बीजासणी खुर्रा माता का मन्दिर राजस्थान में दौसा जिले के लालसोट से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मण्डावरी / मंदवारी से 3 किलोमीटर दक्षिण में स्थित खुर्रा गाँव में है। यह देवी मीणा समाज के डाडरवाल (Dadarwal) व मांदड (Mandad) गोत्र की कुलदेवी है तथा स्थानीय सर्व जन आस्था का केंद्र है।
डॉ. रघुनाथ प्रसाद तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘मीणा समाज की कुलदेवियाँ’ में खुर्रा माता के बारे में इस प्रकार विवरण दिया है “अनेकानेक माताओं को जिस ग्राम या शहर में माता का मंदिर है,उसी ग्राम या शहर के नाम से वह माता पूजी जाती है भले ही उसका स्वरूप मानवीय हो अथवा पौराणिक। ऐसे ही एक माता जो मानवीय थी जिसके पिता का नाम भौमसिंह बन्जारा तथा माता का नाम भूरी बंजारी बताया जाता है की पुत्री जो सदा ईश्वर भक्ति में लीन रहती थी बीजक (बिजासन) माता के रूप में ग्राम खुर्रा में जानी जाने लगी। स्मरणीय है, पुराने समय में जब बंजारे व्यापार हेतु अपनी बालद लेकर जाते थे तो एकत्रित धन को सुरक्षा की दृष्टि से किसी गुप्त स्थान, कुएँ, बावड़ी आदि में रख देते थे तथा वह धन कहाँ छिपाकर रख गया है उसकी जानकारी हेतु पास ही किसी पत्थर की चट्टान या फिर किसी कुएँ या बावड़ी पर पत्थर पर कूट भाषा (ज्ञान सामान्य के समझ में न आने वाली भाषा लिखावट) में जिसको वे या उसकी संतान ही समझ सकती थी, मय माल असबाब की सूची के जिसमें माल का ब्यौरा,मूल्य,दर आदि अंकित होते थे,(जिसे बीजक कहा जाता है), रख देते थे, तथा वापिस आने पर अथवा आवश्यकता पड़ने पर उस धन को निकाल लेते थे। आज भी अनेकानेक स्थानों पर कुएं,बावड़ी,पहाड़ी की चोटी पर कूट भाषा में लिखित बीजक देखे जाते हैं।
उसी बीजक के नाम के आधार पर माता बिजासन माता जो वस्तुतः जो बीजक के रूप में पूजी जाती है। माता का यह मंदिर ग्राम खुर्रा जो दौसा से गंगापुर रोड वाया लालसोट-मण्डावरी से 3 कि.मी. दक्षिण की ओर है, पर अवस्थित है। माता का विग्रह सिन्दूर चर्चित है। माता अपने दोनों हाथों से धन की वर्षा करती हुई है।
इस माता की स्थापना लगभग 943 वर्ष पूर्व होना बताया जाता है। सच्चे मन से माता की आराधना करने पर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है ऐसा माता के भक्तों का मानना है। जन श्रुति है कि ग्राम खुर्रा में अभी तक किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना घटित नहीं हुई है।
माता की पूजा पहले मीना समाज के व्यक्ति करते थे अब मीणा समाज का राणा (ढोली) पूजा करता है। उसके योग-क्षेम की व्यवस्था माता को जो भेट स्वरूप राशि भक्त अर्पित करते है उसी से होती है। मंदिर परिसर 4 विस्वा में बताया जाता है। मंदिर परिसर में भैरव जी,लांगूरिया व प्रेतराज की प्रतिमायें भी है। मंदिर के पास ही जल की तलाई है। माता के सात्विक पुवा,पूड़ी,पतासा,नारियल,मिठाई आदि का भोग लगता है। मंदिर में वर्तमान स्वरूप का निर्माण माता के भक्त श्री रामरतन जोशी लालसोट ने सन् 1994 में कराया था। मंदिर का निर्माण कार्य चालू है जो जन सहयोग से करवाया जा रहा है। मंदिर परिसर में 60×60 फिट की छावनदार यज्ञशाला है।
यह माता डाडरवाल (Dadarwal) व मांदड (Mandad) गौत्र के मीणाओं (Meena Samaj) के अतिरिक्त सर्व समाज द्वारा भी पूजी जाती है।
माता के अन्य मंदिर इन्दरगढ (बूंदी) खोरी (कैलादेवी के पास),करणपुर (मण्डरायल) व माउन्टआबू में भी बताये जाते हैं।”
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