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Vamana Dwadashi | वामन द्वादशी का महत्त्व, व्रत कथा, पूजा विधि व मुहूर्त

Vamana Dwadashi Details in Hindi : चैत्र तथा भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी मनाई जाती है। श्रीमद्भगवदपुराण के अनुसार उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में भाद्रपद माह में इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवान विष्णु का वामन अवतार हुआ था। विष्णु जी के दस अवतारों में से वामन उनका एक अवतार है और ऐसी मान्यता है इनके इस रूप की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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श्री विष्णु ने भाद्रपद मास की द्वादशी को वामन अवतार लिया था इसलिए भाद्रपद मास में वामन जयंती मनाई जाती है किन्तु चैत्र के पवित्र माह में भी वामन द्वादशी का यह पर्व मनाया जाता है। विष्णु जी के इस रूप को दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सभी भक्त इस पवित्र व्रत को रखकर भगवान श्री हरी के इस अवतार की उपासना करते हैं। आइए जानते है क्या है इस व्रत से जुड़ी कथा, महत्व और विधि-

व्रत कथा | Vamana Dwadashi Vrat Katha :

पवित्र हिन्दू ग्रन्थ श्री भगवत पुराण के अनुसार जब राजा बलि ने अपने पराक्रम से समस्त देवताओं को पराजित कर दिया तो सभी देवता भय के कारण छिप कर रहने लगे। तब देवताओं की माता अदिति ने भगवान विष्णु की उपासना कर पयोव्रत रखा इसका अर्थ है बारह दिन उन्होंने केवल दूध पिया। उनकी भक्ति से श्री हरी अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिया। भगवान ने माता अदिति को वरदान स्वरुप उनके पति ऋषि कश्यप द्वारा गर्भवती होने का आशीर्वाद दिया और उनसे ये भी कहा कि स्वयं भगवान विष्णु उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि श्री हरी ही उस बालक की रक्षा करेंगे। विष्णु जी ने अदिति से इस बात को किसी से भी न कहने के लिए कहा और अंर्तध्यान हो गए।

भगवान के आशीर्वाद से अदिति को पुत्र की प्राप्ति हुई। जिस समय भगवान नें जन्म लिया उस समय चंद्रमा श्रावण नक्षत्र में था और भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी। उस समय को विजया द्वादशी भी कहतें है। विष्णु जी अदिति को अपनें वरदान की याद दिलानें के लिए उनके सामनें असली रुप में प्रकट हुए जो कि चार भुजाओं में से एक में शंख, दूसरें में चक्र, तीसरें में गदा और चौथी भुजा में कमल धारण किए हुए थे। कश्यप और अदिति को देखतें-देखतें भगवान नें वामन का अवतार धारण कर लिया। वामन अवतार में भगवान को यज्ञोपवीत, प्रथ्वी ने कृष्ण मृग का चर्म, चंद्रमा नंस दण्ड, माता अदिति नें कोपीन और कटि वस्त्र, ब्रह्मा जी नें कमण्डल, सप्त श्रृषि नें कुश, और सरस्वती नें रुद्राक्ष की माला धारण कराई और जगत जननी माता भगवती नें उनको भिक्षा दी। इसी कारण इस तिथि को वामन द्वादशी कहा जाता है।

वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं। वामन अवतार राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं। बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, विष्णु को तीन पग भूमि दान देते हैं। भगवान एक पग में स्वर्ग व दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि वामन के तीसरा पैर रखने के लिए स्थान कहाँ से लाये। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर माँगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन माँग लेता है, श्रीविष्णु अपना वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।

वामन द्वादशी पूजा विधि | Vamana Dwadashi Puja Vidhi :

इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन को पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात् चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है।

सबसे पहले पूर्व की ओर हरे वस्त्र पर वामन देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। फिर विधिवत दशोपचार पूजन करें। कांसे के दिए में शुद्ध देसी घी का दीप जलाएं, चंदन लगाएं, तुलसी पत्र चढ़ाएं, रक्त चंदन चढ़ाएं, मौसम्बी का फलहार चढ़ाएं, और मिश्री का भोग लगाएं। तत्पश्चात रुद्राक्ष माला से इस विशेष मंत्र “ॐ तप रूपाय विद्महे श्रृष्टिकर्ताय धीमहि तन्नो वामन प्रचोदयात्” का 1 माला जाप करें। संध्या के समय व्रती को भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन चावल और दही सहित चांदी का दान करने का विशेष विधि-विधान है। >इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

वामन द्वादशी का महत्त्व : Significance of Vamana Dwadashi in Hindi :

ऐसी मान्यता है कि वामन द्वादशी पर पूजा करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है। साथ ही इस पूजा से काम या व्यापार में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती है। इसके अलावा अगर आप भगवान वामन को अर्पित किया हुआ शहद का सेवन प्रतिदिन करेंगे तो आप हर रोग से मुक्त हो जाएंगे। वामन द्वादशी के विशेष पूजन, व्रत व उपाय से निरोगी काया प्राप्त होती है, व्यावसायिक सफलता मिलती है व पारिवारिक कटुता दूर होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर इस दिन श्रावण नक्षत्र हो तो इस व्रत की महत्ता और भी बढ़ जाती है। भक्तों को इस दिन उपवास करके वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए।  जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था।  विधि-विधान पूर्वक व्रत करने से सुख, आनंद, मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

पूजन मुहूर्त: | Vamana Dwadashi Puja Muhurt :

प्रातः 09:25 से प्रातः 10:25 तक।
पूजन मंत्र: ॐ तप रूपाय विद्महे श्रृष्टिकर्ताय धीमहि तन्नो वामन प्रचोदयात्।

उपाय | Solutions :

निरोगी काया हेतु भगवान वामन पर चढ़े शहद का नित्य सेवन करें।

पारिवारिक कटुता से मुक्ति हेतु वामानवतार पर कांसे के दीये में घी का बारहमुखी दीपक करें।

व्यावसायिक सफलता हेतु नारियल पर यज्ञोपवीत लपेटकर भगवान वामन के निमित चढ़ाएं।

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