sheetla saptami,ashtami 2024 :भारतवर्ष में शीतला सप्तमी,अष्टमी प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। यह पर्व मुख्य तौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शीतला अष्टमी को बासोड़ा (Basoda festival) के नाम से भी जाना जाता है जो इस बार 16 मार्च को मनाया जा रहा है। सबसे पहले हम जानते हैं इस बार का मुहूर्त –
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शीतला अष्टमी की पूजा का मुहूर्त (Sheetla Mata Puja Muhurat):
शीतला अष्टमी सोमवार, 2 अप्रैल 2024
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 1 अप्रैल 2024 को 21:10 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – 2 अप्रैल 2024 को प्रातः 20:10 बजे
शीतला माता का स्वरुप:
शीतला माता को चेचक रोग की देवी माना जाता है। कई स्थानों पर इस रोग को ‘माता’ कहा जाता है। ये अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। इनकी सवारी गर्दभ (गधा) है। उनके एक हाथ में ठंडे जल का कलश भी रहता है। माता को साफ-सफाई, स्वस्थता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है।
शीतला माता को मुख्य रूप से चावल और घी का भोग लगाया जाता है। मगर चावल शीतला अष्टमी से एक दिन पहले यानी सप्तमी को बना लिये जाते हैं। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए और न ही घर में खाना बनाना चाहिए। इसलिए एक दिन पहले ही यानी शीतला सप्तमी पर ही सारा खाना पका लिया जाता है। फिर यही बासी भोजन शीतला अष्टमी को ग्रहण किया जाता है।
क्या है शीतला सप्तमी ?
कहा जाता है कि शीतला माता का व्रत रखने से गर्मी के कारण होने वाले रोगों से मुक्ति मिलती है।
शीतला माता का भोग:
शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला को खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। इन्हें शीतला सप्तमी की रात को बनाया जाता है। मुख्य भोग मीठे चावल के अलावा चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी,राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी, सब्जी आदि बनाना चाहिए। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करें। रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर पूजा करें। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता।
शीतला मां की पूजा विधि (Sheetala Mata Puja Vidhi):
अब हम जानते हैं माँ शीतला की पूजा विधि। शीतला अष्टमी की एक विशेषता तो यह है कि इस दिन से गर्मी बढ़ जाती है इसलिए लोग ठंडे पानी से स्नान करना शुरू करते हैं। इसलिए सबसे पहले तो सुबह उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें। एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, होली वाली बड़कुले की एक माला व सिक्का रखें। शीतल जल का कलश भर कर रखें। पानी से बिना नमक का आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता है। पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें। दोपहर 12 बजे के करीब मां शीतला के मंदिर में जाकर या घर पर ही पूजा अर्चना करें। सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं। रोली और हल्दी से टीका करें। काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें। पूजन सामग्री अर्पित करें। बड़बुले की माला व आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करें। कपूर से आरती करें और “ऊं शीतला मात्रै नम:” इस मंत्र का पूर्ण आस्था के साथ जाप करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं,पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। मटकी की पूजा करें। बचा सारा सामान कुम्हारी को, गाय को और ब्राह्मणी को दें।
शीतला अष्टमी की कथा (Sheetala Ashtami Katha)
हिंदू धर्म में प्रसिद्ध शीतला माता की कथा के अनुसार एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। इस व्रत में बासी चावल चढ़ाए और खाए जाते हैं लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताज़ा खाना बना लिया क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए। सास को ताज़े खाने के बारे में पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई। कुछ क्षण ही गुज़रे थे कि पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई। इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।
अपने बच्चों के शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। चलते-चलते जब वे थक गईं तो बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं ने दोनों बहनों को ऐसे देखा उन्हें उन पर दया आ गई और वो उन दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला। आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए.
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने उन बहनों को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाया जाने लगा।
शीतला माता की आरती (sheetla mata aarti)
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता…
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता…
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता…
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता…
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता…
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता। जय शीतला माता…
SHREE SHITALA MATA CHALISA : श्री शीतला चालीसा in Hindi
|| दोहा ||
जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥