Jaya Parvati Vrat Katha,Puja Vidhi: जया-पार्वती व्रत एक बहुत ही शुभ उपवास है जो कि लगातार पांच दिनों तक चलता है। आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी जो कि हर साल आती है। उस दिन जया पार्वती व्रत को विशेष व्रत के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत को विजया-पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत माँ पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार विवाहित स्त्रियाँ इस व्रत को रखती है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है। यह मालवा क्षेत्र का लोकप्रिय पर्व है। लेकिन भारत के पश्चिमी भाग विशेष रूप से गुजरात में महिलाएं इस व्रत को बड़ी श्रद्धा और संयम के साथ रखती हैं। जया पार्वती व्रत भी गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह ही होता है। पुराणों के अनुसार इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने केवल माँ लक्ष्मी को बताया था।
जया पार्वती व्रत का महत्व | Jaya Parvati Vrat :
जया पार्वती व्रत परिवार की सुख शांति और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है। माना जाता है कि जया पार्वती व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि आती है। माँ पार्वती का यह व्रत विवाहित महिलायें पाँच साल तक मनाती है। इसे गौरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। इसका व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के तेरहवें दिन शुरू होता है और कृष्ण पक्ष तृतीया पर पांच दिनों के बाद समाप्त होता है जो कि इन पांच दिनों तक मनाया जाता है। कुछ जगहों पर इसे एक दिन तथा कुछ जगहों पर इसे पाँच दिन मनाया जाता है। इस व्रत को यदि एक बार शुरू किया कर लिया है, तो इसे 5,7,9,11 या लगातार 20 वर्षों तक जारी रखा जाता है। पूजा के लिए बालू रेत से हाथी बनाया जाता है तथा उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। पार्वती ने शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए उपवास किया था इसलिए अच्छा वर पाने की इच्छा से अविवाहित लड़कियाँ जया पार्वती व्रत के दिन देवी पार्वती की पूजा करती हैं। व्रत के आखिरी दिन विवाहित महिलाएं रात को जागरण करती हैं। इस रात के जागरण को अगले दिन तक आगे बढ़ाया जाता है जिसे गौरी तृतीया के रूप में मनाया जाता है। इस जागरण को जया पार्वती जागरण कहा जाता है।
जया पार्वती व्रत की पूजा-विधि | Jaya Parvati Vrat Pooja Vidhi :-
1. व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कार्य करें।
2. उसके बाद माँ पार्वती का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें।
3. पूजा करने के स्थान पर शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
4. व्रत के पहले दिन ज्वार (गेहूं) को एक बड़े बर्तन में रखें. इसे घर में पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
5. रुई की एक माला बनायें जिसे नागला कहते है। इसे सिन्दूर या कुमकुम से सजाएँ। और बर्तन के चारो और लपेटें।
6. अगले पांच दिनों तक ज्वार के बर्तन में पानी चढ़ाएं. रोली, फूल, अक्षत चढ़ाएं।
7. भगवान् शिव-पार्वती को कुंमकुंम, बिल्वपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाकर उनकी पूजा करें।
8. उसके बाद फल तथा नारियल शिव-पार्वती को चढ़ायें।
9. अब विधि अनुसार षोडशोपचार से शिव-पार्वती का पूजन करें।
10. माँ पार्वती का स्मरण करके स्तुति करें।
11. कथा सुने तथा उसके बाद आरती करके पूजा संपन्न करें।
12. ब्राह्मण को भोजन करवाएं और श्रद्धानुसार उन्हें दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।
13. पांच दिनों तक नमकरहित भोजन ग्रहण करें।
14. पांचवें व्रत की रात को जागरण करें।
15. जागरण के अगले दिन, जो कि व्रत का आखिरी दिन होता है, जिस बर्तन में ज्वार को सींचा था उसमे से गेहूं की घास बाहर निकलती है उस घास को पवित्र नदी या किसी अन्य जल निकाय में डाल दें।
16. अगर बालू रेत से हाथी बनाया है तो सम्पूर्ण पूजा करने के बाद उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें।
17. और व्रत के आखिरी दिन शिव-पार्वती को करके अनाज,सब्जियों और नमक युक्त भोजन ग्रहण कर व्रत को पूरा करें।
जया-पार्वती व्रत कथा | Jaya Parvati Vrat Katha :-
पुराणों के अनुसार एक बार कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनका घर धन धान्य से परिपूर्ण था, उनके घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई। इस कारण वे दोनों पति -पत्नी बहुत दुखी रहते थे। एक दिन भगवान् नारद जी उनका दुख दूर करने के उदेश्य से उनके घर पर आये। उन दोनों पति-पत्नी ने नारद जी की खूब मन लगा के सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। नारद जी उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न हुए, उनके समाधान हेतु नारद जी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर एक वन है, उस वन के दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव जी माँ पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजमान हैं। उनकी नियमित पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना जल्द ही पूरी होगी। तब दोनों पति-पत्नी ने उस शिवलिंग को ढूंढा और उसकी पुरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम कई वर्षों तक चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए।
एक दिन ब्राह्मण शिव पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी अचानक उसे एक सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण को लौटने में बहुत देर हो गई तो उसकी पत्नी चिन्तित हो गई और वह अपने पति को ढूंढने जंगल में चली गई। थोड़ी ही दूर पर उसने अपने पति को मूर्छित अवस्था में देखा और रोने लगी तथा अपने पति के प्राण बचने के लिए उसने शिव पार्वती से प्रार्थना करने लगी। उसकी सच्ची निष्ठा से प्रसन्न होकर माँ पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण बिलकुल स्वस्थ हो गया।
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने साथ मिलकर माँ पार्वती का पूजन किया। माँ पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें एक वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति का वर माँगा, माँ पार्वती ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए विजया पार्वती व्रत करने को कहा।
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने पुरे विधि-विधान से माँ पार्वती का यह व्रत किया। जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। अतः जो कोई पुरे विधि-विधान से माँ पार्वती का यह व्रत करता है उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखंड सौभाग्य भी बना रहता है।
जया पार्वती व्रत का अनुष्ठान :-
जया पार्वती व्रत का अनुष्ठान करने के लिए व्रत के पहले दिन, गेहूं के बीज को एक छोटे बर्तन में लगाते हैं। और उसे घर में रख पूजा के स्थान पर रख देते हैं। इसे ज्वार भी कहा जाता है। ज्वार के बर्तन के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए और एक नगला जो कि रुई के फाहे से बना हार होता है उसे सिन्दूर या कुमकुम से सजा दें। इस प्रक्रिया को पांच दिनों तक हर रोज किया जाता है और हर रोज ज्वार को पानी से सींचना चाहिए अर्थात ज्वार को पानी पिलाना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा करनी चाहिए और उन्हें फूल, नगला, अबिल और गुलाल, अगरबत्ती, दीया, कुमकुम, जल और प्रसाद चढ़ाना चाहिए। जो महिलाये व्रत रखती है उन्हें व्रत के दिन नमक, गेहूं या गेहूं से बने कोई भी चीज और सब्जियां नहीं खानी चाहिए। व्रत के दिन केवल फ्रूट्स, दही, जूस, दूध ले सकते हैं। इन पांच दिनों में आहार में नमकीन खाद्य पदार्थ या नमक नहीं खाना चाहिए। जया पार्वती का व्रत करने वाली महिलाओं को अंतिम दिन पूरी रात जागकर जागरण करना चाहिए। और अगले दिन स्नान आदि करके उस बर्तन में जो गेहूं का घास उगा है उसे पवित्र जल में विसर्जित कर दें। तथा भगवान् शिव और माँ पार्वती को प्रणाम करें इसके बाद अंतिम दिन अनाज, सब्जियों और नमक युक्त भोजन ग्रहण कर व्रत को पूरा करें।
जया पार्वती व्रत मुहूर्त | Jaya Parvati Vrat Muhurt 2020
त्रयोदशी तीथि शुरू होगी – 02 जुलाई, 2020 को दोपहर 03:16 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी – 03 जुलाई, 2020 को दोपहर 01:16 बजे तक
जयापार्वती व्रत शुरू | 03 जुलाई 2020 |
जयापार्वती व्रत समाप्ति | 08 जुलाई 2020 |
पूजा मुहूर्त | 7:20 PM से 09:22 PM तक |
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