Mahatara Jayanti | Neeltara | Ugratara | Ekjata | Who is Mahatara | Mahatara Puja Vidhi | Origin of Mahatara | Tantra Sadhna | Mahaneela | Mahatara Katha | Mahatara
महातारा जयन्ती | Mahatara Jayanti :
Mahatara Jayanti Details in Hindi : भारतवर्ष में महातारा जयंती पर्व को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दुनियाभर में रहने वाले हिन्दुओं के लिए महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान व पर्व है। यह पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथी को मनाया जाता है। भगवती तारा दस महाविद्याओं में से एक है। यह देवी शक्ति का बहुत ही उग्र और आक्रामक रूप है। इस दिन महातारा की पूजा करना तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह माता तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। देवी तारा देवी शक्ति का एक रूप है। इनकी पूजा अर्चना करने से भक्त को ज्ञान, विज्ञानं व प्रसन्नता का फल मिलता है। देवी तारा को तारिणी विद्या के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी तारा अपने भक्त को शत्रुओं से बचाती है तथा भक्त को सफलता व मोक्ष प्रदान करती है।
देवी महातारा कौन है? | Who is Mahatara :
देवी महातारा दस विद्याओं में से एक है तथा यह आदिशक्ति का उग्र रूप है। इन्हें तारिणी विद्या, एकजटा, नील सरस्वती, नीलतारा, उग्रतारा तथा महानीला भी कहा जाता है। महातारा को सूर्य प्रलय की अधिष्ठात्री देवी का उग्र रूप मन जाता है। माँ महातारा शक्ति स्वरूपा है। जब सब तरफ निराशा हो तब माँ अपने भक्तों को विपत्तियों से मुक्त करती हैं। इस ब्रह्मांड में जितने भी पिंड हैं, उन सभी की स्वामिनी देवी तारा ही मानी जाती है।
देवी महातारा की उत्पत्ति कैसे हुई ? | Origin of Mahatara :
पृथ्वी की उत्पत्ति से पहले सब तरफ घोर अंधकार था। इस अंधकार में कोई ऊर्जा नहीं थी। इस अंधकार की स्वामिनी देवी माँ काली थी। इस अंधकार में एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई, जिसे तारा के रूप में जाना जाने लगा। देवी तारा अक्षोभ्य नामक एक संत की शक्ति है। माना जाता है कि वह ब्रह्मांड के हर पिंड की स्वामिनी है। देवी की उत्पत्ति पृथ्वी की उत्पत्ति के समय हुई थी इसलिए इन्हें महातारा के रूप में जाना जाने लगा।
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ऐसे पड़ा माँ महातारा का नाम ”महानीला व नीलतारा” | Mahaneela, Neeltara
देवी तारा को महानीला व नीलतारा के नाम से भी जाना जाता है। इन नामों के पीछे एक किंवदंती है। देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन की लड़ाई के दौरान, बहुत सी चीजें समुद्र से बाहर निकलीं। जब विष बाहर आया, तब सभी संतों और देवों ने भगवान शिव से सहायता की याचना की। भगवान शिव ने जहर पी लिया और संसार की रक्षा की। उन्होंने अपने कंठ में ही रोक लिया, जिसके कारण उनका पूरा शरीर का रंग नीला हो गया। माँ भगवती ने उनकी पीड़ा महसूस की और उन्होंने भगवान् शिव के शरीर में प्रवेश किया और विष के प्रभाव को कम किया और उन्हें राहत दी। इससे विष के प्रभाव से देवी का शरीर नीला हो गया। भगवान् शिव ने उन्हें महानीला नाम से सम्बोधित किया। इसी कारण देवी को नीलतारा भी कहा जाता है।
देवी महातारा की पूजा कैसे की जाती है ? Puja Vidhi of Mahatara
देवी महातारा की पूजा करने से व्यक्ति को मुखर शक्ति प्राप्त होती है। देवी उसे शत्रुओं से बचाती है तथा मोक्ष प्रदान करती है। माँ की पूजा अर्चना के लिए इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप करना चाहिए- स्त्री हुन हन हुन फट्ट। इससे भक्त का कल्याण होता है। माँ तारा जयंती के दिन माँ की पूजा विधि-विधान से सम्पन्न करें। इस दिन प्रातः काल उठें तथा स्नान-ध्यान से पवित्र हो लें। माता की प्रतिमूर्ति को गंगा जल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराकर उन्हें पूजा स्थल के चौकी पर स्थापित करे। तदुपरांत, उनका श्रृंगार करें । माँ तारा की पूजा धुप, दीप, अगरबत्ती आदि से करें। शक्तिानुसार, इस दिन निराहार व्रत करें तथा रात्रि में फलाहार करें ।