दाधीच ब्राह्मण महर्षि दधीचि के वंशज हैं। दाहिम क्षेत्र से मूल उत्पत्ति होने के कारण इन्हें दाहिमा के रूप में भी जाना जाता है। ये मारवाड़ क्षेत्र के ब्राह्मणों के छह समूहों में से एक हैं इस समूह में दाधीच के अलावा अन्य हैं -गौड़, पारीक, सारस्वत, सिखवाल और खंडेलवाल।
नीलकंठ विरचित ‘दधीच संहिता’ में वर्णित है कि ब्रह्माजी ने अथर्वण ऋषि का सृजन किया और उनका विवाह कर्दम की पुत्री शांति से कराया। इस दंपति को एक पुत्री और एक पुत्र प्राप्त हुए, जिनके नाम क्रमशः नारायणी और दधीचि रखे गए। दधीचि का जन्म भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को हुआ था, और उनका विवाह तृणबिन्दु की पुत्री वेदवती से हुआ। एक बार दधीचि की कठोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने एक अप्सरा को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। अप्सरा को देखकर ऋषि मोहित हो गए और उस समय उनका वीर्यपात होने लगा। इस पर ब्रह्माजी ने सरस्वती को वीर्य धारण करने के लिए भेजा और कहा कि यदि वीर्य धारण नहीं किया जाएगा तो पृथ्वी नष्ट हो जाएगी। सरस्वती ने तुरंत अपने योगबल से वीर्य को अपने कंठ, कान, नाभि और हृदय में धारण किया, जिससे चार पुत्र उत्पन्न हुए। कंठ से उत्पन्न पुत्र और उसके वंशज श्रीकण्ठ सारस्वत कहलाए, कर्ण से उत्पन्न पुत्र कर्णाटक सारस्वत, नाभि से उत्पन्न पुत्र सारस्वतों के अधिपति और हृदय से उत्पन्न पुत्र हरिदेव सारस्वत बने। इनके वंश को स्थायित्व प्रदान करने के बाद देवी स्वर्गलोक को चली गईं।
कण्ठे जाताश्च श्रीकण्ठाः कर्णे कर्णाटकाः स्वयम् ॥
तव नाभौ च यो जातः सारस्वतकुलाधिपः ॥
हृदिजो हरिदेवोऽस्ति सर्वे सारस्वताः स्मृताः ॥
इसके पश्चात, ऋषि दधीचि के औरस से तृणबिन्दु की पुत्री वेदवती ने पिप्पलाद ऋषि को जन्म दिया, जो एक महान तपस्वी बने। उनका विवाह अनरण्य राजा की कन्या पद्मा से हुआ। इस दंपति के बारह पुत्र हुए – बृहद्वत्स, गौतम, भार्गव, भारद्वाज, कौत्सक या कौशिक, कश्यप, शांडिल्य, अत्रि, पराशर, कपिल, गर्ग, और कनिष्ठ वत्स या मम्मा। प्रत्येक पुत्र से बारह-बारह संतानें हुईं, और इस प्रकार दधीचि का वंश विस्तार पा गया। कालांतर में इस वंश की अनेक कथाएँ प्रचलित हुईं।
अब छन्यात् अर्थात छःजात ब्राह्मणों की उत्पत्ति कहते हैं, यह गौड जाति के अन्तर्गत है ।
ब्रह्माजी के वंश में एक ब्रह्मर्षि पुत्र हुआ, जिनके वंश से पारब्रह्म, फिर पारब्रह्म से कृपाचार्य, और कृपाचार्य से दो पुत्र हुए। इनमें से छोटे पुत्र शक्ति के पराशर नामक पाँच पुत्र हुए। पराशर के वंश में पारिख, दूसरे सारस्वत, उनके वंश में सारस्वत; तीसरे ग्वाल, उनके वंशधर गौड़; चौथे गौतम, उनके वंशधर गुर्जर गौड़; और पाँचवे शृङ्गी, उनके वंश में सिखवाल ब्राह्मण हुए। दधीचि कुल में ही दायमा ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई। एक कथा के अनुसार, दधीचि ऋषि की पत्नी सत्यप्रभा ने अपने पति के परलोक गमन की सूचना सुनकर अपने गर्भ को पीपल के नीचे छोड़ दिया और स्वयं भस्म हो गईं। स्वर्ग में जाकर उन्हें बालक के लिए दया आई और उन्होंने देवी से प्रार्थना की। मूल प्रकृति ने उनके वंश में अपने पूजन का विधान स्वीकार किया और बालक की देखभाल के लिए आईं। पीपल वृक्ष के नीचे बालक की स्थिति के कारण उसका नाम पिप्पलाद पड़ा, और उसके पालन-पोषण से उस वंश के ब्राह्मण दायमा कहलाए। इन्हें कपालात्मा देवी के दर्शन करने चाहिए, जो पुष्कर से बीस कोस दूर हैं। दायमा ब्राह्मणों के ग्यारह गोत्र माध्यन्दिनी शाखा शुक्लयजुर्वेद के हैं। छन्यातों की उत्पत्ति की कथा जनश्रुति और भाटों से सुनी गई है, और इनका एक भेद असोप मारवाड़ में प्रचलित है।
दाधीच समाज के गोत्र व शाखाएं :
दाधीच ब्राह्मणों में ग्यारह गोत्र हैं जिनका नाम उन्हें ऋषियों के नामों से मिला है। ये गोत्र इस प्रकार हैं –
गौतम | वत्स | भारद्वाज |
कोच्छस | भार्गव | शाण्डिल्य |
अत्रेय | कश्यप | पाराशर |
कपिल | गर्ग |
इन गोत्रों में कई शाखाएं ( सांख / खांप ) हैं । इस ब्राह्मण समाज की खांपों के नाम राजस्थान के नागौर जिले में उनके प्राचीन गाँवों या क्षेत्रों के नाम पर रखा गया है जो कि अधिकतर ‘गोठ-मांगलोद’ गाँवों के आस-पास है। गोठ-मांगलोद में ही इस समाज की कुलदेवी दधिमथी माता का धाम है। ये शाखाएं इस प्रकार हैं –
गौतम | ||
Patodhya | Palod | Naval / Nahaval |
Bhabhda | Kumbhya | Kanth |
Khatod | Budsuna | Bagduya |
Vedvant | Vanansidra | Lelodhya / Leledha |
Kakda | Gagvani | Bhuwal |
Budadhara | ||
वत्स | ||
Mang | Koliwal | Ratava |
Baldava | Rolanya | Cholsankhya |
Jhopat | Intodhya | Polgala |
Nosara | Namaval | Kukda |
Ajmera | Avdig | Taranva |
Musya | Didel | |
भारद्वाज | ||
Pedwal | Asopa | Shukl |
Malodhya | Barmota | Indorewal |
Lyali | Karesiya | Bhatlya |
Hulsura | Solyani | Gadiya |
कोच्छस | ||
Kudal | Gothecha | Dhavdoda |
Vetaval | Jatalya | Didvaniya Tiwadi |
Mundel | Dobha Acharya | Manjabal |
Sosi | Mandolya | |
भार्गव | ||
Shilnodhya | Inaniya | Ladanva |
Jajodhya | Prathanya | Kaslya |
Badagana | Kapdodhya | Khewar |
Bisawa | Kuradaya | |
शाण्डिल्य | ||
Dahval | Bahad | Rinva |
Bediya | Gothval | |
अत्रेय | ||
Dubanya | Sukalya | Sutwal |
Jujnodhya | ||
कश्यप | ||
Dorolya | Balaya | Jamaval |
Cholkhya | Shirgota | Badwa |
Rajthala | Borayada | |
पाराशर | ||
Bheda Vyas | Parasara | |
कपिल | गर्ग | |
Chipda | Tulchya / Tulsya |
दाहिमा (दाधीच) समाज की कुलदेवी
दाहिमा (दाधीच) ब्राह्मणों की कुलदेवी दधिमथी माता है। राजस्थान के नागौर जिले की जायल तहसील में गोठ – मांगलोद गाँवो के समीप दधिमथी माता का भव्य मन्दिर विद्यमान है।
दाहिमा (दधीचक) ब्राह्मणों की कुलदेवी को समर्पित यह देव भवन भारतीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का गौरव है। श्वेत पाषाण से निर्मित यह शिखरबद्ध मंदिर पूर्वाभिमुख है तथा महामारु (Mahamaru) शैली के मंदिर का श्रेष्ठ उदाहरण है। वेदी की सादगी जंघा भाग की रथिकाओं में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, मध्य भाग में रामायण दृश्यावली एवं शिखर प्रतिहारकालीन परम्परा के अनरूप है।
Dadhich Samaj ki Kuldevi Dadhimati Mata ki jai.. Jai Dahima Samaj
nice webite we are rajput dahima now we have a village of dahima rajput its name is “khatta prahladpur” near Baghpat,Meerut,U.P STATE,INDIA