‘कुलदेवीकथामाहात्म्य’
जीणमाता
इतिहास
जीणमाता का शक्तिपीठ राजस्थान के सीकर शहर से दक्षिण-पूर्व कोण में गोरियाँ रेलवे स्टेशन व बस-स्टैण्ड से 16 कि.मी. दूर एक ओरण पर्वत में स्थित है। शक्तिपीठ उत्तर, पश्चिम और दक्षिण तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। इसका मुख्य प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में है। निज मन्दिर पश्चिमाभिमुख है।
इतिहासकारों की मान्यता के अनुसार यह पौराणिक जयन्तीमाता का शक्तिपीठ है। जयन्ती भगवती दुर्गा का ही एक नाम है। इस बारे में एक विख्यात श्लोक इस प्रकार है –
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
इतिहासकार इस शक्तिपीठ के इतिहास के प्रसंग में राजकुमारी जीण और उसके भाई घांघूनरेश हर्ष की कथा का उल्लेख करते हैं। कथा के अनुसार जीण ने यहाँ तपस्या की तथा उसके भाई हर्ष ने हर्षपर्वत पर। शक्तिपीठ में तपस्या करते-करते जीण दिव्यदेह धारण कर जयन्तीमाता के स्वरूप में समा गई। तबसे यह शक्तिपीठ जीणमाता का मन्दिर कहलाने लगा।
जीणमाता अनेक समाजों में कुलदेवी के रूप में पूजित हैं। विभिन्न समाजों के विवरण में जीणमाता का उल्लेख, जीण, जीवण और जीणाय तीन प्रकार से मिलता है। जीणमाता के लोकप्रसिद्ध लोकगीत में माता के जीण और जीवण दोनों नाम आए हैं। जैसे- (1) हरस बड़ो और छोटी जीण, (2) थारी मनायी जीवण ना मनै, (3) जुग जीवणमाता ए, (4) जुग जीण माता ए।
जीणाय शब्द जीण शब्द के साथ देवीवाचक ‘आय’ शब्द जुड़ने से बना है। इस तरह के सकराय, सच्चियाय आदि शब्द राजस्थानी भाषा में प्रयुक्त होते हैं।
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भाई-बहन के अटूट प्रेम की प्रतीक “जीणमाता” “Jeen Mata-Sikar”
अत्यन्त प्राचीन है जीणमाता का शक्तिपीठ
जीणमाता का यह शक्तिपीठ अत्यंत प्राचीन है। मूल मन्दिर की निर्माणतिथि अज्ञात है। समय-समय पर मन्दिर के परिसर में निर्माण कार्य होते रहने के कारण मन्दिर का मूल स्वरूप लुप्त हो गया है। केवल गर्भगृह एवं मण्डप अपने मूल रूप में शेष हैं। मन्दिर के जीर्णोद्धार के स्तम्भलेखों से मन्दिर की प्राचीनता का संकेत मिलता है। सारे शिलालेखों की संख्या 8 है। इनमें सबसे पुराना शिलालेख विक्रम सम्वत् 1029 का तथा सबसे बाद का वि.सं. 1699 का है। माता का श्रीविग्रह महिषमर्दिनी का है।
जीणमाता के उपासक सम्पूर्ण देश में विभिन्न प्रदेशों में बसे हैं। वे अपनी कुलदेवी के दरबार में समय-समय पर आते रहते हैं। डॉ. राघवेन्द्रसिंह मनोहर के शब्दों में – ‘उनका मन्दिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है। यों तो प्रतिदिन सैंकडों यात्री देवी के दर्शनार्थ वहाँ आते हैं, पर चैत्र और आश्विन दोनों नवरात्रों में वहाँ विशाल मेले लगते हैं। जिनमे लाखों श्रद्धालु सपरिवार विवाह की जात, बालकों के जडूले और मनोवांछित फल पाने एवं मनौतियां मनाने जीणमाता के मन्दिर में आकर अपनी श्रद्धाभक्ति निवेदित करते हैं। ‘
जीणमाता की महिमा के विषय में श्री रघुनाथप्रसाद तिवाड़ी का यह कथन उल्लेखनीय है –
‘उनके चमत्कारों की एक लम्बी कहानी है। असंख्य नर-नारी उन्हें पूजते हैं। भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
भाई-बहन की अनूठी प्रेमगाथा भक्तगण बड़ी तन्मयता से सुनते-सुनाते हैं, माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, मनौती माँगते हैं और वांछित फल पाते हैं। आज भी माता के अलौकिक चमत्कार देखे जाते हैं।’
श्री जीणमाता दुर्लभ संस्कृत कथा स्तुति
संस्कृत भाषा में रचित माँ जीण भवानी की दुर्लभ व सुन्दर कथा स्तुति की अपनी प्रति नीचे दिए गए लिंक से प्राप्त कर सकते हैं –
Shree jeen Mata shekhawato ki isht devi h ye shekhawato ki isht devi kaise bani
जय जय माता जीण भवानी यह हमारी कुलदेवी है मैं जाति से जाट हूं मेरी गोत्र जेवला है ग्राम डेठानी पोस्ट नगर तहसील मालपुरा जिला टोंक राजस्थान हाल निवासी मालपुराmo.9950734966
Jay Shree jeen mata ji ki
I am bavari jati sa hu aur hamar purvaj mata ki puja aaradana karta aaya ha ma jeen kuldavi ha
JEENMATA HAMARI KULDEVI HAI BOLO JEENMATA KI JAI