Gotra wise Kuldevi List of Kayastha Samaj : कायस्थ जाति का वर्णन चातुर्वर्ण व्यवस्था में नहीं आता है। इस कारण विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इनको विभिन्न वर्णों में बताया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल के कायस्थों को शूद्र बतलाया तो पटना व इलाहाबाद के उच्च न्यायालयों ने इन्हें द्विजों में माना है। कायस्थ शब्द का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र में मिलता है। इसमें कहा गया है कि कायस्थ राजसभा में लेखन कार्य हेतु नियुक्त किये जाते थे। प्रारम्भ में कायस्थ व्यवसाय-प्रधान वर्ग था लेकिन बाद में कायस्थों का संगठन एक जाति के रूप में विकसित हो गया। कायस्थ वर्ग परम्परागत लिपिकों अथवा लेखकों का वर्ग था।स्वामी विवेकानन्द ने अपनी जाति की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:-
मैं उन महापुरुषों का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपने पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारकों को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमाने में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक, लेखक और धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चन्द्र बसु) से भारतवर्ष को विभूषित किया है। स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं। हम केवल बाबू बनने के लिये नहीं, अपितु हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा हुए हैं।
कायस्थ जाति अपनी वंशोत्पत्ति ब्रह्मा के पुत्र चित्रगुप्त से मानते हैं। चित्रगुप्त ने दो विवाह किए। प्रथम विवाह धर्मशर्मा ऋषि की पुत्री ऐरावती के साथ किया जिनसे चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण, जितेन्द्री नाम के आठ पुत्र हुए। दूसरा विवाह मनु की पुत्री दक्षिणा के साथ हुआ। दक्षिणा से भानू, विमान, बुद्धिमान, वीर्यमान नाम के चार पुत्र हुए। इन बारह पुत्रों के वंश में क्रम से 12 शाखायें कायस्थों की अलग-अलग क्षेत्रों में रहने से हो गई, जो इस प्रकार है- 1. माथुर 2. श्रीवास्तव 3. सूर्यध्वज 4. निगम 5. भटनागर 6. सक्सेना 7. गौड़ 8. अम्बष्ठ 9. वाल्मिकी 10. अष्टाना 11. कुलश्रेष्ठ 12. कर्ण ।
शाखाएं
नंदिनी-पुत्र
भानु
प्रथम पुत्र भानु कहलाये जिनका राशि नाम धर्मध्वज था| चित्रगुप्त जी ने श्रीभानु को श्रीवास (श्रीनगर) और कान्धार क्षेत्रों में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था| उनका विवाह नागराज वासुकी की पुत्री पद्मिनी से हुआ था एवं देवदत्त और घनश्याम नामक दो पुत्रों हुए। देवदत्त को कश्मीर एवं घनश्याम को सिन्धु नदी के तट का राज्य मिला। श्रीवास्तव २ वर्गों में विभाजित हैं – खर एवं दूसर। इनके वंशज आगे चलकर कुछ विभागों में विभाजित हुए जिन्हें अल कहा जाता है। श्रीवास्तवों की अल इस प्रकार हैं – वर्मा, सिन्हा, अघोरी, पडे, पांडिया,रायजादा, कानूनगो, जगधारी, प्रधान, बोहर, रजा सुरजपुरा,तनद्वा, वैद्य, बरवारिया, चौधरी, रजा संडीला, देवगन, इत्यादि।
विभानू
द्वितीय पुत्र विभानु हुए जिनका राशि नाम श्यामसुंदर था। इनका विवाह मालती से हुआ। चित्रगुप्त जी ने विभानु को काश्मीर के उत्तर क्षेत्रों में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। इन्होंने अपने नाना सूर्यदेव के नाम से अपने वंशजों के लिये सूर्यदेव का चिन्ह अपनी पताका पर लगाने का अधिकार एवं सूर्यध्वज नाम दिया। अंततः वह मगध में आकर बसे।
विश्वभानू
तृतीय पुत्र विश्वभानु हुए जिनका राशि नाम दीनदयाल था और ये देवी शाकम्भरी की आराधना करते थे। चित्रगुप्त जी ने उनको चित्रकूट और नर्मदा के समीप वाल्मीकि क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। इनका विवाह नागकन्या देवी बिम्ववती से हुआ एवं इन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा भाग नर्मदा नदी के तट पर तपस्या करते हुए बिताया जहां तपस्या करते हुए उनका पूर्ण शरीर वाल्मीकि नामक लता से ढंक गया था, अतः इनके वंशज वाल्मीकि नाम से जाने गए और वल्लभपंथी बने। इनके पुत्र श्री चंद्रकांत गुजरात जाकर बसे तथा अन्य पुत्र अपने परिवारों के साथ उत्तर भारत में गंगा और हिमालय के समीप प्रवासित हुए। वर्तमान में इनके वंशज गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं , उनको “वल्लभी कायस्थ” भी कहा जाता है।
वीर्यभानू
चौथे पुत्र वीर्यभानु का राशि नाम माधवराव था और इनका विवाह देवी सिंघध्वनि से हुआ था। ये देवी शाकम्भरी की पूजा किया करते थे। चित्रगुप्त जी ने वीर्यभानु को आदिस्थान (आधिस्थान या आधिष्ठान) क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। इनके वंशजों ने आधिष्ठान नाम से अष्ठाना नाम लिया एवं रामनगर (वाराणसी) के महाराज ने उन्हें अपने आठ रत्नों में स्थान दिया। वर्तमान में अष्ठाना उत्तर प्रदेश के कई जिले और बिहार के सारन, सिवान , चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी,दरभंगा और भागलपुर क्षेत्रों में रहते हैं। मध्य प्रदेश में भी उनकी संख्या है। ये ५ अल में विभाजित हैं।
ऐरावती-पुत्र
चारु
ऐरावती के प्रथम पुत्र का नाम चारु था एवं ये गुरु मथुरे के शिष्य थे तथा इनका राशि नाम धुरंधर था। इनका विवाह नागपुत्री पंकजाक्षी से हुआ एवं ये दुर्गा के भक्त थे। चित्रगुप्त जी ने चारू को मथुरा क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था अतः इनके वंशज माथुर नाम से जाने गये। तत्कालीन मथुरा राक्षसों के अधीन था और वे वेदों को नहीं मानते थे। चारु ने उनको हराकर मथुरा में राज्य स्थापित किया। तत्पश्चात् इन्होंने आर्यावर्त के अन्य भागों में भी अपने राज्य का विस्तार किया। माथुरों ने मथुरा पर राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं जैसे इक्ष्वाकु, रघु, दशरथ और राम के दरबार में भी कई महत्त्वपूर्ण पद ग्रहण किये। वर्तमान माथुर ३ वर्गों में विभाजित हैं -देहलवी,खचौली एवं गुजरात के कच्छी एवं इनकी ८४ अल हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं- कटारिया, सहरिया, ककरानिया, दवारिया,दिल्वारिया, तावाकले, राजौरिया, नाग, गलगोटिया, सर्वारिया,रानोरिया इत्यादि। एक मान्यता अनुसार माथुरों ने पांड्या राज्य की स्थापना की जो की वर्तमान में मदुरै, त्रिनिवेल्ली जैसे क्षेत्रों में फैला था। माथुरों के दूत रोम के ऑगस्टस कैसर के दरबार में भी गए थे।
सुचारु
द्वितीय पुत्र सुचारु गुरु वशिष्ठ के शिष्य थे और उनका राशि नाम धर्मदत्त था। ये देवी शाकम्बरी की आराधना करते थे। चित्रगुप्त जी ने सुचारू को गौड़ देश में राज्य स्थापित करने भेजा था एवं इनका विवाह नागराज वासुकी की पुत्री देवी मंधिया से हुआ।इनके वंशज गौड़ कहलाये एवं ये ५ वर्गों में विभाजित हैं: – खरे, दुसरे, बंगाली, देहलवी, वदनयुनि। गौड़ कायस्थों को ३२ अल में बांटा गया है। गौड़ कायस्थों में महाभारत के भगदत्त और कलिंग के रुद्रदत्त राजा हुए थे।
चित्र
तृतीय पुत्र चित्र हुए जिन्हें चित्राख्य भी कहा जाता है, गुरू भट के शिष्य थे, अतः भटनागर कहलाये। इनका विवाह देवी भद्रकालिनी से हुआ था तथा ये देवी जयंती की अराधना करते थे। चित्रगुप्त जी ने चित्राक्ष को भट देश और मालवा में भट नदी के तट पर राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। इन क्ष्त्रों के नाम भी इन्हिं के नाम पर पड़े हैं। इन्होंने चित्तौड़ एवं चित्रकूट की स्थापना की और वहीं बस गए।इनके वंशज भटनागर के नाम से जाने गए एवं ८४ अल में विभाजित हैं, इनकी कुछ अल इस प्रकार हैं- डसानिया, टकसालिया, भतनिया, कुचानिया, गुजरिया,बहलिवाल, महिवाल, सम्भाल्वेद, बरसानिया, कन्मौजिया इत्यादि| भटनागर उत्तर भारत में कायस्थों के बीच एक आम उपनाम है।
मतिभान
चतुर्थ पुत्र मतिमान हुए जिन्हें हस्तीवर्ण भी कहा जाता है। इनका विवाह देवी कोकलेश में हुआ एवं ये देवी शाकम्भरी की पूजा करते थे। चित्रगुप्त जी ने मतिमान को शक् इलाके में राज्य स्थापित करने भेजा। उनके पुत्र महान योद्धा थे और उन्होंने आधुनिक काल के कान्धार और यूरेशिया भूखंडों पर अपना राज्य स्थापित किया। ये शक् थे और शक् साम्राज्य से थे तथा उनकी मित्रता सेन साम्राज्य से थी, तो उनके वंशज शकसेन या सक्सेना कहलाये। आधुनिक इरान का एक भाग उनके राज्य का हिस्सा था। वर्तमान में ये कन्नौज, पीलीभीत, बदायूं, फर्रुखाबाद, इटाह,इटावा, मैनपुरी, और अलीगढ में पाए जाते हैं| सक्सेना लोग खरे और दूसर में विभाजित हैं और इस समुदाय में १०६ अल हैं, जिनमें से कुछ अल इस प्रकार हैं- जोहरी, हजेला, अधोलिया, रायजादा, कोदेसिया, कानूनगो, बरतरिया, बिसारिया, प्रधान, कम्थानिया, दरबारी, रावत, सहरिया,दलेला, सोंरेक्षा, कमोजिया, अगोचिया, सिन्हा, मोरिया, इत्यादि|
हिमवान
पांचवें पुत्र हिमवान हुए जिनका राशि नाम सरंधर था उनका विवाह भुजंगाक्षी से हुआ। ये अम्बा माता की अराधना करते थे तथा चित्रगुप्त जी के अनुसार गिरनार और काठियवार के अम्बा-स्थान नामक क्षेत्र में बसने के कारण उनका नाम अम्बष्ट पड़ा। हिमवान के पांच पुत्र हुए: नागसेन, गयासेन, गयादत्त, रतनमूल और देवधर। ये पाँचों पुत्र विभिन्न स्थानों में जाकर बसे और इन स्थानों पर अपने वंश को आगे बढ़ाया। इनमें नागसेन के २४ अल, गयासेन के ३५ अल, गयादत्त के ८५ अल, रतनमूल के २५ अल तथा देवधर के २१ अल हैं। कालाम्तर में ये पंजाब में जाकर बसे जहाँ उनकी पराजय सिकंदर के सेनापति और उसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के हाथों हुई। मान्यता अनुसार अम्बष्ट कायस्थ बिजातीय विवाह की परंपरा का पालन करते हैं और इसके लिए “खास घर” प्रणाली का उपयोग करते हैं। इन घरों के नाम उपनाम के रूप में भी प्रयोग किये जाते हैं। ये “खास घर” वे हैं जिनसे मगध राज्य के उन गाँवों का नाम पता चलता है जहाँ मौर्यकाल में तक्षशिला से विस्थापित होने के उपरान्त अम्बष्ट आकर बसे थे। इनमें से कुछ घरों के नाम हैं- भीलवार, दुमरवे, बधियार, भरथुआर, निमइयार, जमुआर,कतरयार पर्वतियार, मंदिलवार, मैजोरवार, रुखइयार, मलदहियार,नंदकुलियार, गहिलवार, गयावार, बरियार, बरतियार, राजगृहार,देढ़गवे, कोचगवे, चारगवे, विरनवे, संदवार, पंचबरे, सकलदिहार,करपट्ने, पनपट्ने, हरघवे, महथा, जयपुरियार, आदि।
चित्रचारु
छठवें पुत्र का नाम चित्रचारु था जिनका राशि नाम सुमंत था और उनका विवाह अशगंधमति से हुआ। ये देवी दुर्गा की अराधना करते थे। चित्रगुप्त जी ने चित्रचारू को महाकोशल और निगम क्षेत्र (सरयू नदी के तट पर) में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। उनके वंशज वेदों और शास्त्रों की विधियों में पारंगत थे जिससे उनका नाम निगम पड़ा। वर्तमान में ये कानपुर, फतेहपुर, हमीरपुर, बंदा, जलाओं,महोबा में रहते हैं एवं ४३ अल में विभाजित हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं- कानूनगो, अकबरपुर, अकबराबादी, घताम्पुरी,चौधरी, कानूनगो बाधा, कानूनगो जयपुर, मुंशी इत्यादि।
चित्रचरण
सातवें पुत्र चित्रचरण थे जिनका राशि नाम दामोदर था एवं उनका विवाह देवी कोकलसुता से हुआ। ये देवी लक्ष्मी की आराधना करते थे और वैष्णव थे। चित्रगुप्त जी ने चित्रचरण को कर्ण क्षेत्र (वर्तमाआन कर्नाटक) में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। इनके वंशज कालांतर में उत्तरी राज्यों में प्रवासित हुए और वर्तमान में नेपाल, उड़ीसा एवं बिहार में पाए जाते हैं। ये बिहार में दो भागों में विभाजित है: गयावाल कर्ण – गया में बसे एवं मैथिल कर्ण जो मिथिला में जाकर बसे। इनमें दास, दत्त, देव, कण्ठ, निधि,मल्लिक, लाभ, चौधरी, रंग आदि पदवी प्रचलित हैं। मैथिल कर्ण कायस्थों की एक विशेषता उनकी पंजी पद्धति है, जो वंशावली अंकन की एक प्रणाली है। कर्ण ३६० अल में विभाजित हैं। इस विशाल संख्या का कारण वह कर्ण परिवार हैं जिन्होंने कई चरणों में दक्षिण भारत से उत्तर की ओर प्रवास किया। यह ध्यानयोग्य है कि इस समुदाय का महाभारत के कर्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है।
चारुण
अंतिम या आठवें पुत्र चारुण थे जो अतिन्द्रिय भी कहलाते थे। इनका राशि नाम सदानंद है और उन्होंने देवी मंजुभाषिणी से विवाह किया। ये देवी लक्ष्मी की आराधना करते थे। चित्रगुप्त जी ने अतिन्द्रिय को कन्नौज क्षेत्र में राज्य स्थापित करने भेजा था। अतियेंद्रिय चित्रगुप्त जी की बारह संतानों में से सर्वाधिक धर्मनिष्ठ और सन्यासी प्रवृत्ति वाले थे। इन्हें ‘धर्मात्मा’ और ‘पंडित’ नाम से भी जाना गया और स्वभाव से धुनी थे। इनके वंशज कुलश्रेष्ठ नाम से जाने गए तथा आधुनिक काल में ये मथुरा, आगरा, फर्रूखाबाद, एटा, इटावा और मैनपुरी में पाए जाते हैं | कुछ कुलश्रेष्ठ जो की माता नंदिनी के वंश से हैं, नंदीगांव – बंगाल में पाए जाते हैं |
राजस्थान में माथुर कायस्थ अधिक आबाद है। इन्हें पंचोली भी कहा जाता है। ‘कायस्थ जगत’ नामक पत्रिका में माथुर (कायस्थ) वर्ग की 84 शाखाओं का नामोल्लेख कुलदेवियों के साथ मिलता है, जो इस प्रकार है-
Kuldevi List of Kayastha Samaj कायस्थ जाति के गोत्र एवं कुलदेवियां
सं. | कुलदेवी | शाखाएं |
---|---|---|
1. | जीवण माता | बनावरिया (झांमरिया), टाक, नाग, ताहानपुरा, गऊहेरा |
2. | बटवासन माता | साढ़ मेहंता (भीवांणी), अतरोलिया, तनोलिया, टीकाधर |
3. | मंगलविनायकी | सहांरिया (मानक भण्डारी) |
4. | पीपलासन माता | नैपालिया (मुन्शी), घुरू, धूहू |
5. | यमुना माता | राजोरिया, कुस्या |
6. | ककरासण माता | एंदला (नारनोलिया) |
7. | भांणभासकर | छार छोलिया |
8. | अंजनी माता | शिकरवाल, सेवाल्या, विदेवा (बैद) |
9. | कुलक्षामिणी माता | नौहरिया (लवारिया) |
10. | बीजाक्षण माता | सांवलेरिया, कुलहल्या, जलेश्वरिया |
11. | राजराजेश्वरी माता | जोचबा |
12. | श्रीगुगरासण माता | सिरभी |
13. | हुलहुल माता | कामिया (गाडरिया), कटारमला, कौटेचा, गडनिया, सौभारिया, महाबनी, नाग पूजा हुसैनिया |
14. | चामुण्डा माता | चोबिसा (कोल्ली), जाजोरिया, मोहांणी, मगोडरिया,पासोदिया (पासीहया) |
15. | आशापुरा माता | ककरानिया, गलगोटिया, दिल्लीवाल, करना, धनोरिया, गुवालैरिया, कीलटौल्या |
16. | श्रीसाउलमाता | सीसोल्या (मनाजीतवाल), ध्रुबास |
17. | श्रीपाण्डवराय माता | नौसरिया (मेड़तवाल), बकनोलिया, भांडासरिया |
18. | श्रीदेहुलमाता | तबकलिया |
19. | श्री जगन्नामाता | कुरसोल्या |
20. | नारायणी माता | वरणी (खोजा) |
21. | कमलेश्वरी माता | हेलकिया |
22. | पुरसोत्मामाता | सिरोड़िया |
23. | कमलासन माता | सादकिया, छोलगुर |
24. | महिषमर्दिनी | महिषासुरिया |
25. | द्रावड़ी हीरायन | कटारिया |
26. | लक्ष्मीमाता | कलोल्या, आंबला |
27. | योगाशिणी माता | चन्देरीवाल |
28. | चण्डिका माता | पत्थर चट्टा, छांगरिया |
29. | जयन्ती माता | मासी मुरदा |
30. | सोनवाय माता | अभीगत, टंकसाली |
31. | कणवाय माता | माछर |
32. | पाड़मुखी माता | कबांणिया |
33. | हर्षशीलि माता | तैनगरा |
34. | इंद्राशिणी माता | धोलमुखा (गोड़ा) |
35. | विश्वेश्वरी माता | मथाया |
36. | अम्बा माता | धीपला |
37. | ज्वालामुखी माता | होदकसिया |
38. | शारदा माता | बकनिया |
39. | अर्बुदा माता | कवड़ीपुरिया (बकहुपुरा) |
40. | कुण्डासण माता | सींमारा |
41. | पाडाय माता | माखरपुरिया, पुनहारा |
42. | हींगुलाद माता | सरपारा |
43. | प्राणेश्वरी माता | लोहिया |
44. | बेछराय माता | सिणहारिया |
45. | सांवली माता | वरण्या (बरनोल्या) |
46. | लक्ष्मीया हलड़ | आसौरिया (आसुरिय) |
47. | पहाड़ाय माता | फूलफगरसूहा (नोहगणा) |
इसके अलावा भटनागर, सक्सेना और श्रीवास्तव की कुलदेवियों का भी उल्लेख मिलता है।
कायस्थ शाखा | गोत्र | कुलदेवी |
---|---|---|
भटनागर | सठ | जयन्ती माता |
सक्सेना | हंस | शाकम्भरी माता |
श्रीवास्तव | हर्ष | लक्ष्मी माता |
नवरात्रि का उपवास आसोज एवं चैत्र के महीने में कायस्थ कुल के स्त्री एवं पुरुष सम्मिलित रूप से करते हैं। वे अपनी-अपनी कुलदेवियों की पूजा अर्चना दोनों प्रकार के भोज अर्पित कर करते हैं। वैसे हर माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी की पूजा होती है। जो जीवण माता के रूप में मानी जाती है। कायस्थों के विभिन्न शाखाओं के वंशधारी वैवाहिक अवसरों पर भी कुलदेवी का मनन करते हैं। विवाह होने के उपरान्त नवदम्पत्ति को सबसे पहले कुलदेवी की जात देने ले जाया जाता है। जिससे उनका नव जीवन सफल और कठिनाइयों से मुक्त रहे।
कायस्थों की जोधपुर स्थित विभिन्न शाखाओं की कुलदेवियों में जीवणमाता मंदिर (मंडोर), बाला त्रिपुरा सुंदरी (नयाबास), राजराजेश्वरी माता (छीपाबाड़ी), मातेश्वरी श्री पाण्डवराय (फुलेराव), नायकी माता (अखेराज जी का तालाब) आदि के मन्दिर समाज में बड़े ही प्रसिद्ध हैं।
सन्दर्भ :-
राजस्थान की जातियों का सामाजिक व आर्थिक जीवन : डॉ. कैलाशनाथ व्यास, देवेंद्रसिंह गहलोत।
राजस्थान की कुलदेवियाँ : डॉ. विक्रमसिंह भाटी।
कायस्थ मंच ।
मदनलाल तिवारी, मदन कोश ।
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मानक भंडारी की कुलदेवी मां मंगलविनायक कहा पर स्थित है
manakbhandariyeo kee maata nayki gaun jo kee kekri zila ajmer rajasthan me padta hai waha sistit hai. inhe annpurna mata ke naam se jaana jaata hai.
for more inquiry please call 9782620000
अघोरी गोत्र की कुलदेवी कोन है,बताने का कष्ट करे।धन्यवाद
Durga mata
नोसरिया मेड़तवाल की कुलदेवी जी का मंदिर कुचेरा में कहा पेर है
अच्छी जानकारी.. जरुरी दस्तावेज… और विस्तृत सामग्री सम्बन्धित तथ्य के लिंक यहाँ भी मिलें तो अच्छा हो
कायस्थ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। काय शब्द निर्देशित करता है ‘क्षर ब्रह्म’ को। स्थ इंगित करता है ‘अक्षर ब्रह्म’ को। काय या देह के निर्माण मे पार्थिव पूषा प्राण का योगदान होने से वेद ने इसे सच्छुद्र या शूद्र बताया है ; अक्षर प्राण मूलत: ब्रह्म प्राण। कोश मे काय का अर्थ शूद्र ही लगाया है, लेकिन स्थ = अक्षर का अर्थ इन्द्र ग्रहण करते हुए क्षत्रिय पुरुष एवम् शूद्रा स्त्री से कायस्थ की उत्पत्ति बताई है जो वर्ण-संकरता का भ्रामक निष्कर्ष है। ब्रह्मा, चित्रगुप्त (वर्च तेज या वीर्य), धर्मात्मा और मनु के नाम ही पर्याप्त हैं सही निष्कर्ष हेतु। अन्य नाम भी वैदिक नामो के अपभ्रंश या पर्याय हैं जिनसे ब्राह्मण होने के अतिरिक्त अन्य अर्थ नहीं निकलता। लेखन कार्य का बुद्धि से संबंध है, न कि भुजा से। महाराष्ट्र मे फडनवीस (लेखक) ब्राह्मण हैं, जब कि इतिहास मे नाना फडनवीस को कुछ का कुछ बताया गया है। ब्राह्मणेत्तर गोत्र न लगाए जाने की परम्परा से ‘ सर्वे प्रजा: कश्यपा:’ मध्यकालीन उपज है। कुल का अर्थ ‘वंश’ है और उसकी अहर्गण संख्या 21 है। क्षत्रिय मे दो वंश निर्देशित हैं – अग्निवेश और सोम/चन्द्रवंश। सूर्यवंश बाद का क्षेपक है, क्योंकि सूर्य अग्नि का स्थानापन्न है। कुलदेवी का संबंध शक्ति से है। आदि शक्ति पार्वती (पर्ववती) हैं। अन्य देवियां उनके विभिन्न प्रतिरूप हैं, प्रयोजनानुसार। शक्ति के स्थान पर्वत पर होना तय है। कालान्तर मे राजनीतिक अराजकता से उन्हे यथास्थान पूजा जाने लगा। बटवासनी का वैदिक नाम सावित्री है जिसे आज भी वट-सावित्री के रूप मे पितृकर्म के निमित्त पूजा जाता है। अन्य तथ्य आपके अपने लेख मे सुस्पष्ट हैं। पुष्टि हरिद्वार मे पिछले 1200 वर्ष की वंशावली से हो जाएगा। अस्तु।
मेरे ससुराल का गौत्र हासीवाल है , सरनेम भटनागर है , कुलदेवी कौनसी है ।
इस लेख के अनुसार भटनागरों की कुलदेवी जयंति देवी हैं।
मेरा नाम अमित कुमार कर्ण है
मेरा गोत्र और कुल क्या होगा
Ranaram. Kag
मैं कश्यप गोत्र का हूँ।
मेरे कुलदेवता और कुलदेवी का नाम क्या होगा?
मैं अम्बष्ट कायस्थ और कश्यप गोत्र का हूँ।
मेरे कुलदेवता और कुलदेवी का नाम क्या होगा?
Mera Naam dhaneshwar sarkar hai kayast gotta hai meri kul dewi dewta ka kya Naam hoga
कुल देवता– हिमवान
कुल देवी–अंबा माता(भूजंगाक्षी)
Meri kul devi kon hen ? men kanpur kalpi UP shetr ka rahane vala hun. Bataiye please.
क्या कायस्थ लोग गुप्ता उपनाम लगाते है?
कृपया बताये। मुझे अपना गोत्र नही पता।
What is the origin of Panji pravandh in karn kayastha ?
My name is praveen saxena
My gotra kudaysiya
Up say hay
But I don’t now my kuldevi name
प्रवीन जी आपका गोत्र कश्यप एवं अल्य कुदेशिया है एवं आपकी कुलदेवी शकुंभारी देवी है..
Hamari alh bhi kudesiya h to kya hamara gotra bhi kashyap hoga . Please rply me abi tk hm bhi apna gotra kudesiya hi samjte the
Up se hay new my kuldevi name
Srivastava ka kya hoga
Sir
Mera Naam Mukesh Kumar bamrah hai mere ghotar Kashyap hai kul Dev baba surgal Dev Ji or sahjoyti mata shilavanti hai. Please mere kul k bare main sari information bataiye
Thanks & regards
Shrivastava ka Gotra aur Kuldevi Kaun hai.
Please tell me where is “Bhaan Bhaskar” mata temple situated.
निखिल पता लग जाये तो मुझे खबर जरूर करना
9521159551
भांण भासकर माता (कुलदेवी) छार छोलिया
का मंदिर कहाँ है? कोई information हो तो प्लीज कॉल या मेसेज करना । 9462771820
Mera Nam divyesh kayasth hai. Me Hindu bhadbhunja kayasth hu aur mera gotra Kashyap hai,or hamari kuldevi ma ashapuri ma hai,krupya bhadbhunja kayasth ke bare me thodi jankari de..
बेटे भड़भुजा या भुर्जी कायस्थ मैं नहीं आते है आपको किसी ने गलत जानकारी दी है कि भड़भुजा कायस्थ होते है यह जाती बैक वर्ड मैं आती है कुछ लोग जाती छिपाने के लिए सक्सेना या श्रीवास्तव लिखने लगे है जो गलत है सत्यता पता चलने पर शर्मिंदा होना पड़ता है हम जो है शान से बताइयेगा हम भुर्जी है. धन्यवाद
I am mitesh shukla mere kuldevi konsi he. Mera gotra
Gotamgotra he.
Mera Naam smita hai, vantem sattari Goa Mera gaon hai, gotra Goutam aur kuldevi vikaravasha hai , kis Devi ka Naam vikarvasha hai, aur Devi ka Mandir kis jagah hai, Kshatriya Maratha kunabi gond samaj ki hoon, please reply. Is samaj ki kuldevta ke bare mein information hai kya?
Kovikaravasha
निम्बाजा (विकारवासा) माता मंदिर गौतम गोत्र की कुलदेवी का एक मंदिर है यह मंदिर राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल के छोटे से गांव नरता में स्थित है ‘ यहां हर वर्ष पाटोत्सव और [1] नवचंडी पाठ का आयोजन होता है ‘ वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को कुलदेवी का जन्म माना जाता है इस दिन बड़ी संख्या में लोग आते-जाते रहते हैं ‘
Mathur ka kya gotra hota he
Me bihar ka rehne bala hu me kaystha asthna smaj se hu meri kuldevi mata banni mata he or durga mata
हमारी कुल देवी सामोद वाली माता है । जिनका मंदिर जयपुर के पास है । कृपया सूची में नाम दर्ज करें । हमारा गोत्र परतापूरिया वैद्य है । जिसका सूची में नाम नहीं है
Kashyap kab sa kayasth lga ja pta kr ja k
Srivastava of Kashyap Gotra, Who is Kul Devi
मैं सक्सेना हूँ और मेरा गोत्र कुड़कूडेसिया है मेरी कुलदेवी और उनका स्थान क्या होगा
Karan kayasth Nag gotra ki kuldevi kaun hai..
गुजरात के कच्छी एवं इनकी ८४ अल हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं- कटारिया, सहरिया, ककरानिया, दवारिया,दिल्वारिया, तावाकले,
राजौरिया, नाग, गलगोटिया, सर्वारिया,रानोरिया *****(गुजरात के कच्छी 84 अल है तो आपने 11 नाम बताऐ है 73 नाम बता सकते हैं आपकी बहुत मेहरबानी होगी कियु के मे ऐक कच्छी हु ओर मेरी जाती संगार है और (मेरी अल साकरीया है) तो ईसके बारेमे जनकारी लेनीथी [email protected] हैह मेरी मेले आडी है तो जरूर मेल फीजीऐगा
सहारिया गोत्र की कुलदेवी कहा पर है
My Name is Suraj Balmiki But I Don’t Know My Name Gotra and Kuldevi..
गलघोटिया ( सोहना वाले ) की कुलदेवी “ब्रिजेश्वरी देवी ” नगरकोट वाली माता हैं।
Molawat Bhatnagar from Udaipur, Rajasthan
kul devi Jambwa Mata, Ramgarh, Raj. near Jaipur .
I came here to search for the origins of my gotra. Please बताएं
इस गोत्र का नाम हमारे पूर्वज जो मालवा से चित्तौड आए थे, शायद राणा संग्राम सिंह जी के आमंत्रण पर, उनके मालवा से उदभव होने से मौलावत हुआ।
Another theory is linked to mahlawat but that is a jat gotra.
Please inform about the parent gotra.
हिमाचल प्रदेश में कायस्थ किस सरनेम से जाना जाता है
kaysth mein Bhardwaj got hota hai kya??
Great post
Main Srivastava (UP) . Gotra Kaystha.
Hamara kuldevi and kuldevta Kya honge?
My name is Dhirendra Khare with forefathers from Jhansi and Hamirpur UP. Please let me know my gotra and kuldevi
Mera naam Debasish Das mera gothra modhgollya,me kayastha hu bengali.mera kuldevi kon hai
Meta naam suresh hai gotra samota hai mere kuldevta our kuldevi koun hain.
Mai ambasth kayastha hun Mera gotra kasim m.to Mera kuldevta kon h
MY NAME IS ALOK SAXENA
Ancestor are from Badaun
Want to know the name of my Kul Devi.
Our Ancestor’s told that our gotra is Kasyap.
Please help.