हर्षतमाता / हरसिद्ध माता (Harshat Mata/ Harsiddh Mata) का प्राचीन और कलात्मक मन्दिर आभानेरी (Abhaneri) में हैं । आभानेरी ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का स्थान है ,जो दौसा जिले में बॉदीकुई रेलवेस्टेशन से लगभग 6 कि.मी. पूर्व में अवस्थित है। यह छोटासा गाँव अत्यन्त सजीव और कलात्मक मूर्तियों के रूप में स्वर्णिम अतीत की वैभवशाली और बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को सँजोए हुए है । यह स्थल परवर्ती गुप्तकाल अथवा प्रारम्भिक मध्य्काल के दो कलात्मक और दुर्लभ ऐतिहासिक स्मारकों-हर्षतमाता का मन्दिर और चाँद बावड़ी के कारण प्रसिद्ध है । आभानेरी से प्रायः सभी प्रमुख हिन्दू देवी-देवताओं, यक्ष-यक्षणियों, नाग-नागिन तथा प्रेम और श्रृंगार नृत्य व संगीत का आनन्द लेते नायक-नायिका सहित धर्मिक, लौकिक और अन्य विविध विषयों से सम्बन्धित सुन्दर और कलात्मक मूर्तियाँ बड़ी संख्या में मिली हैं । यहाँ तथा देश -विदेश के अनेक संग्रहालयों में सुरक्षित ये प्रतिमाएँ भारतीय कला के उत्कृष्ट स्वरूप का प्रदर्शन करती हैं।
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अनुमानतः 8वीं-9वीं शताब्दी ई. में निर्मित आभानेरी की इन भव्य और सजीव प्रतिमाओं का सम्बन्ध इस क्षेत्र के गुर्जर-प्रतिहार शासकों से था । गुर्जर-प्रतिहार राजवंश पूर्व मध्यकाल का एक महत्वपूर्ण राजवंश था । इस वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासक नागभट्ट प्रथम (725-740 ई.), वत्सराज (775-800 ई.), नागभट्ट द्वितीय (800-837 ई.) और महिरभोज प्रथम (836-885 ई.) थे । गुप्त शासकों और हर्षवर्धन के बाद प्रतिहारों ने उत्तर भारत के बहुत बड़े भू-भाग को राजनैतिक एकता के सूत्र में आबद्ध रखा तथा उनके संरक्षण में भारतीय कला और संस्कृति ने समृद्धि और विकास पाया । राजस्थान में ओसियाँ, जगत, आभानेरी, चन्द्रावती, झालरापाटन आदि स्थानों से प्रतिहार मन्दिर और मूर्तियाँ बहुसंख्या में प्राप्त हुई हैं ।
प्रतिहार कलाकारों ने गुप्त मूर्तिकला की सामान्य विशेषताओं का पालन किया, यथा- स्वाभाविक और मृदु शरीर मूर्तिकला रचना, भावों की सहज अभिव्यक्ति, सयंतवस्त्राभूषण इत्यादि । मध्यकालीन भारतीय मूर्तिकला नामक ग्रन्थ में इस आशय का उल्लेख है – गुर्जर – प्रतिहार शैली का उत्कर्ष काल आठवीं-नवीं शताब्दी ई. रहा है और इस अवधि में कला की दृष्टि से श्रेष्ठतम प्रतिहार मूर्तियाँ बानी, जिसमें आभानेरी प्रमुख है । जनश्रुति है कि प्राचीनकाल में इसे अभयनगरी (जहाँ के निवासी सदैव निर्भर रहते हैं) कहकर सम्बोधित किया जाता था इसका सम्बन्ध किन्हीं राजा भोज से बताया जाता है ।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार आभानेरी निकुम्भ चौहानों की राजधानी थी । बाद में उनके द्वारा अलवर की स्थापना की गई । इस सम्बन्ध में एक मान्यता यह भी है कि इसका आभानेरी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ के प्रसिद्ध हर्षतमाता के मन्दिर की आराध्य देवी प्रसन्न मुद्रा में प्रतिस्थापित थी । जिनकी आभा से सुवासित यह प्रदेश आभानेरी कहलाया । स्थानीय निवासियों के अनुसार यहाँ के प्रसिद्ध राजा चन्द ने यह गाँव बसाया । भव्य कुण्ड, चाँद बावड़ी का निर्माण इसी राजा के द्वारा करवाया गया । उसी के नाम पर यह कुण्ड चांद बावड़ी कहलाया । इस मन्दिर के निर्माता का नाम ज्ञात तो नहीं है लेकिन यह उस युग में शक्ति सम्प्रदाय के गढ़ के रूप में विख्यात था ।
इस मन्दिर के भीतर प्रतिष्ठापित देवी हर्षतमाता का प्राचीन नाम हरसिद्धिमाता था , जिसका प्राचीन गुजराती और राजस्थानी साहित्य में प्रचुरता से उल्लेख हुआ है । कालांतर में हरसिद्धिमता का अपभ्रंश हर्षतमाता हो गया तथा लोकमानस में वे इसी नाम से लोकप्रिय हुईं । हर्षतमाता मन्दिर का निर्माण काल आठवीं-नवीं शताब्दी ई. अनुमानित किया जाता है । मन्दिर की प्रमुख ताकों (आलों) में वासुदेव-विष्णु, बलराम संकर्षण की प्रतिमाओं के प्रतिष्ठापित होने से इसका मूलतः विष्णु मन्दिर होना सम्भावित लगता है ।
डॉ.नीलिमा विशिष्ट के अनुसार वर्तमान हर्षतमाता मन्दिर प्राचीन मन्दिर के अवशेषों से पूर्ण निर्मित हुआ जान पड़ता है । हर्षतमाता मन्दिर एक विशालकाय ऊँचे चबूतरे पर बना है, जिसके तीन पदक्षिणापत एवं तीन सोपानश्रेणियाँ हैं । मुख्य मन्दिर और मण्डप की तीन बार प्रदक्षिणा की जा सकती है । इनमे उद्यान और आम की झुकी डालियों के बीच प्रणय , संगीत एवं नृत्य में रत प्रेमी-प्रेमिका ,अर्धनारीश्वर , नाग व नागिनी प्रेमालाप की विभन्न अवस्थाओं में प्रेमी युगल नृत्य करते शिव और भैरव ,यक्ष- यक्षिणियाँ , शेषासीन विष्णु, श्रृंगार करती नायिका शिव-पार्वती ,समुद्र मन्थन आदि अन्यान्य विषयों से सम्बन्धित प्रतिमाएँ प्रमुख हैं । आभानेरी की मूर्तियों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वहाँ महिषमर्दिनी दुर्गा के विभिन्न रूपों का सुन्दर और सजीव अंकन हुआ है । स्वरूप देवी महिषासुर का वध करते हुए प्रदर्शित की गई है तो अन्यत्र में वे अपना श्रृंगार करने में व्यस्त है । आम्बेर संग्रहालय में एक श्रृंगार में तल्लीन देवी दुर्गा का एक ऐसा ही स्वरूप (263/59) विद्यमान है जिसमें दश भुजी देवी दर्पण अपने को निहारती हुई सीमन्त सिन्दूर लगाने तथा अपने अपने पैरों के नुपुर ठीक करने में व्यस्त है तथा उनका वाहन सिंह चुपचाप बायीं ओर बैठा है । उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि 11वीं शताब्दी ई. के लगभग आभानेरी को मुस्लिम आक्रान्ताओं का कोपभाजन बनना पड़ा और इसका कलात्मक वैभव धूल धूसरित हो गया ।
वर्तमान में हर्षतमाता का मन्दिर भग्न और वीरान अवस्था में हैं । हर्षतमाता का प्राचीन मूल प्रतिमा जो स्थानीय निवासियों के अनुसार नीलम की बनी तथा बहुमूल्य होने के अलावा बहुत सजीव और कलात्मक थी, कुछ वर्षों पूर्व चोरी जा चुकी है । मन्दिर के आस पास बिखरी खण्डित प्रतिमायें जहाँ इस अनमोल कला सम्पदा के विनाश की कहानी कहती हैं वहीँ कला की दृष्टि से उत्कृष्ट ये सजीव प्रतिमायें अपने खण्डित रूप में भी सुन्दर और आकर्षक लगती हैं तथा आभानेरी और हर्षतमाता के मन्दिर के विगत वैभव की झलक प्रस्तुत करती है ।
आभानेरी की चांद बावड़ी भी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है । यह हर्षतमाता मन्दिर से लगभग 200 गज की दूरी पर अवस्थित है । उत्तराभिमुख प्रवेश द्वार वाली बावड़ी के भीतर तीन तरफ सीढ़ीनुमा चौके जड़े हुए हैं । सामने की तरफ सुन्दर झरोखों से युक्त बरामदे एवं कक्ष बने हुए हैं । झरोखों के पार्श्व में गणेश जी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है । चांद बावड़ी के प्रांगण में अनेक सुन्दर मूर्तियाँ रखी है जिनमें हनुमान, गणेश, दुर्गा महिषासुर मर्दिनी, सिंह शावक तथा लौकिक और पारलौकिक विषयों से सम्बन्धित प्रतिमाएँ हैं । एक स्वरूप में देवी असुरों का संहार करते हुए प्रदर्शित है ।
आभानेरी से प्राप्त कुछ सजीव प्रतिमायें पुरातत्व विभाग के आम्बेर संग्रहालय जो कि वहाँ दिलआराम के बाग़ में स्थित है में प्रदर्शित की गई हैं । इनमें कुबेर गणेश साथ लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, स्थानक पुरुष , चतुर्भुज विष्णु, परिचारकों सहित सूर्य, प्रमाण मुद्रा में नाग आकृतियाँ, कुश्ती लड़ते हुए पुरुष युगल, उपासकगण, दीवारगीर, मिथुन आकृतियाँ, कीचक, लक्ष्मीनारायण मातृदेवी, कीर्तिमुख और मकर आकृति, व्याघ्र आकृति और घटाकार परनाले प्रमुख हैं । देवी महात्म्य में वर्णित महिषासुर मर्दिनी की कथा को मूर्त रूप में प्रस्तुत करता अत्यन्त सुन्दर उदाहरण आभानेरी के हर्षतमाता प्राप्त हुआ है । आम्बेर संग्रहालय में सुरक्षित इस मूर्ति में देवी चार भुजाओं से युक्त है तथा दाहिने हाथ में त्रिशूल द्वारा महिर्ष पर आक्रमण करती हुई तथा बाएँ हाथ में अर्ध निष्क्रान्त असुर की गर्दन मरोड़ती हुई अंकित की गई है ।
Harshat Mata ki Jai…. Harsiddh Mata ki Jai… Jai ho Abhaneri ki Harshat Mata.. Sab pr Kripa karo Mata Rani… sa par Daya karne vali meri maa
CHHUTTAN LAL MEENA ladli ka bas dausa class 12th Rajasthan