदेवी हैं, पर हमारे यहा उनका पूजा विधी विधान लुप्त हो चुका हैं, कैयोकी अलग अलग कुलदेवी मानी गयी है. गुरुरुप मै भी महर्षी दधीच जी का वंश छोड अलग ही गुरुओं को माना जा रहा है, में इस बारे मे मार्गदर्शन चाहता हू.
Sundhu mata jalor
Ki chamunda mata
Charan samaj ki bareth vansh ki kuldevi h
जय श्री हिंगलाज देवी माता