विनोद शर्मा
कृष्णगौड़ ब्राह्मण सेवा समिति, जयपुर
द्वारा प्रेषित आलेख
माँ विंध्यवासिनी
भगवती अम्बिका नित्य स्वरूपिणी है। सत, चित और आनंदमय उनका श्री विग्रह है। वे सर्वोपरी है। यह चराचर जगत उनके ओतप्रेत है। उन्ही की आराधना के प्रभाव से ब्रह्माजी इस चराचर जगत की रचना करते है। भगवान विष्णु इस जगत का सरंक्षण करते है, भगवान रुद्र पर उनकी कृपादृष्टि पड़ी तभी संसार के संहार में वे सफल हो सके। वे ही संसार बंधन में हेतु है। मुक्त कर देना भी उन्ही का काम है। वे देवी परमा विद्यास्वरूपिणी विंध्याचल वासिनी है। विंध्यवासिनी या योगमाया मां दुर्गा के एक परोपकारी स्वरूप का नाम है। उनकी पहचान आदि पराशक्ति के रूप में की जाती है। देवी को उनका नाम विंध्य पर्वत से मिला और विंध्यवासिनी नाम का शाब्दिक अर्थ है, विंध्य में निवास करने वाली। जब कंस के अत्याचारो से समस्त जगत दुखित हो गया था तब वसुदेव जी आग्रह पर महर्षि गर्गाचार्य जी द्वारा विंध्याचल पर्वत पर देवी की घोर तपस्या की गई। उसी के फलस्वरूप देवी ने नंद के घर यशोदा के गर्भ से देवी योगमाया के रूप में अवतरित हो कृष्ण जन्म को पूर्ण कर विन्धयाचल में जाकर जगत के कल्याण में संलग्न हो गईं। महर्षि गर्गाचार्य जी की तपस्या फलस्वरूप देवी के अवतरित होने के कारण गर्गवंशी कृष्ण गौड़ ब्राह्मण इन्हें अपनी आराध्य देवी के रूप में पूजते है।
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महर्षि गर्गाचार्य व देवी संवाद की कथा
आकाशवाणी से यह जानकर कि देवकी के आठवें गर्भ से कंस का निधन होगा, पापी कंस ने वसुदेव जी व देवकी को बंदी बना कारागार में डाल दिया व उन पर अत्याचार प्रारम्भ कर दिए। ज्यो ही बालक उत्पन्न होता कंस उन्हें मार डालता था। कंस के हाथों छः बालको की मृत्यु के पश्चात देवकी के अन्तः करण में शोक का सागर उमड़ पड़ा। तब वसुदेव जी ने मुनिवर गर्ग को बुलाकर अनुनय विनय किया तथा पुत्र की इच्छा प्रकट की तथा देवकी की कष्ट कथा उन्हें कह सुनायी। तब महामुनि गर्गाचार्य जी ने विन्धयाचल पर्वत पर जाकर देवी भगवती की आराधना व तपस्या प्रारम्भ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी वहां प्रकट हुई।
देवी ने कहा– हे महर्षि! मै प्रसन्न हूँ, तुम्हारा कार्य अवश्य सिद्ध होगा।
गर्गाचार्य जी ने कहा– देवी आप महामाया एवम जगत की अधीश्वरी है। भवानी! आपकी मूर्ति कृपामयी है। आपको बारम्बार मेरा नमस्कार है।
देवी ने कहा– तुमने बड़ी अद्भुत तपस्या की है, मै तुम्हारी भक्ति से भली भांति प्रसन्न हूँ। हे यदुवंशियो के आचार्य महर्षि गर्गाचार्य आप अपना अभिलक्षित वर मांगो।
गर्गाचार्य जी बोले– इस समय सम्पूर्ण सृष्टि कंस के पापो से दुखित हो रही है, देवी इस जगत का उद्धार कीजिये।
देवी ने कहा– हे मुनिवर जगत के कल्याण के लिए तुमने जो कामना की है वह अवश्य पूर्ण होगी। पृथ्वी का भार दूर करने के लिए मैने श्री विष्णु को आदेश दिया है। वसुदेव के यहाँ देवकी के गर्भ से अपना अंशावतार ग्रहण करेंगे। उनके प्रकट होते ही वसुदेव जी कंस के डर से उन्हें लेकर गोकुल में नंदजी के घर पर पहुँचा देगे, साथ ही यशोदा की कन्या को ले जाकर अपने यहाँ आये हुए कंस को दे देंगे और कंस उस कन्या को जमीन पर दे मारेगा। इतने में ही वह कन्या कंस के हाथ से छूट जाएगी। उसका अत्यंत मनोहर रूप हो जाएगा। मेरा ही अंशरूप विग्रह धारण करके वह विंध्यगिरी पर जाकर जगत के कल्याण में संलग्न हो जाएगी।
इस प्रकार देवी के मुख से यह सुन कर मुनिवर गर्ग ने भगवती जगदम्बिका को प्रणाम किया तथा अत्यंत प्रसन्न होकर वे मथुरापुरी में आये और वसुदेव जी को देवी का वरदान सुनाया।
देवी विन्धयाचल वासिनी के दर्शन की महिमा
विंध्यवासिनी देवी का चमत्कारी मंदिर विन्घ्याचल की पहाड़ियों के मध्य उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थान पर गंगा नदी के कंठ पर बसा हुआ है। इस तीर्थ को 51 शक्तिपीठ में मान्यता प्राप्त है। यह एकमात्र शक्ति पीठ है जहाँ पर देवी के सम्पूर्ण विग्रहो का दर्शन प्राप्त होता है। भक्तो द्वारा इन्हें वनदुर्गा व नवदुर्गा के रूप में भी पूजा जाता है। देवी विंध्यवासिनी के दर्शन मात्र से भक्तों के सम्पूर्ण कष्ट पीड़ा दूर होते है व मनवांछित फल प्राप्त होते है। माँ विंध्यवासिनी की आराधना से सन्तानहीनो को संतान की प्राप्ति होती है। जो माँ विंध्यवासिनी का नित्य श्रवण करता है उसके लिए कही कुछ भी दुर्लभ नही है, जगत में उनकी कीर्ति फैल जाती है।
जय माँ विंध्यवासिनी
कृष्ण गौड़ ब्राह्मणों की आराध्य माँ विंध्यवासिनी की जय हो