Navratri 2025 puja vidhi, muhurt, dates : चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म में माँ दुर्गा की आराधना के लिए अत्यंत पवित्र पर्व है। यह पर्व वसंत ऋतु में आता है और इसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और घरों में घटस्थापना की जाती है। चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि इसी समय से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसी दिन से विक्रम नवसंत्सवर 2082 की शुरुआत होगी।
चैत्र नवरात्रि 2025 की तिथियाँ और शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत 30 मार्च 2025 (रविवार) से होगी और इसका समापन 7 अप्रैल 2025 (सोमवार) को रामनवमी के दिन होगा।
घटस्थापना (कलश स्थापना) मुहूर्त 2025
- तारीख: 30 मार्च 2025 (रविवार)
- शुभ मुहूर्त: प्रातः 06:10 से 08:31 (स्थानीय पंचांग के अनुसार समय भिन्न हो सकता है)
- अभिजीत मुहूर्त: 11:59 से 12:49
क्या होता है घटस्थापना ?
घटस्थापना या कलशस्थापना पूजा नवरात्रि के मुख्य रिवाजों में से एक है। घटस्थापना नवरात्रि के नौ दिनों की शुरुआत का प्रतीक है। कलशस्थापना पूजा के द्वारा देवी शक्ति का आह्वान किया जाता है। इस पूजा के अन्तर्गत एक कलश में जौ के बीज बोये जाते हैं। यह पूजा अमावस्या के बाद प्रतिपदा को अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है।
नवरात्रि का अर्थ –
नवरात्रि में पहला शब्द ‘नव’ का अर्थ है ‘ नौ ‘ तथा रात्रि का अर्थ है ‘ रात ‘ , अर्थात नौ रातों तक मनाया जाने वाला उत्सव। इस उत्सव को ‘ दुर्गा पूजा ‘ के नाम से भी जाना जाता है। यद्यपि यह सम्पूर्ण भारतवर्ष का त्यौहार है लेकिन गुजरात व बंगाल में नवरात्रि का भव्य समारोह होता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दशहरा मनाया जाता है। इसे विजयादशमी भी कहा जाता है। नवरात्रि के इन शुभ दिनों में दुर्गा के रूप में शक्ति (Power) की पूजा की जाती है।
नवरात्रि वर्ष में दो बार क्यों?
नवरात्रि का पावन पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह (शारदीय नवरात्रि) में। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी आती है। तो आइये सबसे पहले हम जानते हैं कि नवरात्रि वर्ष में दो बार क्यों मनाई जाती है –
नवरात्रि ऐसा इकलौता उत्सव है जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र माह में जब ग्रीष्मकाल की शुरुआत होती है और दूसरा आश्विन माह में जब शीतकाल की शुरुआत होती है। गर्मी और सर्दी के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि इस दौरान फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे उत्तम माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं, इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। पहली बार इसे सत्य व धर्म की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तो वहीं दूसरी बार श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में।
नवरात्रि के नौ दिनों की देवी पूजा | Navratri 2025 Dates
- 30 मार्च 2025 : नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा होती है। (पर्वतराज हिमालय की पुत्री, शक्ति का पहला रूप)
- 31 मार्च 2025 : नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। (तपस्या और संयम की देवी)
- 1 अप्रैल 2025 : माता की तीसरी शक्ति के रूप में माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। (शौर्य और शक्ति का प्रतीक)
- 2 अप्रैल 2025 : चौथे दिन मां दुर्गा के स्वरूप देवी माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। (सृष्टि की रचनाकार)
- 3 अप्रैल 2025 : नवरात्रि के पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की पूजा की जाती है। (कार्तिकेय की माता, ज्ञान और प्रेम की देवी)
- 4 अप्रैल 2025 : नवरात्रि के दिन माता के छठे स्वरूप देवी माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। (कार्तिकेय की माता, ज्ञान और प्रेम की देवी)
- 5 अप्रैल 2025 : नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। (अंधकार और भय का नाश करने वाली)
- 6 अप्रैल 2025 : नवरात्रि के आठवें दिन देवी माँ महागौरी की पूजा की जाती है। (शांति, करुणा और सौंदर्य की देवी)
- 7 अप्रैल 2025 : नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। (सिद्धियों और मोक्ष की देवी)
Navratri Durga Puja Vidhi Video :
नवरात्रि का महत्त्व | Significance & History of Navratri in Hindi
नवरात्रि देवी दुर्गा माता को समर्पित एक पवित्र, शुभ व मंगलकारी हिन्दू पर्व है। नौ दिनों का यह त्यौहार देवी दुर्गा के प्रति भक्ति – आराधना, मनोरंजन से भरपूर डांडिया नृत्य, अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों से परिपूरित है। इन नौ दिनों में भक्त दुर्गा माता के नौ रूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महा गौरी और सिद्धिदात्री की क्रमशः पूजा करते हैं।
महिषासुर का अंत –
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महिषासुर नामक एक दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोकों को त्रस्त कर रखा था। सभी देवता मिलकर भगवान शिव के पास गए और उनसे महिषासुर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्तियों ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की जानिए कैसे पड़ा माता शक्ति का नाम दुर्गा ? जिसे देवताओं ने भी अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। जानिये कैसे प्रकट हुई महादुर्गा, कैसे मिले देवी को अस्त्र-शस्त्र। देवी दुर्गा की सुंदरता देखकर महिषासुर उन पर मोहित हो गया। वह देवी दुर्गा से विवाह करना चाहता था। माँ दुर्गा ने उसके सामने शर्त रखी की यदि वह देवी दुर्गा को युद्ध में परास्त कर देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच युद्ध शुरू हुआ जो नौ रातों तक चला और अंत में देवी ने उसका प्राणान्त कर दिया।
कन्या पूजन –
देश के कुछ स्थानों पर नवरात्रि के दौरान कन्या पूजा की जाती है। इसमें नौ बालिकाओं को देवी दुर्गा के नौ अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें उपहार दिए जाते हैं। देवी को समर्पित पर्व होने के कारण नवरात्रि के दिनों में कुछ समुदायों में महिलाओं की पूजा की जाती है।

नवरात्रि : देवी के पूजन की संक्षिप्त सरल व उचित विधि
माँ जगदम्बा अपने भक्तों का कल्याण करती है। माँ की आराधना के लिए संक्षिप्त विधि प्रस्तुत है।
सर्वप्रथम आसन पर बैठकर जल से तीन बार शुद्ध जल से आचमन करे- “ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:”
फिर हाथ में जल लेकर हाथ धो लें। हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुरि बांध कर दुर्गा देवी का ध्यान करें।
आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।
‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:।’ दुर्गादेवी-आवाहयामि! – फूल, चावल चढ़ाएं।
‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:’ आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि।– भगवती को आसन दें।
श्री दुर्गादेव्यै नम: पाद्यम, अर्ध्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। – आचमन ग्रहण करें।
श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि – दूध चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि – दही चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि – घी चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि – शहद चढा़एं
श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि – शक्कर चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी पंचामृत समर्पयामि – पंचामृत चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी गंधोदक समर्पयामि – गंध चढाएं।
श्री दुर्गा देवी शुद्धोदक स्नानम समर्पयामि – जल चढा़एं। आचमन के लिए जल लें,
श्री दुर्गा देवी वस्त्रम समर्पयामि – वस्त्र, उपवस्त्र चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी सौभाग्य सूत्रम् समर्पयामि-सौभाग्य-सूत्र चढाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै पुष्पमालाम समर्पयामि-फूल, फूलमाला, बिल्व पत्र, दुर्वा चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै नैवेद्यम निवेदयामि-इसके बाद हाथ धोकर भगवती को भोग लगाएं।
श्री दुर्गा देव्यै फलम समर्पयामि– फल चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै ताम्बूलं समर्पयामि -तांबुल (सुपारी, लौंग, इलायची) चढ़ाएं । मां दुर्गा देवी की आरती करें।
नवरात्रि का फल और लाभ
- माँ दुर्गा की कृपा से सभी प्रकार के दुख, भय और संकट दूर होते हैं।
- जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल और मन की शांति प्राप्त होती है।
- जो लोग नौ दिनों तक श्रद्धा और नियम से व्रत रखते हैं, उन्हें विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- घर में शांति, समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है।
चैत्र नवरात्रि केवल देवी पूजन का पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का समय भी है। यह वह अवसर है जब हम अपने जीवन में शक्ति, भक्ति और सकारात्मकता का संचार कर सकते हैं। माँ दुर्गा की कृपा से सभी भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता बनी रहे।
जय माता दी!
Thank You So Much
बहुत अच्छा समझाया चैत्र नवरात्रि के बारे में।