देवड़ा, चौहान राजवंश की एक प्रसिद्ध खांप है | राजतरंगिणी (1205 वि.) ज्ञात होता है कि 1205 वि. से पूर्व ही 36 राजपूत राजवंश बन चुके थे | उस समय देवड़ा चौहानों की उत्पत्ति हो चुकी थी और भीनमाल पर उनका स्वतंत्र राज्य हो चुका था | चौहानों की खांप होने के बावजूद भी देवड़ा अलग राजवंश क्यों गिना गया ? कारण का पता नहीं लगता | अतः चौहानों की इस खांप को ही 36 राजपूत राजवंशों में एक वंश मानकर वर्णन किया जा रहा है |
उत्पत्ति :-
देवड़ा चौहानों की खांप है | मुहणोत नैणसी के अनुसार चौहान लाखण के वंशज आसराव की पत्नी देवी स्वरूपा थी | अतः उसके वंशज ”देवी रा” और फिर देवड़ा कहलाये | जिस समय वाचाछड़लदेवी उनकी पत्नी बनी तब आसराव का स्थान नाडौल था और चीबा भी देवड़ों की साख है
। देवड़ों की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य मत यह है कि जालौर के शासक भानसिंह अर्थात् भानीजी के एक पुत्र का नाम देवराज था। उसकी संतति वाले देवड़ा कहलाये। इस देवराज के पुत्र विजयराज ने मुसलमानों को पराजित कर मणादर (बड़गांव) पर विजय प्राप्त की।
देवड़ों के राज्य :-
1. भीनमाल आबू राज्य :-
नाडौल शासक लक्ष्मण के पुत्र शोभित ने भीनमाल में राज्य कायम किया | शोभित का उत्तराधिकारी लक्ष्मण के पुत्र आसराज (अश्वराज) का पुत्र महेंद्र हुआ | महेंद्र के बाद क्रमशः सिंधुराज (मछरीक) प्रताप (आल्हन) आसराज जेन्द्रराज, कीर्तिपाल, समरसी, प्रताप, शसयनन्दन बिजड़ व लूम्भा हुए | लूम्भा ने परमारों से 1368 के करीब चन्द्रावती व आबू छीना तथा 1377 वि. में अचलेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया | लूम्भा की मृत्यु 1378 वि. के करीब हुई | इनके बाद तेजसिंह, कान्हड़दे, सामंतसिंह, सलखा व रायमल हुए (चौहान कुल द्रुम पृ. 209)
2. सिरोही का राज्य :-
चंद्रावती और आबू के शासक रायमल देवड़ा के पुत्र शिवभाण ने अपने राज्य का विस्तार किया और सरणवा पहाड़ी पर सुरक्षा के लिए दुर्ग का निर्माण करवाया तब वि. सं. 1462 में शिवपुरी नामक नगर बसाया | उनके पुत्र सहसमल ने इस शिवपुरी से दो मील दूर वि. 1482 में नया नगर बसाया जो सिरोही कहलाया |
सिरोही राजवंश
- शिवभाण 1392-1424 ई.
- सहसमल 1424-1451
- लाखा 1451-1483
- जगमाल 1483-1523
- अखैराज 1523-1533
- रायसिंह 1533-1543
- दूदा 1543-1553
- उदयसिंह 1553-1562
- मानसिंह 1562-1572
- सुरताण 1572-1610
- रायसिंह | | 1610-1620
- अखैराज | | 1620-1673
- उदयभान 1673-1676
- बैरीशाल 1676———-
- छत्रशाल 1697-1705
- सुरताण 1705 –
- मानसिंह 1748 –
- पृथ्वीराज 1749-1772
- जगतसिंह 1782-
- बैरीशाल | | 1782-1807
- उदयभान | | 1807-1818
- शिवसिंह 1818-1862
- उम्मेदसिंह 1862-1875
- केशरीसिंह 1875-1920
- स्वरूपसिंह 1920-1946
- तेजसिंह 1946-1950
- अभयसिंह 1950
देवड़ा चौहानों की खांपें और उनके ठिकाने
लक्ष्मण (नाडौल) के तीसरे पुत्र अश्वराज (आसल) के बाछाछल देवी स्वरूप रानी थी | इसी देवी स्वरूपा रानी के पुत्र ‘देवीरा’ नाम से विख्यात हुए | देवड़ा चौहानों की निम्न खांपे हैं –
1. बावनगरा देवड़ा :-
महणसी देवड़ा के पुत्र पुतपमल के पुत्र बीजड़ हुए बीजड़ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण के वंशजों का ठिकाना बावनगर था | इस कारण लक्ष्मण के वंशज बावनगरा देवड़ा कहलाये | मेवाड़ में माटोड़, देवरी, लकड़बास आदि ठिकाने तथा मालवा में बरडिया, बेपर आदि ठिकाने | (रण बाकुर मार्च 90 सं. देवीसिंह माण्डवा)
2. मामावला देवड़ा :-
प्रतापमल उर्फ देवराज के छोटे पुत्र बरसिंह को मामावली की जागीर मिली | इस कारण बरसिंह के वंशज मामावला देवड़ा कहलाये | (चौहान कुल कल्प द्रुम पृ. 211)
3. बड़गामा देवड़ा :-
बीजड़ के छोटे पुत्र लूणा के पुत्र तिहुणाक थे | इनके पुत्र रामसिंह व पौत्र देवासिंह को जागीर में बड़गाम देवड़ा कहलाये | बड़गाम जोधपुर राज्य का ठिकाना था | सिरोही राज्य में इनका ठिकाना आकुला था |
4. बागड़िया देवड़ा :-
बीजड़ के बाद क्रमशः लूणा, तिहुणक व सबलसिंह हुए | सबलसिंह के वंशज बागड़िया कहलाते है | बड़गांव आकन आदि इनके ठिकाने थे |
5. बसी देवड़ा :-
बीजड़ के पांचवें पुत्र लूणा के दो पुत्र माणक और मोकल मालवा चले गए | इनकी बसी (ग्वालियर) जागीर थी | इस कारण इनके वंशज बसी देवड़ा कहलाये |
6. कीतावत देवड़ा :-
बीजड़ के पुत्र आबू शासक लूंभा हुए | लूंभा के पुत्र दूदा के किसी वंशज कीता की संतान कीतावत देवड़ा कहलाई | सिरोही और जोधपुर राज्य में इनकी जागीर थी |
7. गोसलावत देवड़ा :-
लूंभा के तीसरे पुत्र चाहड़ के पूत गोसल के वंशज गोसलावत देवड़ा कहलाये | मामावली (सिरोही) में है | खणदरा इनका ठिकाना था |
8. डूंगरोत देवड़ा :-
लूंभा के बाद क्रमशः तेजसिंह, कान्हड़दे, सामंतसिंह, सलखा व रिड़मल हुए | रिड़मल के दूसरे पुत्र गजसिंह के पुत्र डूंगर के वंशज डूंगरोत देवड़ों की निम्न खांपें हैं –
1.) रामवत :-
रामवातों के पालड़ी पांडाव, बागसीण, जावाल, सिद्धरथ, जीरावत, सारादरा, ओडा आदि ठिकाने थे |
2.) सबरावत :-
माडवास, सबराट, सबली, पूंगनी, बोखड़ा, मण्डिया, जामोतरा, मुटेड़ी, सिरोडेती आदि इनके ठिकाने थे | ईडर राज्य में भी इनकी जागीरें थी |
3.) सूरावत (सामन्तसिंहोत) :-
कालिंद्र, थाकेदरा, भाडवाडिया, सुआध, बरलनूट, नवाणा, अणगोर, डोडआ, बेलगरी, धानवा चन्दाणी, वालदा, बाण, संगालिया, नीबोड़ा आदि इनके ठिकाने थे |
4.) मेरावत :-
ओदवाड़ा, राडबर, बाडका, भेव, उथमन, पोसलिया, रुंखाड़ा, बणदरा, मोसाल, पतापुरा आदि मेरावतों के ठिकाने थे |
5.) अमरावत :-
जोगापुरा, गोला, रावड़ों, बूड़ेरी, मोटालख्मावा, जोइला, घनापुरा व पोइणा (जोधपुर राज्य) इनके ठिकाने थे |
6.) भीमावत व अर्जुनोत :-
भूतगांव इनकी जागीर थी |
7.) कूंपावत-मांडणोत :-
सीटल, मारवाड़, पोदहरा, तँवरी, लाय, सीबागांव, मांडानी आदि इनके ठिकाने थे |
8.) बजावत :-
मणदर, नोरू (जोधपुर) सवापुरा, मणोरा, वेरापुरा मूरोली, झाडोली, अणदोर, बावली, भरूड़ी (जोधपुर) बडालोटीवाला आदि इनके ठिकाने थे |
9.) हरराजोत :-
देलदर व छोटा लोटीवाला आदि इनके ठिकाने थे |
10.) गागवत :-
जेला, सवापुरा, बड़ी, पूनम आदि इनके ठिकाने थे |
11.) बेदावत :-
चुली, गोड़ाणा, छोटी पूनम (जोधपुर) आदि इनके ठिकाने थे |
12.) मालवणा :-
बीरवाड़ बिरौली, साणवाडा, डीगार, नादियां, सीवेरा, सरवली, पालड़ी, सूरी आदि इनके ठिकाने थे | (देवड़ा के ठिकाने की जानकारी संगलसिंह देवड़ा के सौजन्य से )
9. शिवहिहोत देवड़ा :-
रिडमल के पुत्र सिरोही शिवसिंह (शिवभाण) के वंशज शिवसिंहोत देवड़ा कहलाये | इनकी खांपें हैं –
1.) लोटाणचा देवड़ा :-
शिवभाग के पुत्र सिंहाजी के वंशज लोटाणचा देवड़ा कहलाते हैं |
2.) बालदा देवड़ा :-
शिवभाण के तीसरे पुत्र कावल ने वंशज बालदा देवड़ा कहलाते हैं | धनारी, सादलवा, नाना (जोधपुर) लोहाणचो व बालदा, देवड़ो के ठिकाने थे |
3.) लाखाणोत देवड़ा :-
शिवभाण के पुत्र लक्ष्मण के वंशज है |
10. लखावट देवड़ा :-
शिवभाण के पौत्र व सहसमल के पुत्र लखा के वंशज लखावत देवड़ा कहलाये | नदिया, जोगापुर, आजारी, भण्डार, छोटीपाली, राजा, बाछोली, बिसलपुर (मखिड़ा) साकेडा, सानपुरा, भागली, गलधनी, बिरोलिया, बलवना, कोलीवाड़ा, लसानमडा वाकली, खिवान्दी, धुरबाना, मोरड़, तलाणी, सलेकरिया, बलुपुरा, कोरटा, पेरवाकलां, पेरवाखर्द आदि लखावतो के ठिकाने थे | जोधपुर रियासत में भी इनकी जागीरे थी | लखावतों की निम्न खांपें हैं-
1.) पृथ्वीराजोज :-
नीमज, पीथापुर, सेलवाड़ा, मानत, आबलारी, निम्बोड़ा, डगाराली, पीसदरा, लूणोल, आदि अनेक ठिकाने थे |
2.) सामीदासोत :-
दामानी, मालगांव, व थल आदि इनके ठिकाने थे |
3.)प्रतापसिंहोत :-
भटाणा (बड़ा व छोटा दोनों) पादर, मकावत (बड़ी व छोटो दोनों) मारोच, ढढमणा, डाक, दलाणी, सगोल, आदि इनके ठिकाने थे |
4.) सामन्तसिंहोत :-
हरणी, लोहुवा, बरमणा, बगदा, इदराना, जोनपुर, बड़बन, कोसवा, रामपुरा, सरूआश सगवाड़ा सणवाड़ा, भावत, खेदर आदि इनके ठिकाने थे |
11. बालोत देवड़ा :-
समरसिंह के पुत्र महणसी के पुत्र बाला वंशज बालोत देवड़ा कहलाये | (बांकीदास की ख्यात 1829 पृ. 154)
12. हाथीयोत देवड़ा :-
महणसी के पौत्र व बाला के पुत्र हाथी की संतान हाथियोत देवड़ा कहलाये | (बांकीदास की ख्यात 1829 पृ. 154)
13. चीबा देवड़ा :-
महणसी के पुत्र चीबा के वंशज चीबा कहलाये | आबू के पास रहते थे | नैणसी ने लिखा है सीरोही रै देश डूंगरोत उतरता चीबा भला रजपूत छै इणा रो बड़ो घड़ो छै……. अैहा देवड़ा हीज है | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 168)
14. सांचौर चौहान :-
नाडौल के लक्ष्मण के पुत्र आसराव के वंशजों में प्रताप उर्फ़ अल्हण नाम का व्यक्ति हुआ, इसी का पुत्र विजयसिंह था | विजयसिंह के बाद पदमसी, शोभित व साल्ह हुए | बाद की ख्यातों में भूल से नाडौल के प्रसिद्ध शासक आसराज के पुत्र अल्हण से विजयसिंह का सम्बन्ध जोड़ दिया गया | अतः सिद्ध हुआ कि विजयसिंह देवड़ा था जो लक्ष्मण के पुत्र आसराज के वंशज प्रताप उर्फ़ अल्हण का पुत्र था |
विजयसिंह ने सांचौर जीता | विजयसिंह के बाद पदमसी, शोभित व साल्ह हुए | अतः सांचौर पर शासन करने वाले विजयसिंह के वंशज सांचौर कहलाये | सांचौरा चौहानों की अन्य कई छोटी-छोटी निम्न खांपें हैं- बणीदासोत, सहसमलोत, नरसिंहदासोत, तेजमालोत, सखरावत, हरथावत आदि | सांचौर (जिला जालौर) क्षेत्र में सांचौरा चौहानों के बड़े छोटे कई ठिकाने थे |
15. कांपलिया चौहान :-
सांचौर के विजयसिंह के वंशज कांपलिया गांव में निवास करने के कारण कांपलिया कहलाये | (नैणसी री ख्यात भाग 2 पृ. 248) कांपलिया चौहानों में कुम्भा बड़ा वीर राजपूत हुआ | कुम्भा का इलाका कुंभाछतरा कहलाता था | कुम्भाछतरा क्षेत्र सांचौर और ईडर इलाके में था |
16. निर्वाण :-
निर्वाण चौहानों की प्राचीन खांप है | देवड़ों का इतिहास के अध्ययन से नरदेव (निरबाण) के पूर्व पुरुष का वंशक्रम नाडौल नाडौल के लक्ष्मण से इस प्रकार जुड़ता है- लाखन, आसराज, नरदेव(निर्वाण) | यहीं से निर्वाण खांप देवड़ों से अलग होती है | नरदेव(निर्वाण) ने 1141 वि. में कुंवरसी डाहलिया से किरोड़ी, खण्डेला (शेखावाटी) का क्षेत्र जीता और निर्वाण राज्य की नींव डाली | निर्वाणों ने इस क्षेत्र पर लगभग 500 वर्षों तक शासन किया |
राव जोधराज, विसलदेव, दलपत, पिथौरा, राजमल, नृसिंदेव व रणमल आदि खंडेला के प्रसिद्ध शासक हुए | खण्डेला राजा पीपा से रायमल शेखावत ने वि. सं. 1625 में खण्डेला छीन लिया फिर भी 1638 वि. तक वे बराबर अपने राज्य के लिए लड़ते रहे | पीपाजी के वंशजों ने उ.प्र. में छोटा सा राज्य स्थापित किया | आज भी गाजियाबाद के आसपास कई गांव में निर्वाण चौहानों के हैं | शेखावाटी (राजस्थान) के बहुत से गांवों में निर्वाण चौहान निवास करते हैं | खेतड़ी, बबाई, पपुराना का क्षेत्र निर्वाण पट्टी के नाम से जाना जाता है |
17. बागड़िया चौहान :-
लाखन के पुत्र आसराज के वंशज मूघपाल डूंगरपुर क्षेत्र में आये | डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र को बागड़ कहा जाता है | अतः बागड़ प्रदेश में रहने वाले मूघपाल के वंशधर बागड़िया चौहानों के नाम से प्रसिद्ध हुए |
बागड़िया चौहान मेवाड़ क्षेत्र में अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध रहे | मूधपाल के वंशज डूंगरसिंह ने अपनी वीरता के कारण मेवाड़ में राणा सांगा से बदनोर की जागीर प्राप्त की |
देवड़ा वंश के कुलदेवता
देवड़ों के कुलदेव सारणेश्वर महादेव हैं। सारणेश्वर का मन्दिर सिरोही से तीन मील की दूरी पर पहाड़ की तलहटी में है। वह चारों और से परकोटे से घिरा हुआ है। यह परकोटा मालवा के सुल्तान ने बनवाया था। वह कुष्ठ रोग से पीड़ित था। सारणेश्वर की मनौती से उसका कुष्ठ मिट गया था।
भोभरिया कुम्हारो की कुल देवी हंस वाहिनी रायल माता हमारे पूर्वज बताते हैं, कृपया बताये की रायल माता का मदिंर कहॉ है
आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है हुकम …लेकिन आपने जो लखावत देवडा के खाप में जो गांव बताए है उसमे भंडार लिखा है वो गांव मंडार है सो इसे सही लिखावे एडिट कर के … धन्यवाद्।
क्या आप मुझे अपना नंबर दे सकते है मै कित्ते भंडारी राजपूत जाती से आता हू!हमारे जाती की उत्पत्ती भी नाडोल के चौहनो से हुयी है! क्या आप बता सकते है की सभी नाडोल के चौहान भंडारी ओसवाल बन गये थे या कोई ऐसे भंडारी रहे जिन्होने अपना क्षत्रियत्व कायम रखा! हमारे पुर्वज राजा किर्तिपाल चौहान जीके अनुयायी (शिष्य)थे! कृपया मुझसे मेरे मोबाईल नंबर 7875254806 पर संपर्क करना
Hokam hum bhi lakhawat hi hai udaipur se hamara bhi thikana mandar hi hai
आपने जो ठिकाने लिखे ही वो पूरे नई ही होकम ।
ठिकाना खोखरिया जो देवड़ा राजपूत का I गांव है होकम
वहा अगर आप इसमें चेंज करे तो मुझे कॉल करना आप
7023661619
पीयूष सिंह देवड़ा
ठिकाना=खोखरियां (झालावाड़ जिला ) राजस्थान
Hukum Devda ke kul Bhairav ji kahan per hai hi aapko pata ho to uska photo mujhe send karna 9179626140
भाई सहाब मेने बहोत बार कमेंट की किसी भी भाई ने जवाब नही दिया मे जानना चाहता हुँ की बगडंवा बगडिया चौहान एक है या अलग अलग कृपया बताए धनयवाद मे जिला गुडगावा हरियाणा से हृँ
मेवाड़ के देवड़ा सिरोही से कब आए वैसे तो एक शिलालेख में बताया गया है महाराव कृति राव के नेतृत्व में मेवाड़ आए हैं जिसका संभावित सन 1495 माना जाता है लेकिन उससे पूर्व 13 सौ के शिलालेख मेवाड़ में मिल रहे हैं
Hkm me mp ke ujjain jile ke badan ager tehsil ke bardiya se hu hamare bheru maharaj sa keha he aap beta sakte ho ager aap ko peta ho to aap 7000297271 pe coll kera hkm
mp me to jhitarkhedi ujjain me he
pr rj ka maloom ho to btana pls