कोकिला व्रत :-
हिन्दू धर्म में अनेक त्योंहार आते हैं। जिनमे से एक है कोकिला व्रत ()। यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। कोकिला व्रत माँ पार्वती और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह व्रत ईश्वर के प्रति समर्पण व्यक्त करने का एक उचित साधन है। इस व्रत में कोयल को आदिशक्ति का स्वरूप बताया गया है, अतः इस दिन कोयल की पूजा करने का विशेष महत्व है। कोकिला व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें महिलायें अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि कामना करती है, यह महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है जो कि माँ पार्वती से जुड़ा है। इसमें माँ पार्वती को कोकिला (कोयल) के रूप में पूजा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत आषाढ़ माह की शुक्ल पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। कोकिला व्रत मुख्य रूप से उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कोकिला व्रत में गाय की पूजा का विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में गाय ही एक ऐसा विशेष ऐसा जानवर है जिसे पवित्र माना गया है कहा गया है कि गाय में पूरा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है, गाय में समस्त देवी-देवता निवास करते हैं। इसलिए कोकिला व्रत के दौरान गाय की पूजा करना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
कोकिला व्रत का महत्त्व :-
शास्त्रों के अनुसार कोकिला व्रत की शुरुआत माँ पार्वती से हुई थी, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माँ पार्वती ने यह व्रत रखा था। माँ पार्वती करीब 10 हजार सालों तक कोयल बन कर नंदन वन में भटकती रहीं। इस श्राप से मुक्त होने के बाद माँ पार्वती ने कोयल की पूजा की थी इसे देखकर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा। माना जाता है कि जो महिलायें इस व्रत को करती हैं, उन्हें सुख समृद्धि, सौभाग्य, कल्याण की प्राप्ति होती है। इस व्रत को यदि एक अविवाहित महिला रखती है तो उसे अच्छा व सुयोग्य पति प्राप्त होता है। व्रत करने वाली महिलाओं को माँ पार्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कोयल पक्षी की मूर्ति से प्रार्थना करनी चाहिए। इससे विवाहित महिलाओं के वैवाहिक जीवन में सभी बाधाओं का निवारण होता है। कोकिला व्रत से भस्मदोष जैसे दोषों का भी निवारण होता है।
जो महिलाएं इस व्रत को रखती वह अखंड सौभाग्यवती होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कोकिला व्रत पर मिट्टी की बनी कोयल की मूर्ति की पूजा करने से अच्छे वर (पति) मिलता है। इस व्रत से विवाहित महिलाएँ अपने खुशहाल वैवाहिक जीवन और पति की लम्बी आयु की कामना करती है।
हमारे भारत देश में वृक्षों और पशु-पक्षियों की पूजा को देवी-देवताओं की पूजा के सामान माना है। अर्थात वृक्षों तथा पशु-पक्षियों को देवता तुल्य माना जाता है। इस दिन कोयल का दर्शन अवश्य करना चाहिए या कोयल ना दिखे तो उसकी ध्वनि सुनना भी उत्तम है। अतः महिलाओं के लिए इस दिन को शुभ माना गया है।
कोकिला व्रत विधि :-
- इस दिन महिलायें ब्रह्म मुहूर्त में उठें अर्थात सूर्योदय से पहले उठें।
- स्नान आदि से निवृत हों और अपने नियमित कार्यों को निपटा लें।
- स्नान करते समय व्रत रखने वाली स्त्रियों के लिए नियम है कि पहले आठ दिन तक आंवले का लेप लगाकर स्नान करे।
- महिलायें स्नान करते समय कूट, जटमासी, कच्ची और सूखी हल्दी, मुरा, शिलाजित, चंदन, वच, चम्पक एवं नागरमोथा जैसी सुगंधित जड़ी बूटियाँ शुद्ध पानी में मिलाकर स्नान करें। नहाने से पहले रात को इन जड़ी बूटियों को रात भर पानी में भिगोके रख दें । यह अनुष्ठान अगले आठ से दस दिनों तक चलता है।
- सूर्य को अर्घ्य देते समय चीकू के आटे का लेप लगाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
- रसोई में बनी पहली रोटी गाय को खिलायें।
- भगवान् शिव और पार्वती की पूजा जल, पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, धुप,दीप आदि से करें।
- पूजाघर में एक कोयल की मूर्ति स्थापित करें और हल्दी, चन्दन, गंगाजल, रोली, चावल से इनकी पूजा करें। ऐसा अगले आठ दिनों तक करें।
- व्रत रखने वाली महिलायें व्रत को सूर्यास्त तक जारी रखें और कोयल को देखने के बाद कोकिला व्रत की कथा सुनें और यदि संभव हो तो इसका समापनअवश्य करना चाहिए।
- कोयल माँ पार्वती का प्रतिक मानी जाती है। अतः कोयल के दर्शन ना हो तो कोयल की ध्वनि सुनकर भी व्रत पूरा कर सकतें हैं।
- इस दिन महिलायें ब्रह्मचर्य का पालन करें, मन को शांत बनाए रखें चाहिए और नकारात्मक या दुर्भावनापूर्ण विचार मन में नहीं आने दें।
कोकिला व्रत कथा :-
पुराणों के अनुसार एक राजा दक्ष प्रजापति जो कि भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। उनकी बेटी सती जो कि आदिशक्ति का रूप थी। राजा दक्ष ने उनका पालन पोषण किया, किंतु जब सती की शादी के समय राजा दक्ष के न चाहने के बावजूद भी माता सती ने भगवान शिव से शादी कर ली। इससे राजा दक्ष सती व भगवान् शिव से क्रोधित रहने लगे। एक दिन राजा ने एक भव्य यज्ञ करने का निश्चय किया। भगवान शिव को छोड़कर उन्होंने सभी देवताओं को यज्ञ में आमंत्रित किया। सती, जो कि राजा की बेटी तथा भगवान् शिव की पत्नी थी जब उसे यज्ञ का पता चला, तो उन्होंने भगवान शिव से अपने माता-पिता के घर जाने की अनुमति मांगी। लेकिन भगवान शिव ने अनुमति नहीं दी। माता सती के हठ करने पर भगवान शिव ने उन्हें अनुमति दे दी। उसके बाद माता सती अपने पिता के यहाँ पहुंची। वहां उनका किसी ने कोई मान-सम्मान नहीं किया। और भगवान शिव के लिए भी अपमान जनक शब्द कहे, अपने पति के बारे में अपमानजनक बातें उनसे सहन नहीं हुई। जिससे माता सती अत्यधिक दुखी हुईं। दुखी होकर माता सती ने उसी समय यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी। जब भगवान् शिव को इस बात का पता चला तो इस बात से भगवान् शिव बहुत क्रोधित हो गए। क्रोधवश भगवान शिव ने दक्ष और हवन के विनाश के लिए वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। भगवान शिव ने सती को क्षमा नहीं किया, क्योंकि उन्होंने उनके आदेशों का पालन नहीं किया था। इस कारण भगवान् शिव ने सती को श्राप दिया कि वें दस हजार वर्षों तक कोकिला (कोयल) पक्षी बनकर धरती पर विचरण करती रहें। उस दिन से देवी सती कोकिला पक्षी के रूप में नंदन वन में रहीं और वहीं भगवान् शिव की आराधना की। 10 हजार वर्षों बाद उन्होंने हिमालय की पुत्री शैलजा के रूम में जन्म लिया और भगवान शिव को अपने पति के रूप में वापस पाने की इच्छा से आषाढ़ मास के पूरे महीने का उपवास किया।
अतः मान्यता है कि इच्छित वर की प्राप्ति के लिए कोकिला व्रत रखना चाहिए। जो विवाहित स्त्रियां इस व्रत का पुरे विधि-विधान से पालन करती हैं तो उनके पति की आयु बढ़ती है। यह भी माना गया है कि सौंदर्यता पाने के लिए भी यह व्रत किया जाता है क्योंकि इसमें जड़ी-बूटियों से स्नान का नियम है।
मनवांछित वर पाने के लिए करें कोकिला व्रत :-
कथानुसार मान्यता है कि यह व्रत पहली बार माता पार्वती के द्वारा किया गया था। माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए यह व्रत पुरे विधि-विधान से संपन्न किया था। माँ पार्वती के रूप में जन्म लेने से पहले कोयल बनकर दस हजार सालों तक नंदन वन में भटकती रही और साथ ही साथ भगवान् की आराधना करती रही क्योंकि उनको भगवान् शिव द्वारा पति वियोग का श्राप दिया गया था। श्राप से मुक्त होने के बाद माँ पार्वती ने कोयल की पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकारा। अतः जो कुँवारी कन्यायें इस व्रत को करती है उन्हें भगवान् शिव और माँ पार्वती की कृपा से मनवांछित वर की प्राप्ति होती है।
कोकिला व्रत मुहूर्त :-
- कोकिला व्रत – शनिवार, 4 जुलाई, 2020
- कोकिला व्रत प्रदोष पूजा मुहूर्त – प्रातः 07:20 से प्रातः 09:22 तक
अवधि – 02 घंटे 02 मिनट - पूर्णिमा तीथी शुरू – प्रातः 11:33 , 04 जुलाई, 2020 को
- पूर्णिमा तीथी समाप्त – प्रातः 10:13, 05 जुलाई, 2020 को
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