Chamunda Mata Temple Chamba, Himachal Pradesh : हिमाचल प्रदेश के चम्बा में स्थित चामुण्डा माता का प्राचीन और कलात्मक मंदिर एक पर्वत की चोटी पर अवस्थित है जहां से चंबा की स्लेट निर्मित छतों और रावी नदी व उसके आसपास का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है।
उत्तरी भारत की मेरी इस यात्रा में मैं अपने गृहनगर राजस्थान के सीकर से चलकर हरियाणा होते हुए पंजाब पहुंचा। वहां पावन नगरी अमृतसर के दर्शन करके जम्मू के कटरा में स्थित माँ वैष्णोदेवी के भवन पहुंचा। उसके बाद जम्मू से हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया और बनीखेत, डलहौज़ी होते हुए चम्बा पहुंचा।
आज की इस पोस्ट में मैं चम्बा की चामुण्डा देवी का Video प्रस्तुत कर रहा हूँ। साथ ही इस वीडियो में चम्बा से चुवाड़ी तक की आगे की यात्रा का वीडियो है जिसमें आप Landslides / भूस्खलनों के कारण रास्तों की दुर्गमताओं को देख सकते हैं –
Chamunda Mata Temple Chamba Video :
माँ दुर्गा को समर्पित चामुण्डा माता का यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर के दरवाजों के ऊपर, स्तम्भों और छत पर आकर्षक नक्काशी की गई है। मंदिर के ठीक सामने सिंह की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के पीछे भगवान् शिव का एक छोटा मंदिर है। यह मंदिर चंबा से तीन किलोमीटर दूर चंबा-जम्मुहार रोड़ के दायीं ओर है। भारतीय पुरातत्व विभाग मंदिर की देखभाल करता है।
चम्बा भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक नगर है। हिमाचल प्रदेश का चंबा अपने रमणीय मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के लिए सर्वविख्यात है। रावी नदी के किनारे 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा। चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरे चंबा ने प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजो कर रखा है। प्राचीन काल की अनेक निशानियां चंबा में देखी जा सकती हैं। यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल ये हैं –
Other Visiting Places in Chamba, Himachal Pradesh
चंपावती मंदिर | Champawati Temple
यह मंदिर राजा साहिल वर्मन की पुत्री को समर्पित है। यह मंदिर शहर की पुलिस चौकी और कोषागार भवन के पीछे स्थित है। कहा जाता है कि चंपावती ने अपने पिता को चंबा नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। मंदिर में पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर | Laxmi Narayan Temple
यह मंदिर पांरपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। चंबा के 9 प्रमुख मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है। कहा जाता है कि सवसे पहले यह मन्दिर चम्बा के चौगान में स्थित था परन्तु बाद में इस मन्दिर को राजमहल (जो वर्तमान में चम्बा जिले का राजकीय महाविद्यालय है) के साथ स्थापित कर दिया गया। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है। मंदिर का ढांचा मंडप के समान है। मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है।
भूरी सिंह संग्रहालय | Bhoorisingh Museum
यह संग्रहालय 14 सितंबर 1908 ई. को खुला था। 1904-1919 तक यहां शासन करने वाले राजा भूरी सिंह के नाम पर इस संग्रहालय का नाम पड़ा। भूरी सिंह ने अपनी परिवार की पेंटिग्स का संग्रह संग्रहालय को दान कर दिया था। चंबा की सांस्कृतिक विरासत को संजोए इस संग्रहालय में बसहोली और कांगड़ा आर्ट स्कूल की लघु पेंटिग भी रखी गई हैं।
भांदल घाटी | Bhandal Ghati
यह घाटी वन्य जीव प्रेमियों को काफी लुभाती है। यह खूबसूरत घाटी 6006 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह घाटी चंबा से 22 किमी .दूर सलूणी से जुड़ी हुई है। यहां से ट्रैकिंग करते हुए जम्मू-कश्मीर पहुंचा जा सकता है।
भरमौर | Bharmour
चंबा की इस प्राचीन राजधानी को पहले ब्रह्मपुरा नाम से जाना जाता था। 2195 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भरमौर घने जंगलों से घिरा है। किवदंतियों के अनुसार 10 वीं शताब्दी में यहां 84 संत आए थे। उन्होंने यहां के राजा को 10 पुत्र और एक पुत्री चंपावती का आशीर्वाद दिया था। यहां बने मंदिर को चौरासी नाम से जाना जाता है। लक्ष्मी देवी, गणेश और नरसिंह मंदिर चौरासी मंदिर के अन्तर्गत ही आतें हैं। भरमौर से कुगती पास और कलीचो पास की ओर जाने के लिए उत्तम ट्रैकिंग रूट है।
चौगान | Chaugan
यह खुला घास का मैदान है। लगभग 1 किलोमीटर लंबा और 75 मीटर चौड़ा यह मैदान चंबा के बीचों बीच स्थित है। चौगान में प्रतिवर्ष मिंजर मेले का आयोजन किया जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में स्थानीय निवासी रंग बिरंगी वेशभूषा में आते हैं। इस अवसर पर यहां बड़ी संख्या में सांस्कृतिक और खेलकूद की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। लेकिन अब चौगान तीन चार हिसों में बंट चूका है
वजरेश्वरी मंदिर | Vajreshwari Temple
यह प्राचीन मंदिर एक हजार साल पुराना माना जाता है। प्रकाश की देवी वजरेश्वरी को समर्पित यह मंदिर नगर के उत्तरी हिस्से में स्थित जनसाली बाजार के अंत में स्थित है। शिखर शैली में निर्मित इस मंदिर का छत लकड़ी से बना है और एक चबूतरे पर स्थित है। मंदिर के शिखर पर बेहतरीन नक्काशी की गई है।
सुई माता मंदिर | Sui Mata Temple
चंबा के निवासियों के लिए अपना जीवन त्यागने वाली यहां की राजकुमारी सुई को यह मंदिर समर्पित है। यह मंदिर शाह मदार हिल की चोटी पर स्थित है। यहाँ सुई माता नें कुछ समय के लिए विश्राम किया था। यहाँ सुई माता की याद में यहां हर साल सुई माता का मेला चैत महीने से शुरु होकर बैसाख महीने तक चलता है। यह मेला महिलाओं और बच्चों द्वारा मनाया जाता है। मेले में रानी के गीत गाए जाते हैं और रानी के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग सुई मन्दिर से रानी के वलिदान स्थल मलूना तक जाते हैं।
हरीराय मंदिर | Harirai Temple
भगवान विष्णु का यह मंदिर 11 शताब्दी में बना था। कहा जाता है कि यह मंदिर सालबाहन ने बनवाया था। मंदिर चौगान के उत्तर पश्चिम किनारे पर स्थित है। मंदिर के शिखर पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। हरीराय मंदिर में चतुमूर्ति आकार में भगवान विष्णु की कांसे की बनी अदभुत मूर्ति स्थापित है। केसरिया रंग का यह मंदिर चंबा के प्राचीनतम मंदिरों में एक है।
लखन मंदिर भरमौर | Lakhan Mandir Bharmour
यह हिमाचल प्रदेश का शिखर शैली में बना बहुत पुराना मंदिर है। देवी लक्ष्मी को यहां महिसासुरमर्दिनी रूप में दिखाया गया है। मंदिर में स्थापित देवी की पीतल की प्रतिमा राजा मेरू वर्मन के उस्ताद कारीगर मुग्गा ने बनाई थी। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां हर साल मणिमहेश यात्रा का आयोजन होता है।
रंगमहल | Rangmahal
यह प्राचीन और विशाल महल सुराड़ा मोहल्ले में स्थित है। महल में अब हिमाचल एम्पोरियम बना दिया गया है। इस महल की नींव राजा उमेद सिंह ने (1748-1768) डाली थी। महल का दक्षिणी हिस्सा राज श्री सिंह ने 1860 में बनवाया था। यह महल मुगल और ब्रिटिश शैली का मिश्रित उदाहरण है। यह महल यहां के शासकों का निवास स्थल था।
अखंड चंडी महल | Akhand Chandi Mahal
चंबा के शाही परिवारों का यह निवास स्थल राजा उमेद सिंह ने 1748 से 1764 के बीच बनवाया था। महल का पुनरोद्धार राजा शाम सिंह के कार्यकाल में ब्रिटिश इंजीनियरों की मदद से किया गया। 1879 में कैप्टन मार्शल ने महल में दरबार हॉल बनवाया। बाद में राजा भूरी सिंह के कार्यकाल में इसमें जनाना महल जोड़ा गया। महल की बनावट में ब्रिटिश और मुगलों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 1958 में शाही परिवारों के उत्तराधिकारियों ने हिमाचल सरकार को यह महल बेच दिया। बाद में यह महल सरकारी कॉलेज और जिला पुस्तकालय के लिए शिक्षा विभाग को सौंप दिया गया।
खजियार | Khajjiar
भारत का Mini Switzerland यानी खजियार चम्बा की सबसे खूबसूरत जगह है। यह चम्बा से 22 कि. मी की दूरी पर है। लाखो की तादाद में हर वर्ष लोग यहाँ घूमने के लिए आते है। यहाँ एक झील है जो की काफी पुरानी है। यह झील पर्यटकों को बहुत ही लुभाती है।
कूंरा Kuran
कहा जाता है कि महभारत काल के दौरान जब कौरवों ने पांडवों की वनवास दिया था तो इस दौरान इस स्थान पर एक बार पांडवों ने माता कुन्ती के साथ दोपहर का भोजन किया था, जिनके नाम पर ही इस गाँव का नाम पहले कुन्तापुरी पड़ा था जिसको लोगों ने धीरे धीरे अपनी सहजता के हिसाब के बोलने के लिए कूंरा का नाम दे दिया। यहां पांडवों का बनाया हुआ एक शिव मंदिर तथा अन्य कई मूर्तियां हैं।
छतराड़ी | Chhatrari
चंबा से लगभग 45 किलोमीटर दूर छतराड़ी गांव अपने उल्लेखनीय पहाड़ी शैली के मंदिर ‘शक्ति देवी’ के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
कैसे पहुंचें ? How to reach Chamba
वायुमार्ग | Airway –
- चंबा जाने के लिए नजदीकी Airport पंजाब के अमृतसर में है जो चंबा से 240 किलोमीटर दूर है। अमृतसर से चंबा जाने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।
- दिल्ली से गगल एयरपोर्ट पहुंचा जा सकता है जहां से नूरपुर या सिहुंता से होकर लाहड़ू नामक स्थान पर पहुंचते हैं। यहां से हम वाया बनीखेत या फिर वाया जोत सड़क से होते हुए चम्बा आसानी से पहुंच सकते हैं।
रेलमार्ग | Railway –
- चंबा से 140 किलोमीटर दूर पठानकोट नजदीकी रेलवे स्टेशन है। पठानकोट दिल्ली और मुम्बई से नियमित ट्रैनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी के द्वारा चंबा पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग | Roadway –
- चंबा सड़क मार्ग से हिमाचल के प्रमुख शहरों व दिल्ली, धर्मशाला और चंडीगढ़ से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें चंबा के लिए नियमित रूप से चलती हैं।