Yogini Ekadashi Vrat in Hindi: आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। इस दिन भगवान् विष्णु की पूजा करने का विधान है।
भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए यह व्रत रखा जाता है। अतिउत्तम योगिनी एकादशी के दिन दान आदि सत्कर्मों का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से सांसारिक सुख के साथ-साथ मोक्ष भी प्राप्त होता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति के हृदय में सदैव :ऊं नमो: भगवते वासुदेवाये नमः” का जाप करते रहना चाहिए। भगवान विष्णु इस मन्त्र जाप से प्रसन्न होकर उस व्यक्ति की मनोकामना को पूर्ण कर देते हैं। इस बार यह व्रत 17 जून 2020 को रखा जाएगा।
Yogini Ekadashi Vrat | योगिनी एकादशी व्रत क्या है :-
हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हर एकादशी का अपना अलग-अलग महत्व है। प्रत्येक साल में 24 एकादशी आती है लेकिन मल मास की एकादशियों को मिलाकर कुल 26 एकादशी आती है । योगिनी एकादशी की विशेष महिमा है। योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से व पूजा अर्चना से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन सभी नारायण मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल मिलता है। इस दिन प्रात:काल विधि-विधान से भगवान नारायण की पूजा करने एवं श्रीविष्णु सहस्त्रनामार्चणा मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के कोढ़ रोग से मुक्ति मिलती है तथा वृक्ष (बरगद या पीपल विशेष) काटने के पाप से भी मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, मृत्यु को प्राप्त हुए सात पीढ़ियों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है।
Significance of Yogini Ekadashi in Hindi | योगिनी एकादशी का महत्व:-
योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को जीवन में सुख,समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। हमारे देश में इस व्रत का बहुत महत्त्व है। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने का फल, 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। तथा यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को इसका पुण्य अवश्य मिलता है। पद्म पुराण में बताया गया कि जो भी व्यक्ति योगिनी एकादशी के दिन अनुष्ठान का पालन करता है उसका स्वास्थ्य अच्छा होता है, तथा वह समृद्धि को प्राप्त करता है, और एक सुखी जीवन व्यतीत करता है। योगिनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसके सभी पाप भगवान् विष्णु की कृपा से नष्ट होते हैं और मनुष्य को मरने बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
Yogini Ekadashi Vrat Katha in Hindi | योगिनी एकादशी की व्रत कथा :-
यह बात महाभारत के समय की है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से सभी एकादशियों के व्रत का महिमा सुन रहे थे। जब आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी की बारी आई तो युधिष्ठिर ने भगवान् से पूछा की हे भगवन इस एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा की हे राजन यह एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस धरती पर जो भी व्यक्ति इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है और प्रभु की पूजा करता है उसके सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं। तथा अंत काल में उसे मोक्ष प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी का उपवास तीनों लोकों में बहुत प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के बारे थोड़ा विस्तार से बताइये। तब भगवान श्री कृष्ण कहा की पुराणों में एक कथा प्रचलित है वही तुम्हें सुनाता हूँ। इसे ध्यानपूर्वक सुनना।
स्वर्गलोक के अलकापुरी नगर में कुबेर नामक एक राजा था। वह भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर परिस्थिति में भगवान् शिव की नियमित पूजा किया करता था। हेम नामक एक माली था जो राजा के लिए फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज राजा को पूजा से पहले फूल देकर आता था। एक दिन हेम ने फूल तोड़ने के बाद सोचा कि अभी तो पूजा करने में काफी समय है, और अपनी पत्नी के साथ घूमने लगा। इधर, कुबेर हेम की प्रतीक्षा कर रहा था। पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प नहीं पहुंचने की वजह से व्याकुल हो रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं आया तो राजा कुबेर को क्रोध आया और उसने अपने सैनिकों से हेम को लाने को कहा जब हेम राजा के समक्ष पहुँचा तो राजा ने क्रोधवश हेम को पत्नी वियोग का श्राप दे दिया। और साथ ही, उसे कोढ़ (कूबड़) ग्रस्त होकर धरती पर विचरण का श्राप भी दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली दुखी था वह कई वर्षों तक धरती पर इधर-उधर भटकता रहा। एक दिन संयोगवश वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि के पूछने पर हेम ने उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। और ऋषि ने हेम को कहा की आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। यदि तुम इस व्रत को पुरे विधि-विधान, और श्रद्धा भाव से करोगे तो तुम्हें इस श्राप से मुक्ति अवश्य मिलेगी। हेम ने बहुत ही श्रद्धा पूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से हेम माली को श्राप से मुक्ति मिली तथा उसका कोढ़ समाप्त हो गया और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा। उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
Yogini Ekadashi Pooja Vidhi | योगिनी एकादशी व्रत के नियम व पूजा विधि:-
- योगिनी एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि को प्रातःकाल के बाद पूरा होता है।
- यह व्रत करने से एक दिन पहले ही इसके नियम शुरू हो जाते हैं।
- दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत रखने वाले व्यक्ति को तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।
- दशमी तिथि की रात्रि से ही नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी व्रत के दिन भी भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए व चावल का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।
- योगिनी एकादशी व्रत के दिन प्रात:काल जल्दी उठे।
- स्नान आदि कार्यो को करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद कलश स्थापना की करें, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें और उनकी पूजा करें और भोग लगायें। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। भगवान् विष्णु की पूजा करते समय तुलसी के पत्तों को अवश्य रखें। तुलसी के पत्ते एकादशी के दिन कभी नहीं तोड़ना चाहिए इसलिए पत्तों को दशमी के दिन ही तोड़ कर रख लें। इसके बाद धूप जलाकर श्री भगवान् विष्णु की आरती उतारें इसके बाद पीपल के पेड़ की पूजा करें।
- योगिनी एकादशी की व्रत कथा अवश्य सुनें व घर में सब को सुनाये क्योंकि सुनने मात्र से भी इसका फल मिलता है।
- इस दिन दान कार्य करना अति कल्याणकारी होता है। और पीपल के पेड़ की पूजा भी अवश्य करनी चाहिये।
- व्रत की रात्रि में जागरण करें।
- व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को प्रात:काल दान कार्यो को करें इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें। तब व्रत समाप्त होता है।
- जो लोग यह व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन भोजन में चावल नहीं लेना चाहिए और जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद सदा बना रहता है।
2020 में योगिनी एकादशी
- योगिनी एकादशी तिथि – 17 जून 2020
- एकादशी तिथि प्रारम्भ – जून 16, 2020 को प्रातः 05:40 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त – जून 17, 2020 को सुबह 07:50 बजे तक
- पारण का समय – प्रातः 05:28 से 08:14 बजे तक (18 जून 2020)
- पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त – 09:39 बजे (18 जून 2020)