मान्यता है कि कभी भी देव प्रतिमा को खण्डित रूप में नहीं पूजा जाता; लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर में देवी का एक ऐसा मन्दिर विद्यमान है जहाँ माता की खण्डित प्रतिमा की पूजा होती है। यह देवी मन्दिर है आसोजाई माता का मंदिर।
आशुजाई / आसोजाई / Asojhai / Achhojai चामुण्डा माता का मन्दिर जयपुर शहर से लगभग 24 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में आशुजाई गाँव के पास एक पहाड़ी के मध्य में स्थित है। यहाँ जयपुर के सीकर रोड से बैनाड़-खोराबीसल- चतरपुरा- चतरपुरा होते हुए पहुंचा जा सकता है। मन्दिर के सामने विशाल तालाब है, जो बरसात के समय भर जाता है। आशुजाई चामुण्डा माता मीणा समाज के बैन्दाड़ा, गोहली, गोल्ली गोत्र की कुलदेवी है। यदि आप भी इन्हें आराध्या के रूप में पूजते हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में अपने समाज व गोत्र की जानकारी देवें।
माता का प्राकट्य :
डॉ. रघुनाथ प्रसाद तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘मीणा समाज की कुलदेवियाँ’ में आशुजाई माता के प्राकट्य की कथा यहाँ के पुजारी दिनेश प्रजापत के द्वारा बताई जानकारी के आधार पर इस प्रकार लिखी है – “इस क्षेत्र में चतरू और आसो नामक दो भाई रहते थे। यहाँ स्थित चतरपुरा गाँव चतरू के नाम से और आशुजाई गाँव आसो के नाम से बसा बताया जाता है।” आसो माता का भक्त था। एक दिन माता ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और वहां प्रकाश लेने (प्राकट्य) की बात कही। इसके कुछ समय बाद भयानक गर्जना शुरू हुई और वहां तूफान आया। गड़गड़ाहट के साथ पहाड़ से चट्टानें लुढ़कने लगी। पहाड़ के मध्य एक दिव्य प्रकाश के साथ माता का प्राकट्य हुआ। इस घटनाक्रम से एक बार तो लोग डर गए। आसो महाजन ने उन्हें स्वप्न की बात बताई। तब लोगों ने माता की स्तुति और आराधना की। वे माता को पूजने लगे। वे अपने जात-जडूले जैसे पारिवारिक कुलाचार यहाँ संपन्न करने लगे। माता आशुजाई चामुण्डा माता के नाम से जानी जाने लगी।”
माता का स्वरुप :
इस मन्दिर में माता की दो प्रतिमाएं हैं जो कि अलग-अलग गर्भगृहों में प्रतिष्ठित हैं। पहली प्रतिमा आशुजाई चामुण्डा माता की है। इस प्रतिमा का मुण्ड धड़ से अलग पार्श्व में ही प्रतिष्ठित है (इसकी कथा आगे बताई गई है।) माता की प्रतिमा सिंदूर से चर्चित है। साथ में भैरव और योगिनी की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठापित हैं। इनके समक्ष अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित रहती है। यहाँ माता को मदिरा और बलि भेंट की परंपरा है।
चामुण्डा माता के गर्भगृह के पार्श्व में दायीं ओर स्थित गर्भगृह में आशुजाई ब्रह्माणी माता विराजमान हैं। इनके मुख को छोड़कर शेष विग्रह सिन्दूर से चर्चित है। यहाँ भी अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित है। ब्रह्माणी माता की पूजा सात्विक विधि से की जाती है। पहाड़ी की तलहटी में धोक के वृक्ष के नीचे भैरव और सहसमल भौमिया के विग्रह हैं।
चोरों ने किया माता की प्रतिमा को खण्डित :
इसके बारे में एक किंवदंती है कि एक बार कुछ चोर रात्रि में आशुजाई गाँव की ओर चोरी करने आ रहे थे। माता ने आवाज लगाकर गाँव वालों को सावधान किया। तब चोर मन्दिर में पहुंचे और माता की प्रतिमा को खण्डित करते हुए मुण्ड को धड़ से अलग कर दिया। मन्दिर से नीचे आते आते चोर माता के कोप से मारे गए।
इसलिए खण्डित रूप में पूजा जाता है :
इस घटना के बाद भक्तों ने मन्दिर में माता नई प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाने निश्चय किया। किन्तु प्रयत्न करने के बाद भी नई प्रतिमा पहले वाली प्रतिमा के समान नहीं बन पाई। तब गाँव के एक व्यक्ति में माता की सवारी आई और माँ ने आज्ञा दी कि माता को जैसी स्थिति में है उसी स्थिति में पूजा जाये और नई मूर्ति की भी स्थापना करवा दी जाये। यह उनका ब्रह्माणी स्वरुप होगा। इस प्रकार मन्दिर में आशुजाई चामुण्डा माता और आशुजाई ब्रह्माणी माता के स्वरुप हैं।
Asojhai /Ashujai Mata Temple @ Google Map