Chamunda Mata Mehrangarh Fort Jodhpur Rajasthan: बीसहथ माता के दर्शन करने के पश्चात् हम (मैं और मेरे पिताजी) मेहरानगढ़ पहुंचे। जोधपुर आने के बाद यदि मेहरानगढ़ नहीं देखा जाता और इस गढ़ में स्थित प्रसिद्ध चामुण्डामाता के दर्शन ना किये जाते तो इस कुलदेवीधाम-यात्रा अभियान में कमी रह जाती तथा जोधपुर का पर्यटन अधूरा रह जाता।
शाप, बलिदान व ऐश्वर्य का गवाह “मेहरानगढ़” | Mehrangarh
अपने गौरवमयी इतिहास के अभिमान से गर्वित मेहरानगढ़ बादलों को छूता हुआ पहाड़ी रूपी अपने सिंहासन पर विराजमान है। मेहरानगढ़ की गणना भारत के विशालतम किलों में की जाती है। कुण्डली के अनुसार इस किले का नाम ‘चिन्तामणि’ है, परन्तु यह ‘मिहिरगढ़’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। मिहिर का अर्थ ‘सूर्य’ होता है। कालान्तर में इसे मेहरानगढ़ कहा जाने लगा।
मारवाड़ के शासक राजा रणमल की 24 संतानों में से एक थे ‘राव जोधा’। तब तक मारवाड़ की राजधानी मण्डोर थी। राव जोधा मारवाड़ के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को प्रतीत हुआ कि मण्डोर का किला सुरक्षा के मानकों पर खरा नहीं है तथा असुरक्षित है। राव ने अपने तत्कालीन किले से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार किया।
शाप–
इस किले का निर्माण जोधपुर के संस्थापक राव जोधा द्वारा 13 मई 1459 ई. को प्रारम्भ करवाया गया। वह इसे ‘मसूरिया’ नामक पहाड़ी पर बनवाना चाहते थे परन्तु वहां पानी का अभाव होने के कारण इसे ‘पंचेटिया पर्वत’ बनवाया गया। यहाँ एक झरना था। इस पर्वत को “चिड़िया कूट” पहाड़ी भी कहा जाता है। इस स्थान पर “चिड़ियानाथ” नामक एक सिद्ध योगी का निवास था। राव जोधा ने योगी से उनकी कुटिया वहां से हटा लेने के लिए कहा क्योंकि वे वहां किला बनवाना चाहते थे। योगी ने इसे अस्वीकार कर दिया, परन्तु राव ने उसी स्थान पर किला बनवाना प्रारम्भ कर दिया। इससे नाराज योगी ने स्वयं ही अपनी कुटिया तोड़ दी और उस स्थान को छोड़ दिया। योगी ने राव को शाप दिया कि “मुझे यहाँ से इस तरह निकाला गया, तुम्हें यहाँ पानी भी नसीब न होगा।” कहा जाता है कि तबसे यहाँ हमेशा पानी की कमी बनी रहती है।
बलिदान–
एक तान्त्रिक ने राव जोधा को सुझाव दिया कि यदि किले की नींव में एक जीवित इंसान को दफन किया जाये तो यह किला सदैव इसके निर्माता व उसके उत्तराधिकारियों के पास ही रहेगा। राव ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी व्यक्ति जिन्दा दफन होने के लिए तैयार होगा, उसके परिवार को शाही संरक्षण व अकूत दौलत दी जाएगी। एक ‘बलाई’ दफन होने के लिए तैयार हो गया। उसे नींव में जिन्दा दफन कर दिया गया तथा उसके परिवार को भूखण्ड दिया गया, जो बाद में ‘राजबाग’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
किले की यात्रा-
किले के चारों ओर 12 से 17 फीट चौड़ी तथा 20 से 150 फीट ऊँची दीवार है। किले की अधिकतम चौड़ाई 750 फीट तथा अधिकतम लम्बाई 1500 फीट है। लगभग 400 फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग कई किलोमीटर दूर तक दिखाई देता है। वर्षा के बाद जब आसमान साफ हो तब तो इस किले को 100 किलोमीटर दूर स्थित जालोर के किले से भी देखा जा सकता है।
इस दुर्ग की विशाल प्राचीरों के भीतर महल, द्वार, मन्दिर, तोपखाना, स्मारक, पुस्तकालय आदि विद्यमान हैं। इस किले का सम्पूर्ण क्षेत्र ‘जोधाजी का फलसा’ कहलाता था।
इस दुर्ग में लोहापोल, जयपोल व फतेहपोल नामक विशाल द्वार हैं तथा मोतीमहल, फूलमहल, तखत विलास, चोखेलाव, रंगमहल, जनाना महल, दौलतखाना आदि सुन्दर महल हैं।
विशाल जयपोल नामक द्वार से दुर्ग में प्रवेश करने के बाद से ही भव्य किले की आकर्षक बनावट ने मुझे आकर्षित कर लिया। ऊँचे बुर्जों को निहारते हुए मैं आगे बढ़ने लगा। कुछ कदम की दूरी पर ही शहीद भूरेखां की मजार स्थापित है। भूरेखां जोधपुर की एक सैन्य टुकड़ी का सिपाही था जो जयपुर और बीकानेर की सम्मिलित सेना के आक्रमण के समय उनसे वीरतापूर्ण लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था। वहां से आगे बढ़ने पर डेढ़ कांगरा पोल नामक द्वार है जहाँ इस आक्रमण में प्रहार किये गए तोप के गोलों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं।
आगे फतेहपोल और लोहापोल को पार करते हुए हम महलों की सुंदरता निहारते हुए आगे बढ़ते गए। इन भव्य महलों के अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ, तथा महलों, तोपखाने और शस्त्रागारों में रखी ऐतिहासिक वस्तुएँ जैसे पालकियाँ, हाथी-हौदे, तोपें, वस्त्राभूषण, अस्त्र-शस्त्र, संगीत वाद्य, कालीन, बर्तन, दैनिक उपयोग की वस्तुएँ, चित्र आदि अपने गौरवशाली अतीत की झलकियाँ दिखाते हैं। महलों के झरोखों से आने वाली ठण्डी हवायें इस किले की वीरगाथा गाती हैं।
किले की चौड़ी दीवारों पर स्थान-स्थान पर बहुत सी विशाल तोपें रखी हैं। भले ही सदियाँ गुजर गईं। मारवाड़ की सत्ता मेहरानगढ़ की भुजाओं से छिनकर लोकतांत्रिक राजस्थान सरकार के हाथों में आ चुकी है, परन्तु ये तोपें आज भी अपना सीना तानकर शत्रुओं की बाट में अपना कर्त्तव्य निभा रही हैं। ये वो दुर्गरक्षक हैं जो भविष्य में भी इसी प्रकार युगों-युगों तक बिना वेतन लिए तब तक यहीं टिके रहेंगे जब तक समय अपने प्रहारों से इन्हें धूमिल न कर दे।
चलते-चलते हम किले के अंतिम छोर तक पहुंचे जहाँ विराजमान हैं जगज्जननी चामुण्डा माँ। मेहरानगढ़ स्थित मन्दिरों में मुरलीमनोहर, आनंदघन तथा चामुण्डा माता के मन्दिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र हैं।
Mehrangarh Fort में विराजमान चामुण्डामाता
किले में विराजमान चामुण्डामाता जोधपुर की आराध्या देवी है। यहाँ प्रतिदिन श्रद्धालु देवी माँ के दर्शनार्थ तथा आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। यह मन्दिर किले के अंतिम दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित है।
चामुण्डामाता जोधपुर के शासकों की कुलदेवी है। यह देवी माँ ना केवल यहाँ के शासकों वरन् जोधपुर के अधिकतर निवासियों की भी कुलदेवी है। राव जोधा की अपनी कुलदेवी माँ चामुण्डा देवी में बहुत श्रद्धा व आस्था थी। राव ने 1460 में किले में चामुण्डामाता का मन्दिर बनवाया तथा उसमे प्रतिमा की स्थापना की। नवरात्रि के दिनों में यहाँ देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मारवाड़ के लाखों श्रद्धालु देवी को पूजते हैं।
चामुण्डामाता के दर्शन कर हमने वहाँ से प्रस्थान किया। मेहरानगढ़ के पास ही जसवंत थड़ा नामक स्मारक स्थित है।
Jaswant Thada | जसवंत थड़ा
जोधपुर में मेहरानगढ़ के समीप ही सफेद संगमरमर से निर्मित एक स्मारक है जिसे जसवंत थड़ा कहा जाता है। इसे जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1888-95) की स्मृति में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदारसिंह ने बनवाया था। इस स्थान पर जोधपुर केराजपरिवार के सदस्यों का दाह-संस्कार किया जाता है। इससे पूर्व जोधपुर के राजपरिवार के सदस्यों का दाह-संस्कार मण्डोर में होता था। इस स्मारक के लिए संगमरमर मकराना से लाया गया था। यह बहुत ही भव्य व कलात्मक स्मारक है। पास ही महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित झील है जो इस स्मारक की सुंदरता को और भी बढाती है।
जसवंत थड़ा के कुछ चित्र (Jaswant Thada Photo Gallery)
महाराजा जसवंत सिंह का स्मारक महाराजा जसवंत सिंह के स्मारक का भीतरी दृश्य जसवंत थड़ा में स्थित अन्य स्मारक जोधपुर के राजपरिवार के सदस्यों के स्मारक महाराजा जसवंत सिंह की प्रतिमा मेहरानगढ़ की ओर इंगित करते जसवंत सिंह की प्रतिमा
जसवंत थड़ा में कुछ समय बिताकर तथा यहाँ बैठे संगीत वादकों से मधुर संगीत सुनकर हमने यहाँ से धर्मशाला की और प्रस्थान किया। अगला दिन हमने मण्डोर के उद्यान व किला देखने के लिए निश्चित किया। जय माँ चामुण्डा। मेहरानगढ़ की चामुण्डामाता सब भक्तों पर दया करे।
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