Mandore Gardens and Fort | Chamunda Mata : जोधपुर की इस यात्रा में हमने पिछले दिन बीसहथ माता तथा मेहरानगढ़ की चामुण्डा माता के दर्शन किये। आज का दिन हमने मण्डोर के gardens देखने के लिए निश्चित किया था। हम सुबह जल्दी ही उठकर मण्डोर के लिए निकल गए। Mandore की यह यात्रा हमारी कुलदेवीधामयात्रा के लिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि मण्डोर किले के खण्डहरों के मध्य यहाँ के शासक राठौड़ों की कुलदेवी का प्राचीन मन्दिर विद्यमान हैं।
मण्डोर जोधपुर से उत्तर दिशा में लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह मारवाड़ की पूर्व राजधानी है। बाद में सुरक्षा कारणों से राजधानी को यहाँ से हटाकर मेहरानगढ़ ले जाया गया। इसे रामायण के राक्षसराज रावण से भी जोड़ा जाता है।
मन्दिर से धर्मशाला पहुंचकर हमने मण्डोर के लिए मिनी बस पकड़ी। करीब आधे घंटे में हम मण्डोर पहुँच गए। बस ने हमें मण्डोर उद्यान के मुख्यद्वार के सामने ही उतारा। मुख्यद्वार पर हमारा स्वागत कुछ बन्दरों ने किया जिनकी लालची निगाहें मेरे कैमरा बैग पर थी। कुछ कदम चलने के बाद मुझे गगनचुम्बी स्थापत्य कला का वैभव दिखाई दिया। जोधपुर नरेशों के ये स्मारक देखते ही सबका मन मोह लेते हैं। इन स्मारकों की ऊंचाई और सुंदरता क्रमशः बढ़ती जाती है। यदि आप अध्यात्म और स्थापत्य वैभव का अद्भुत सामंजस्य देखना चाहते हैं तो आपको मण्डोर की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए यह वो स्थान है जहाँ आप लगातार चलते हुए भी थकते नहीं हैं, क्योंकि यहाँ की वैभवशाली इमारतें हर समय आपको अपनी सुन्दरता में बांधे रखती हैं। यहाँ की हरियाली आपकी ताजगी को बनाये रखती है तथा मनभावन स्मारक आपकी यात्रा को रोचक बनाये रखती हैं। मण्डोर की यात्रा से पहले मैं आपको यहाँ के इतिहास के बारे में बताना चाहूंगा।
मण्डोर का इतिहास
मण्डोर का प्राचीन नाम ‘मांडवपुर’ था। प्राचीन समय में यह नगरी मारवाड़ की राजधानी थी। मण्डोर को असुरक्षित मानकर राव जोधा ने चिड़ियाकूट पर्वत पर मेहरानगढ़ नामक दुर्ग की नींव रखी तथा अपने नाम से जोधपुर नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। वर्तमान में मण्डोर में बौद्ध स्थापत्य शैली में बने किले के अवशेष ही बचे हैं।
यह परिहार शासकों का गढ़ हुआ करता था। इन्होंने मारवाड़ पर शताब्दियों तक राज किया। 1395 में जब चूण्डाजी राठौड़ ने परिहार राजकुमारी से विवाह किया तब उन्हें मण्डोर दहेज में मिला। तब से राठौड़ परिहारों की प्राचीन राजधानी के शासक बन गए।
मण्डोर के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है कि यह लंकापति रावण की ससुराल है। परंतु इस सम्बन्ध में रावण की पत्नी मन्दोदरी तथा मण्डोर के मिलते-जुलते नामों के अलावा अन्य प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसलिए इस विषय में अधिक नहीं कहा जा सकता।
मण्डोर उद्यान में भ्रमण
अब मण्डोर उद्यान की यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। हम चलते रहे और हरे-भरे उद्यान की भूमि पर मन्दिर तथा स्मारकों के रूप में बिखरे मोतियों को निहारते रहे। दूर-दराज से आये पंछी कमल पुष्पों से आच्छादित सरोवर में विचरण कर रहे थे। उनकी कर्णप्रिय चहचाहट इस शान्त वातावरण में मधुर संगीत के समान लग रही थी। जगह-जगह बन्दर अठखेलियां कर रहे थे। वे एक-दूसरे को पकड़ने के लिए भागते, छलांग लगाते और हूम-हूम की आवाजें निकालते हुए स्मारकों के ऊँचे शिखरों पर चढ़ जाते। उन शिखरों पर बैठे और स्मारकों के अंदर पंख फड़फड़ाते, गुटर-गुं करते कबूतर इस स्थान को उसके एकान्त का आभास करा रहे थे।
Mandore Gardens में हॉल ऑफ़ हीरोज और देवताओं की साल
इन्हीं सब दृश्यों को टटोलते हुए हम आगे बढ़ते हुए हॉल ऑफ़ हीरोज व देवताओं की साल के सामने पहुंचे। हॉल ऑफ हीरोज महाराजा अजीतसिंह द्वारा तथा देवताओं की साल महाराजा अभयसिंह द्वारा बनवाया गया है। हॉल ऑफ़ हीरोज में चामुण्डा, महिषासुरमर्दिनी, गोसाईंजी, पाबूजी, रामदेवजी, हरभूजी, और मेहाजी की विशाल प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। देवताओं की साल में गणेश, जलंधरनाथ, शिव-पार्वती, राम, सूर्य और ब्रह्मा की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं।
जनाना महल
यहीं पास में भगवान गणेश का एक मन्दिर है जहाँ हर समय श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है। भगवान् श्री गणेश के दर्शन कर हम आगे बढे। मन्दिर के समीप ही जनाना महल स्थित है। जनाना महल महाराजा अजीतसिंह (1707-1724) के शासनकाल में बनवाया गया था। यह राजस्थान की गर्मी से राजपरिवार की महिलाओं को राहत दिलाने के लिए बनाया गया था। इस महल के प्रांगण में पानी का एक हौज है जो ‘नाग गंगा’ कहलाता है। पर्वतों से पानी की पतली धार लगातार इस कुंड में बहती रहती है।
इस महल में राजस्थान पुरातत्त्व विभाग द्वारा बनवाया गया एक सुन्दर संग्रहालय है, जहाँ पाषाण-प्रतिमाएँ, शिलालेख, पैंटिंग्स तथा अन्य कलात्मक सामग्री प्रदर्शित की गई हैं।
जनाना महल व उद्यान के बाहर तीन मंजिला प्रहरी इमारत है। इसे ‘एक थम्बा महल’ कहा जाता है। यह भी महाराजा अजीतसिंह के शासनकाल में बनवाया गया था।
मण्डोर किले के खंडहर और यहाँ विराजमान माँ चामुण्डा देवी का प्राचीन मन्दिर
जनाना महल के पास ही ऊपर मण्डोर दुर्ग की पहाड़ी पर जाने का रास्ता है। मारवाड़ जैसे प्राचीन तथा विशाल राज्य की पूर्व राजधानी का यह किला, जहाँ से सम्पूर्ण मारवाड़ का संचालन किया जाता था, अब केवल भग्नावशेष के रूप में स्थित है। यहाँ अब महलों, मन्दिरों, स्तम्भों, चबूतरों इत्यादि के खंडहर ही मौजूद हैं। यहाँ कुछ मन्दिरों में आज भी देव प्रतिमाएं विद्यमान हैं जहाँ नियमित रूप से पूजा होती है। इन्हीं मन्दिरों में एक है सिंहवाहिनी देवी चामुण्डा का मन्दिर। यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है।
चूँकि यह किला राठौड़ों का भूतपूर्व केन्द्र था इसलिए यहाँ उनकी कुलदेवी माँ चामुण्डा का मन्दिर होना स्वाभाविक ही है। परवर्ती राजधानी जोधपुर के किले मेहरानगढ़ में भी राव जोधा ने माँ चामुण्डा का मन्दिर बनवाया जो वर्तमान में वहां की लोक आस्था का बड़ा केन्द्र है।
मण्डोर किले के खंडहरों के बीच अपना अस्तित्व बनाये इस मन्दिर के कलात्मक स्तम्भ, जो चारों तरफ धरती पर बिखरे किले के अवशेषों को देखते हुए भी आज भी अपने चबूतरे पर टिककर विशाल प्रस्तर खण्डों को शिरोधार्य कर खड़े हुए हैं। ये माँ चामुण्डा का प्रताप नहीं तो क्या है ?
मन्दिर के सामने पहाड़ी से नीचे माँ के मुख की ओर ही एक झील है जो मानों माँ चामुण्डा के चरणकमलों की वंदना करती है।
माँ चामुण्डा के दर्शन कर हम किले की पहाड़ी से उतरकर नीचे आये तथा मण्डोर उद्यान में कुछ देर विश्राम कर बाहर आये और कुछ अन्य देवालय देखे और उसके बाद बस पकड़कर वापिस जोधपुर के लिए प्रस्थान किया। अगला दिन हमने ओसियां की सच्चियाय माता के दर्शन के लिए निश्चित किया।
Mandor me chamunda mata k mandir k pas etihasik naarsih bheru ka mandir hai . Jo sarkar dwra safe kar rakha hai . Kya aapke pas unki photo hai kya.
Lolas gota parmar se madrecha huye hamari kuldevi kon he