मोढ समाज का इतिहास (History of Modh Samaj)
मोढ समाज मुख्यतः गुजरात में आबाद है। ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड के अनुसार मोढ ब्राह्मणों की उत्पत्ति का इतिहास इस प्रकार है –
Modh Brahmin – पद्मकल्प में भगवान विष्णु शेषशय्या पर योगनिद्रा में मग्न भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। भगवन विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न दो दैत्य मधु-कैटभ ब्रह्मा को मारने दौड़े। ब्रह्मा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने दैत्यों का वध कर दिया और ब्रह्माजी से वर मांगने को कहा। ब्रह्माजी बोले, इस धर्मारण्य में सर्वोत्तम तीर्थ बने। भगवान विष्णु ने शिवजी को प्रेरित किया।
तब तीनों देवताओं ने धर्मारण्य में अठारह हजार ब्राह्मण उत्पन्न किए। विश्वकर्मा ने ब्राह्मणों के लिए माहेरपुर / मोढेरा नामक सुन्दर नगर बनाया। ये ब्राह्मण मोढ ब्राह्मण कहलाये। उन मोढ ब्राह्मणों के विभिन्न अवंटक निर्धारित हुए।
Modh Vanik / Bania – ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड के अनुसार इन मोढ़ ब्राह्मणों के सुख के लिए कामधेनु गौ ने मोढ वैश्यों को उत्पन्न किया। ब्रह्माजी से वैश्य-उत्पत्ति का आदेश पाकर कामधेनु ने आगे के पाँव के खुर से पृथ्वी का विदारण किया। कामधेनु की हुंकार के साथ शिखा और यज्ञोपवीतधारी मोढ वैश्य / वणिक उत्पन्न हो गए। उन वैश्यों के गृहस्थाश्रम के निर्वहन के लिए सुन्दर कन्याओं से उनका विवाह कर दिया गया। वे वैश्य गाय कामधेनु की भुजा के प्रताप से उत्पन्न हुए इसलिए वे गोभुजा (Gobhuja) भी कहलाये।
मोढ समाज के विभिन्न जातियां बनीं –
- मोढ ब्राह्मण समाज (Modh Brahmin)
- मोढ वणिक / वैश्य / बनिया समाज (Modh Vanik / Bania)
- मोढ पटेल समाज (Modh Patel)
- मोढ मंडलिया समाज (Modh Mandalia)
- मोढ मोदी समाज (Modh Modi)
मोढ समाज की कुलदेवी मातंगी देवी Kuldevi Modheshwari Matangi Devi
माहेरपुर / मोढेरा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मोढ ब्राह्मणों की रक्षा के लिए श्रीमाताजी की प्रतिष्ठापना की थी। एक बार कर्णाट दैत्य से पीड़ित होकर ब्राह्मण श्रीमाताजी के पावन धाम पर आकर स्तुति करने लगे। ब्राह्मणों का दुःख देखकर श्रीमाताजी कुपित हो गईं। उनके तेज से सिंहवाहिनी मातंगी देवी का प्राकट्य हुआ। श्रीमाताजी ने मातंगी देवी से कहा महाबली कर्णाट का वध कर दो। देवी मातंगी ने युद्ध में कर्णाट का वध कर दिया।
श्रीमाताजी ने कहा, हे ब्राह्मणों ! आज से माघ कृष्णा तृतीया के दिन प्रतिवर्ष मेरा उत्सव करना। विवाह, यज्ञोपवीत, सीमन्त इन कर्मों के अवसर पर कुलदेवी मातंगी का पूजन करना।
माघ शुक्ला तृतीया के दिन प्रतिवर्ष ब्राह्मण – बनियों को मातंगी कुलदेवी की पूजा करनी चाहिए। मोढ़ बनियों में विवाह होने के बाद एकावन्ना-बावन्ना विधि से पूजा करें। नैवेद्य खाजा लड्डू का रखें।
हर साल कुलदेवी मातंगी का पूजन करना चाहिए। माघ शुक्ला तृतीया को पूजन करके प्रसाद वितरण करना चाहिए। विवाह के समय एकावन्ना विधि का अनुष्ठान करना चाहिए। इससे सुख-समृद्धि बनी रहती है।
मातंगी देवी के मन्दिर –
मातंगी देवी के मन्दिर अहमदाबाद के सोला, रामनगर, सरखेज, गलुदण आदि स्थानों पर तथा कच्छ, मोढेरा, भड़ौच, खेड़ब्रह्मा, नवसारी, कपड़वंज, भावनगर, शेरथा, सिंहोर, सूरत, वड़ोदरा, उज्जैन, भुज, जम्भुआ आदि स्थानों पर स्थापित हैं।
Please tell me what is different between beesa and dasa
Hello Sanjay,
with reference to Modheswari Maa page, can you help to know Kuldevta of Modh samaj. Please also try to give me more details of post wedding ceremony mentioned here { Ekavana and bawana}.
संजय जी क्या आप मोढ पंड्या ब्राम्हण जी मेवाड़ उदयपुर में आकर पाट गांव चावंड सेपुर और डायली में आकर बस गए उनकी गोत्र देवी और कुलदेवता के बारे में जानकारी दे सकते हैं । मैं आपका बहुत आभारी रहूंगा