बधासन या वधासन ‘वृद्धेश्वरी’ का अपभ्रंश शब्द है। यह माता नवदुर्गाओं में नवीं देवी सिद्धिदात्री के रूप में वर्णित है। इन्हें बूढ़ण माता भी कहा जाता है। बधासन माता / वृद्धेश्वरी माता माँ अम्बा का एक विशेषण है, जिसके अनुसार यह माता रिद्धि-सिद्धि में वृद्धि करती है।
बधासन माता मीणा समाज के जेफ गोत्र की कुलदेवी है। बधासन माता का मन्दिर अलवर में स्थित है।
अम्बा-वृद्धा (बूढ़ण) माता का पौराणिक आख्यान –
अम्बा-वृद्धा दो बहिनें हैं। स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में ऐसा कथानक आया है कि पुराने समय में हाटकेश्वर क्षेत्र में महाराज चमत्कार एक धर्मपरायण राजा हुए। उनके द्वारा श्रद्धापूर्वक वहाँ चमत्कारी देवी की स्थापना की गई थी। कौमारव्रत धारण करने वाली उन्हीं देवी ने लाखों मायारूप धारण करने वाले महिषासुर का वध किया था।राजा चमत्कार ने जब चमत्कारपुर का निर्माण किया उस समय नगर की तथा उस नगर में निवास करने वाले समस्त ब्राह्मणों की रक्षा के लिए भक्तिभावित चित्त से चमत्कारी देवी को स्थापित किया था।
स्वामी कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके अपनी शक्ति को उसी चमत्कार नामक श्रेष्ठ नगर में स्थापित किया, जिससे रक्त-श्रृंग पर्वत अत्यंत दृढ़ हो गया। उसके बाद उन्होंने प्रसन्न होकर अंबा, वृद्धा, आभ्रा, माहित्था और चमत्कारी इन 4 देवियों से कहा ‘आप सब मिलकर इस श्रेष्ठ पर्वत को सुरक्षित बनाए रखें, जिससे यह प्रलयकाल में भी अपने स्थान से विचलित ना हो। यह उत्तम नगर सदा मेरे नाम से प्रसिद्ध हो और यहां के सब ब्राह्मण सदा आप चारों देवियों को पूजा देंगे। स्वामी कार्तिकेय जी की इस बात से प्रसन्न होकर उन देवियों ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर अपने त्रिशूल का अग्रभाग लगाकर उस पर्वत को सब ओर से सुदृढ़ कर दिया।
अंबा वृद्धा के द्वारा चमत्कारपुर नगर की रक्षा का वर्णन ऊपर आया है। अंबा वृद्धा देवी जिस भगवती की पूजा करती थी उस कौमार्यव्रत धारण करने वाली भगवती आद्या शक्ति की आराधना में वे सदैव संलग्न रहकर उसी की ज्योति में लीन हो गई। अतः अंबा वृद्धा महाराज चमत्कार की पुत्रियां आदि शक्ति अम्बा में भक्ति भाव में विलीन होने के कारण उन्हीं अम्बा माता के रूप में पूजित हो गई।
नीमकाथाना तहसील के ग्राम गांवड़ी की पहाड़ियों में माता बाघासन देवी का मन्दिर है ,जो नयाबास और पुरानाबास के जेफ मीणाओं की कुलदेवी है और नवरात्रों के दौरान अष्टमी को जेफ मीणा अपनी कुलदेवी के जाड़ूला लेकर जाते हैं | यानि जिस परिवार में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है , वह परिवार नवमी से एक दिन पहले यानि अष्टमी को अपनी कुलदेवी बाघासन की पूजा करने के लिए मन्दिर जाते हैं | पहले यहाँ बकरे की बलि देने की प्रथा प्रचलित थी किन्तु नयाबास ग्राम की मीरा बाई के नाम से प्र्सिद्ध संत श्री सुशीला जी महाराज के मना करने पर अब इस समाज के लोग सुबह मीठे चावल का भोग लगाते हैं और जाड़ूला चढ़ाते हैं | माता बाघासन या बागली के दो भाई थे ,जो बड़े वीर और योद्धा थे | दोनों भाई जेफ समाज के मीणाओं को संगठित करके अंग्रेजों के साथ छापामार पद्धति से युद्ध लड़ा करते थे | जो ब्रिटिश प्रशासन को इन दोनों भाइयों की तलाश रहती थी | इसलिए दोनों भाई अंग्रेज़ सैनिकों से छुपने के लिए गांवड़ी-गणेश्वर की पहाड़ियों में ही ज़्यादातर समय बिताते थे | कहते है एक बार देवी बागली (बागासन) अकेली अपने दोनों भाइयों का खाना लेकर दोपहर की कड़कती धूप में , सुनसान जंगल की पहाड़ियों के बीच से होकर गुज़र रही थी | उसी वक़्त कुछ घुड़सवार अंग्रेज़ सैनिकों ने सामने अकेली लड़की को आते देखा ,तो दुष्टों ने उसको घेर लिया | देवी बागली ने गौरों के मन में आए खोट को भाँप लिया था | उसने मन ही मन माँ वैष्णो देवी का ध्यान किया और पुकार लगाई कि यदि वह माँ की सच्ची भक्त है ,तो यह धरती अभी फट जाय और वह उसमें वह समा जाय | माता ने बागली की पुकार सुन ली और वह धरती में समा गई | यह चमत्कार देखकर अंगेज़ सैनिक घबरा गए और अपने घोड़ों पर वापस छावनी की तरफ भाग गए | किन्तु देवी बागली की चोटी के कुछ बाल ज़मीन की दरार से बाहर सरकंडों के बीच में झांक रहे थे | देवी बागली वैष्णो माता की परम भक्त थी | पंद्रह वर्ष की उम्र में ही उसका दिव्य रूप निखर आया था | उसे माँ वैष्णो देवी का अवतार माना जाने लगा था | देवी बागली ने आकाशवाणी से अपने दोनों भाइयों को अपने साथ हुई घटना के बारे में बतलाया था | जब अंग्रेज़ सैनिकों की कुचेष्टा के बारे में बागली के दोनों भाइयों को पता चला, तो दोनों भाइयों के क्रोध की ज्वाला भड़क उठी | उन्होने प्रण लिया कि वो अंग्रेज़ सैनिकों के शीश काट कर, उन शीशों की बलि वहाँ चढ़ाएँगे, जहां पर सरकंडों के बीच बागली की चोटी दिखाई दे रही थी | इसके बाद उनके प्रण ने नर बलि प्रथा का रूप ले लिया था | यानि अंग्रेज़ सैनिकों के शीश काटने की वजह से उन दोनों भाइयों का नाम अंग्रेजों की हिट-लिस्ट में शामिल हो चुका था | लेकिन अंग्रेजी हुकुमत को इसका कोई प्रमाण नहीं मिल पा रहा था | एक दिन दोनों भाई देवी बागली के धाम पर एक अंग्रेज़ सैनिक का सिर बलि चढ़ाने के लिए लेकर आए ,तो पुलिस की दबिश हो गई | उन्होने अंग्रेज़ सैनिक की मुंडी (सिर) को लकड़ी के चोले के नीचे छुपा दिया | तलाशी के दौरान पुलिस ने जब उस चोले को उठाकर देखा तो बकरे की मुंडी मिली | यह देवी बागली के चमत्कार से ही हुआ था | इस घटना के बाद से देवी के दरबार पर बकरे की बलि दी जाने लगी थी | किन्तु, देवी बागली यानि बागासन की अवतार स्वरूपा कुलदेवी सुशीला बाई के मना करने पर आजकल जेफ मीणाओं ने बकरे की बलि देना छोड़ दिया है | भारतीय सिविल सेवा से सेवा-निवृत श्री के एल मिना साहब के अथक प्रयत्नो के कारण आज बाघासन कुलदेवी के मन्दिर पर भक्तों की तादात बढ़ती जा रही है |
नयाबास ओर मांवडा के मीणा(जेफ)गोत्र के माता के आते है ।माता के श्री चरणो मे नमन करते है ।जो माता जी को मानते है उनको के.एल.मीना सहाब के नाम का सहारा नही लेना पडता माता जी के दरबार मे सब समान है।माता जी तो खुद ही परम शक्ति है।हम मावडावालो की तो इचछा है की माता के दर तक पैदल यात्रा करे ओर जरूर माताजी हमे आशिवाद देगी हम ये काम करे ।हम साधारण ईसान के तोर पर ही माता के मंदिर मे आते है वरना बडी बडी नोकरीया तो मांवडावाले भी लग रहे है ।माता जी के दरबार मे सब बराबर है।
मेरी बातो से किसी को बुरा लगे तो क्षमा चाहता हूं
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गावडी गांव है माताजी का मंदिर जो नीमकाथाना तहशील मे ओर जिला सीकर मे है ।गावडी से आगे गणेशवर है जो भी धार्मिक स्थान है
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