Tulja Bhawani Tuljapur Maharashtra history in hindi : महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में तुलजापुर में मां तुलजाभवानी का धाम स्थित है। इनका नाम त्वरिता देवी भी है। मां तुलजाभवानी छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में पूजित हैं।
तुलजा भवानी भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है। कहते हैं कि शिवाजी को खुद देवी मां ने तलवार प्रदान की थी। यह तलवार लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है।
तुलजा भवानी का मंदिर :
मां तुलजाभवानी का मंदिर यमुनाचल पहाड़ी पर स्थित है। समुद्र तल से इस क्षेत्र की ऊंचाई 553 मीटर यानी 1815 फीट है। मां का पावन धाम पर्वत शिखर से थोड़ा नीचे है। इस मंदिर का स्थापत्य मूल रूप से हेमदपंथी शैली से प्रभावित है। इसमें प्रवेश करते ही दो विशालकाय महाद्वार नजर आते हैं। राजमार्ग से थोड़ी सीढ़ियां उतरने पर पहले नारद मुनि के दर्शन होते हैं। जिनका यहां मंदिर है। नीचे जाने पर कल्लोल नामक तीर्थकुंड है। जिसमें 108 तीर्थों के पवित्र जल का सम्मिश्रण है। इसमें उतरने के पश्चात थोड़ी ही दूरी पर गोमुख तीर्थ स्थित है, जहाँ जल तीव्र प्रवाह के साथ बहता है। तत्पश्चात सिद्धिविनायक भगवान का मंदिर स्थापित है।
तत्पश्चात एक सुसज्जित द्वार में प्रवेश करने के पश्चात मुख्य कक्ष (गर्भ गृह) में माता की श्यामवर्ण स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। शालीग्राम पत्थर से निर्मित यह मूर्ति वस्तुतः स्वयंभू मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति के आठ हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ से उन्होंने दैत्य के बाल पकड़े हैं तथा दूसरे हाथों से वे दैत्य पर त्रिशूल से वार कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि माता महिषासुर राक्षस का वध कर रही हैं। माता की दाहिनी ओर उनका वाहन सिंह स्थापित है। इस प्रतिमा के समीप ऋषि मार्कंडेय की प्रतिमा स्थापित है, जो पुराण पढ़ने की मुद्रा में है। माता के आठों हाथों में चक्र, गदा, त्रिशूल, अंकुश, धनुष व पाश आदि शस्त्र सुसज्जित हैं।
इस प्रतिमा का वर्णन मार्कंडेय पुराण के ‘दुर्गा सप्तशती’ नामक अध्याय में उल्लिखित है। इस ग्रंथ की रचना स्वयं संत मार्कंडेय ने की थी। इस प्रतिमा का वर्णन भगवद् गीता में भी है।
गर्भगृह के निकट ही एक दूसरे मंदिर में एक चांदी का पलंग है जो देवी की शैय्या है। इस पलंग के उलटी तरफ शिवलिंग स्थापित है, जिसे दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि माँ भवानी व शिव शंकर आमने-सामने बैठे हैं। इसके सामने ही पीतल की सिंहमूर्ति है। देवी मंदिर के ठीक सामने भवानीशंकर का मंदिर है। जहां अन्य देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं।
मान्यता –
- यहाँ पर स्थित चाँदी के छल्ले वाले स्तंभों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है, तो सात दिन लगातार इस छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है।
- माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले चिंतामणि नामक इस पत्थर के पास अपने प्रश्नों के समाधान के लिए आते थे।
माँ तुलजा भवानी की कथा
कृतयुग में करदम नामक एक ब्राह्मण साधु थे, जिनकी अनुभूति नामक अत्यंत सुंदर व सुशील पत्नी थी। जब करदम की मृत्यु हुई तब अनुभूति ने सती होने का प्रण किया, पर गर्भवती होने के कारण उन्हें यह विचार त्यागना पड़ा तथा मंदाकिनी नदी के किनारे तपस्या प्रारंभ कर दी। इस दौरान कूकर नामक राजा अनुभूति को ध्यान मग्न देखकर उनकी सुंदरता पर आसक्त हो गया तथा अनुभूति के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया। इस दौरान अनुभूति ने माता से याचना की और माँ अवतरित हुईं।
माँ के साथ युद्ध के दौरान कूकर एक महिष रूपी राक्षस में परिवर्तित हो गया और महिषासुर कहलाया। माँ ने महिषासुर का वध किया और यह पर्व ‘विजयादशमी’ कहलाया। इसलिए माँ को ‘त्वरित’ नाम से भी जाना जाता है, जिसे मराठी में तुलजा भी कहते हैं।
तुलजा भवानी की पूजा
इस मंदिर की ख्याति मराठा राज्य में फैली और यह देली भोसले प्रशासकों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाने लगीं। छत्रपति शिवाजी अपने प्रत्येक युद्ध के पहले माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहाँ आते थे।
यहाँ पर तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम की व्यवस्था मंदिर की प्रबंधन समिति के हाथों में है। मंदिर की अपनी धर्मशाला है, जो यात्रियों के लिए निःशुल्क है। परिसर के बाहर भी कई निजी होटल व धर्मशालाएँ हैं।
ऐसे पहुंचें (How to reach Tulja Bhawani Temple Maharashtra ?)
दक्षिण मध्य रेलवे के पुणें-दौंड़-रायचूर रेलमार्ग पर पुणे से 236 किलोमीटर दूर सोलापुर स्टेशन है। यहां से लगभग दो किलोमीटर दूर एक बस स्टैंड है। जहां से 45 किलोमीटर दूरी पर तुलजापुर तीर्थ है। तुलजापुर तक आने के लिए सभी प्रकार के यातायात के साधन उपलब्ध हैं। दक्षिण से आने वाले यात्री नालदुर्ग तक आसानी से सड़क मार्ग द्वारा आ सकते हैं। उत्तरी व पश्चिमी राज्यों से आने वाले तीर्थयात्री सोलापुर के रास्ते तुलजापुर तक आ सकते हैं। जबकि पूर्वी राज्यों से आने वाले यात्री नागपुर या लातूर के रास्ते यहाँ आ सकते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
पंढरपुरः यह महाराष्ट्र का श्रेष्ठ तीर्थ है। यह क्षेत्र संतों के निवास के लिए प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र के संतों के श्रीपंढरीनाथ आराध्य देवता हैं। यहीं भक्त पुंडरीक, संत तुकाराम, संत नामदेव, नरहरि आदि संतों को सिद्धि प्राप्त हुई थी। यह नगर भीमा (चंद्रभागा नदी) के तट पर बसा है।
विट्ठलनाथ मंदिरः यहां का प्रधान मंदिर है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने दोनों हाथ कमर पर रखे खड़े हैं। इन्हीं को पंढरीनाथ कहते हैं। इस मंदिर में घेरे में और भी कई मंदिर हैं। यहां से कुछ दूरी पर कोदंडराम का मंदिर है। नगर के मध्य में संत तुकाराम मंदिर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिरः भीमा नदी के तट पर कई मंदिर हैं। जिनमें लक्ष्मी नारायण का मंदिर प्रमुख है। इसके अतिरिक्त नारद की रेती (नारद मंदिर) और विष्णुपद अधिक विख्यात है। यहा भगवान विष्णु के पदचिह्न एवं कई अन्य देवताओं के मंदिर भी है।
Maa Tulja Bhawani Temple Map:-
Sanjay Sharma ji Namaste, Kolhapur ki mahalaxmi (ambabai) mata ke bare me koi aap ke pass jankari hogi toh please mere sath share kare. Kyoki iss devi ki uttpatti ke bare me maharashtra me bahut badi bahas chhidi huyi hai. Local maratha people in kolhapur and south maharashtrin is devi ko adimaya jagdamba/ambabai ya parvati ka roop maante hai. Dusari aur south indian people and local brahmin in kolhapur iss devi ko tirupati balaji ki pahli patni mahalaxmi maante hai.