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बुध प्रदोष (सौम्यवारा) व्रत कथा, पूजा विधि, महत्त्व व मुहूर्त | Budh Pradosh Vrat Katha

Budh Pradosh Vrat Katha in Hindi : प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को “प्रदोष” कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। जब प्रदोष व्रत बुधवार को आता है तो इसे ‘सौम्य वारा प्रदोष’ कहा जाता है।  इस शुभ दिन पर व्रत रखने से भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है और ज्ञान भी प्राप्त होता हैं।

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 2018 में बुधवार के दिन एक ही प्रदोष व्रत पड़ रहा है। तिथि के साथ यहाँ उस दिन की पूजा का मुहूर्त दिया जा रहा है –
दिनांकवारप्रदोष व्रत (शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष)समय
 14 मार्च बुधवार सौम्यवारा प्रदोष व्रत (कृष्ण) 18:24 to 20:50

बुध प्रदोष (सौम्यवारा) व्रत की विधि | Budh Pradosh Vrat Puja Vidhi :

प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।  नित्यकर्मों से निवृत होकर भगवान् शिव का नाम स्मरण करना चाहिये। पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिये।

प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है। गंगाजल से पूजन के स्थान को शुद्ध करना चाहिए और उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।

विभिन्न पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिवजी की पूजा करनी चाहिए। एक प्रारंभिक पूजा की जाती है जिसमे भगवान शिव को देवी पार्वती भगवान गणेश भगवान कार्तिक और नंदी के साथ पूजा जाता है। उसके बाद एक अनुष्ठान किया जाता है जिसमे भगवान शिव की पूजा की जाती है और एक पवित्र कलश में उनका आह्वान किया जाता है। पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।  इस अनुष्ठान के बाद भक्त प्रदोष व्रत कथा सुनते है या शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं। महामृत्यंजय मंत्र का 108 बार जाप भी किया जाता है। पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए। मान्यता है कि एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।

बुध प्रदोष (सौम्यवारा ) व्रत कथा | Budh Pradosh Vrat Katha in Hindi :

सूत जी बोले- अब मैं आप लोगों को बुधवार त्रयोदशी व्रत की कथा तथा विधि सुनाता हूँ। इस व्रत के दिन केवल एक ही समय भोजन करें। हरे वस्त्र पहनें और हरी वस्तुओं का सेवन करें। प्रात: काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो कर शंकर जी का पूजन धूप-दीप,बेल पत्र से करें।
प्राचीन काल की कथा है, एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लिवाने के लिये अपनी ससुराल पहुँचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जायेगा।
उस पुरुष के सास-ससुर ने, साले-सालियों ने उसको समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन वह पुरुष नहीं माना। विवश होकर सास-ससुर को अपने जमाता और पुत्री को भारी मन से विदा करना पड़ा ।
पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर से बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिये पानी लेने गया। जब वह पानी लेकर लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी पराये पुरुष के लाये लोटे से पानी पीकर , हँस-हँसकर बात कर रही है। वह पराया पुरुष बिल्कुल इसी पुरुष के शक्ल-सूरत जैसा हीं था। यह देखकर वह पुरुष दूसरे अन्य पुरुष से क्रोध में आग-बबूला होकर लड़ाई करने लगा। धीरे-धीरे वहाँ काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी । इतने में एक सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि सच-सच बता तेरा पति इन दोनों में से कौन है ? लेकिन वह स्त्री चुप रही क्योंकि दोनों पुरुष हमशक्ल थे ।
बीच राह में पत्नी को इस तरह लुटा देखकर वह पुरुष मन ही मन शंकर भगवान की प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मुझे और मेरी पत्नी को इस मुसीबत से बचा लो, मैंने बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर जो अपराध किया है उसके लिये मुझे क्षमा करो। भविष्य में मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी। श्री शंकर भगवान उस पुरुष की प्रार्थना से द्रवित हो गये और उसी क्षण वह अन्य पुरुष कही अंतर्ध्यान हो गया। वह पुरुष अपनी पत्नी के साथ सकुशल अपने नगर को पहुँच गया। इसके बाद से दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत करने लगे।

बुध प्रदोष (सौम्यवारा ) व्रत उद्यापन विधि | Budh Pradosh Vrat Udyapan Vidhi :

स्कंद पुराणके अनुसार इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

उद्यापन वाली त्रयोदशी से एक दिन पूर्व श्री गणेश का विधिवत षोडशोपचार से पूजन किया जाना चाहिये।  पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है। इसके बाद उद्यापन के दिन प्रात: जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें। इसके बाद रंगीन  वस्त्रों और रंगोली से सजाकर मंडप तैयार कर लें। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। और विधि-विधान से शिव-पार्वती का पूजन करें। भोग लगाकर उस दिन जो वार हो उसके अनुसार कथा सुनें व सुनायें।

‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया जाता है। हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है। अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद प्रसाद व भोजन ग्रहण करें।

अन्य वारों की प्रदोष व्रत कथायें –

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मंगलवार की प्रदोष व्रतकथा >>

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शुक्रवार की प्रदोष व्रतकथा >>

शनिवार की प्रदोष व्रतकथा >>

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