Kangra Devi Shaktipeeth : हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा कस्बे में स्थित बज्रेश्वरी माता के मंदिर को काँगड़ा देवी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर माँ दुर्गा के ही एक रूप देवी वज्रेश्वरी को समर्पित है, जहां मात्र हिन्दू भक्त ही नहीं बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी अपना शीश झुकाते हैं और माँ को अपनी आस्था के पुष्प समर्पित करते हैं।
त्रिगर्त के नाम से प्रसिद्ध काँगड़ा हिमाचल प्रदेश की प्राचीनतम रियासत है। महाभारत काल में इसकी स्थापना राजा सुशर्मा ने की थी। काँगड़ा को ‘त्रिगर्त’ के अलावा ‘नगरकोट’ के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीनकाल में यह कटोच राजपूत राजाओं का केन्द्र रहा।
काँगड़ा शक्तिपीठ | Kangra Shaktipeeth
जब देवी सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से दुःखी होकर आकाश में विचरण करने लगे। इस तांडव से कहीं सृष्टि का विनाश न हो जाये ऐसा विचार कर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ जहाँ देवी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। नगरकोट नामक इस स्थान पर देवी सती का बायां वक्ष गिरा था इस कारण इस शक्तिपीठ को स्तनपीठ भी कहा जाता है।
Kangra Devi Temple Video | Mata Bajreshwari Devi Video :
कृपया यह वीडियो देखें और मेरे Youtube Channel को Subscribe करें और Bell के Icon को दबाएं ताकि आपको मेरे द्वारा Post किये जा रहे Videos की Notifications मिल सकें। Subscribe:- https://goo.gl/Trf2dg
तीन धर्मो के तीन गुंबद :
माता बज्रेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है क्योंकि इस मंदिर के तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है।
तीन देवियाँ
तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता के इस धाम में मां की पिण्डियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित यह पहली और मुख्य पिण्डी मां ब्रजरेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी मां एकादशी की है। कहते हैं एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में मां एकादशी स्वयं मौजूद है इसलिए यहां भोग में चावल ही चढ़ाया जाता है।
भैरव
मंदिर में भैरव का एक छोटा मंदिर भी है, जिसमें भैरव बैठी मुद्रा में विराजमान है। इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है। यहां विराजे भगवान भैरव की प्रतिमा भी विशेष है। कहा जाता है कि जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस प्रतिमा की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं।
ध्यानु भक्त
मुख्य मंदिर के सामने ध्यानु भगत की एक मूर्ति भी मौजूद है, जिसने अकबर के समय देवी माँ को अपना शीश समर्पित किया था। इसिलिए मां के वो भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वो पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं।
पाण्डवों ने करवाया था इस मन्दिर का निर्माण
मान्यता है कि वज्रेश्वरी माता के मूल मन्दिर का निर्माण महाभारतकाल में पांडवों ने करवाया था। और यह मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध था। लेकिन उसके बाद मोहम्मद गजनवी और अन्य कई आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को कई बार लूटा था। इस मंदिर में पहले बहुत सारा सोना था तथा शुद्ध चांदी ने बने कई घंटे थे जिन्हें आततायी लूटकर ले गए। सन 1009 में मौम्मद गजनवी ने इस मंदिर को पूरी तरह लूटकर मंदिर के चाँदी से बने दरवाजें तक उखाड कर ले गया था। कहा जाता है कि गजनवी ने इस मंदिर को पांच बार लूटा था। उसके बाद मौम्मद बीन तुकलक आदि कई आक्रांताओं ने लूटा, यह मंदिर कई बार लुटता व टूटता रहा और बार बार इसका पुनः निर्माण होता रहा। 1905 में आये बहुत बडे़ भूकंप ने इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।
माँ की पाँच बार होती है आरती
मां ब्रजेश्वरी देवी की इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है।
- सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।
- उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात:कालीन आरती संपन्न होती है।
- यहां दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है। दोपहर की आरती के लिए मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही बने एक विशेष स्थान पर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। मान्यता है कि यहां बच्चों का मुंडन करवाने से मां बच्चों के जीवन की समस्त आपदाओं को हर लेती हैं। दोपहर बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और भक्त मां का आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं।
- सूर्यास्त के बाद इन पिण्डियों को स्नान कराकर पंचामृत से इनका दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नए वस्त्र पहनाकर मां का श्रृंगार किया जाता है और इसके साथ ही सायंकालीन आरती संपन्न होती है। शाम की आरती का भोग भक्तों में प्रसाद रूप में बांटा जाता है।
- रात को मां की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी मां की शैय्या तैयार कर मां की पूजा अर्चना करते हैं।
मन्दिर का प्रमुख त्यौहार
मकर संक्रांति का त्यौहार , जो जनवरी के दूसरे सप्ताह में आता है, इस मंदिर में भी मनाया जाता है। किंवदंती है कि युद्ध में महिषासुर के वध करते समय देवी को कुछ चोटें आईं। उन चोटों को ठीक करने के लिए देवी ने नागार्कोट में अपने शरीर पर मक्खन लगाया था। इस प्रकार इस दिन को चिह्नित करने के लिए, देवी की पिंडी मक्खन से ढकी हुई होती है और यह त्यौहार मंदिर में एक सप्ताह के लिए मनाया जाता है।
यह मंदिर किले की तरह चारों तरफ से पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर की देखभाल भारत सरकार द्वारा की जाती है।
How to Reach Kangra Devi Temple :
नई दिल्ली से काँगड़ा जाने के लिए सीधी बस भी मिलती है। जिसका किराया लगभग 700 रुपये है। इस रूट से यात्रा में लगभग 10. 30 घंटे लगते हैं। यदि Train से जाना चाहते हैं तो जालंधर तक ट्रैन से जाया जा सकता है और उसके बाद वहां से Bus द्वारा काँगड़ा जा सकते हैं। इस यात्रा में किराया लगभग 1500 रुपये लगेगा और समय करीब 9.30 घंटे लगेगा। यदि Flight से जाना चाहते हैं तो धर्मशाला तक Flight से जाकर वहां से काँगड़ा Bus द्वारा जाया जा सकता है। इस यात्रा में समय करीब 3 घंटे और किराया करीब 4000 तक लग सकता है।
Jai Mata Bajreshwari Devi