Bhaat Charan Samaj in Hindi: डॉ कैलाशनाथ व्यास व देवेंद्रसिंह गहलोत द्वारा रचित पुस्तक ‘राजस्थान की जातियों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन’ में भाट चारण जाति का वर्णन इस प्रकार किया गया है ”भाट चारण’ जाति भाट व चारण जातियों से भिन्न है तथा भाट और चारण जाति के मिश्रण से बनी हैं। कहा जाता है कि भुज का एक चारण माऊल बरसडा गौत्र का था। जिसके 9 पुत्रियाँ थीं। एक बार गुजरात के शासक सिद्धराज जयसिंह के दरबार में अपनी पुत्रियों के साथ गया। वहाँ चारण जाति के साथ अपमानजनक व्यवहार देखकर उन लड़कियों को काफी दुःख हुआ और उन्होंने चारण जाति में विवाह नहीं करने की ठानी। एक पुत्री ने मालवान भाट के साथ किया जिससे उत्पन्न पुत्र भाट चारण कहलाया। इस विवाह सम्बन्ध के लिये यह किवदन्ती है कि भाट मालबान बड़ा गीतकार था और वह अपने गीत गाकर वाहवाही एक छ: मास के शिशु से कहला दिया करता था, और इससे चारणों की हेठी लगती थी। चारणों ने माउल से, जिसे भैरव का इष्ट था, सहायता माँगी। माउल ने भैरव से विनय की कि वह मालवान भाट को नीचा दिखावे । भैरव ने उसे वचन दिया कि अब उसी की वाहवाही होगी। तब माऊल ने सिद्धराज जयसिंह से कह दिया कि मेरे गीतों की वाहवाही खाली घड़े से करवा दूँगा जबकि मालवान एक बालक से वाहवाही कराता है। इस बात पर एक खाली घड़ा रखा गया और माऊल ने अपने रचे गीत सुनाये और तब ही घड़े से ‘वाह- वाह’ के स्वर आने लगा। भाट हार गया। अपना बदला लेने के लिए भाट माऊल को मारने गया लेकिन तब ही उसने अपना विचार बदल दिया क्योंकि तब ही माऊल अपनी पत्नी से भाट की प्रशंसा कर रहा था और कह रहा था कि भाट को हराना मामूली बात नहीं थी क्योंकि वह अच्छा गीतकार है। जब माऊल ने भाट को अपने घर में देखा तो उसने अपने आने का कारण सही-सही बतला दिया। माऊल उसकी सच्चाई व निर्भीकता से प्रसन्न हो गया और अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। इनके रीति-रिवाज़ भाटों व चारणों के समान होते हैं।”
भाट चारण समाज की कुलदेवी
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रोहरिया बारहठ शाखा कि कूलदेवी कौन है