Kuldevi ki Avdharna ka Darshanik Aadhar in Hindi : कुलदेवी की अवधारणा शाक्त दर्शन पर आधारित है। बह्वृचोपनिषद के अनुसार मूलतत्त्व देवी ही है। सब कुछ उसी से उत्पन्न हुआ है –
देवी ह्येकाग्र आसीत्। सैव जगदण्डमसृजत्।
तस्या एव ब्रह्मा अजीजनत्। विष्णुरजीजनत् ...
रुद्रो अजीजनत् ... सर्वमजीजनत्। सैषा पराशक्तिः।
देवीभागवतपुराण के अनुसार देवी ऐश्वर्य और पराक्रम का आदिस्रोत तथा उन्हें प्रदान करने वाली है। ऐश्वर्य को ‘श’ तथा पराक्रम को ‘क्तिः’ कहा गया है। अतः देवी को शक्ति कहा जाता है –
ऐश्वर्यवचनः शश्च क्तिः पराक्रम एव च।
तत्स्वरूपा तयोर्दात्री सा शक्तिः परिकीर्तिता।।
वह देवी ही आत्मतत्त्व के रूप में विद्यमान थी। सृष्टि के लिए उसने स्वयं को प्रकृति और पुरुष दो रूपों में विभक्त कर लिया –
योगेनात्मा सृष्टिविधौ द्विधारूपो बभूव सः।
पुमांश्च दक्षिणार्धाङ्गो वामार्धा प्रकृतिः स्मृताः।।
सा च ब्रह्मस्वरूपा च नित्या सा च सनातनी।
यथात्मा च तथा शक्तिर्यथाग्नौ दाहिका स्थिता।।
अत एव हि योगीन्द्रै: स्त्रीपुंभेदो न मन्यते।।
वह आद्या शक्ति देवी विभिन्न रूप धारण कर सृष्टि की उत्पत्ति पालन और संहार करती है। उसका एक मातृका रूप है क्योंकि समस्त सृष्टि उसकी ही संतति है। जगदम्बा मातृका रूप में अपने बच्चों की रक्षा करती है। यह उनका दयामय रूप है-
मातृका च दयारूपा शश्वद्रक्षण कारिणी।
जले स्थले चांतरिक्षे शिशूनां सद्मगोचरे।।
कुलदेवी मातृकारूपा होती है। प्रत्येक पूजाविधान में मातृकापूजन के अन्तर्गत कुलदेवीपूजन का विधान है।
सती, शक्तिपीठ और कुलदेवियाँ
देवीभागवत पुराण के अनुसार भगवती जगदम्बा ने दक्ष के घर कन्या के रूप में जन्म लिया। सत्यस्वरूपा होने के कारण उनका नाम सती हुआ-
मंगलायां तु जतायां जातं सर्वत्र मंगलम्।
तस्या नाम सतीं चक्रे सत्यत्वात्पर संविदः।।
सती का विवाह शिव के साथ हुआ। पिता दक्ष द्वारा पति शिव का अपमान होने से क्षुब्ध सती ने प्राण त्याग दिए। शिव विक्षिप्त होकर सती का शव कंधे पर रखकर भटकने लगे। विष्णु ने उन्हें शोकमुक्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से शव के खण्ड-खण्ड कर दिये। खण्डित अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हो गए।
सती के अनेक अवतार भी हुए जो कुलदेवी के रूप में पूजे जाते हैं। उदाहरणार्थ सती के अनेक शक्तिपीठों में एक हिंगुला का शक्तिपीठ भी है। वहाँ वे हिंगलाजमाता के नाम से पूजित हैं। डॉ. सोहनदान चारण ने कल्याण के शक्ति-उपासना अंक में उनके अनेक अवतारों का वर्णन किया है। डॉ. रघुनाथप्रसाद तिवाड़ी ने अपनी पुस्तक ‘हमारी कुलदेवियाँ’ में करणीमाता को भगवती सती का अवतार बताया है।
श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार जिसमें विभूति और ऊर्जा हो उसे अंशावतार समझना चाहिए। भगवती सती के ऐसे असंख्य अवतार हैं जो ग्राम-ग्राम, नगर-नगर में पूजित हैं।
Can you pl.send me detail address of our kuldevi badekhan mataji. I am gurjargoud brahmin.
badekhan mata ji ka mandir kaha per hai plz kisi ko pata hai to bata dijiye
KUMAWAT caste ki koi jaankari… Is samaj ki utpatti.. JALAANDRA gotra ke baare me bataye or JALAANDRA gotra ki kuldevi konsi h wo bataye sir plzzz… inform me or mail me