Kharol Samaj in Hindi: डॉ कैलाशनाथ व्यास व देवेंद्रसिंह गहलोत द्वारा रचित पुस्तक ‘राजस्थान की जातियों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन’ में खारोल जाति का वर्णन इस प्रकार किया गया है ‘
खारोल जाति हिन्दु धर्मावलम्बी हैं जिनका मुख्य व्यवसाय नमक बनाना है। राजस्थान के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में इनका नाम नूनिया है। यह जाति व्यवसाय प्रधान है न कि जाति प्रधान।
खारोल जाति की उत्पत्ति:-
खारोल जाति की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि एक समय एक राजा शिकार के लिए गया। वहाँ पर उसके साथी ने सफेद जमीन देखी और खुरेद कर चखा तो खारी महसूम हुई उससे अपने राजा के भोजन में उसे डाला तो राजा को भी भोजन अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट लगा। राजा ने उस साथी का नाम खारोत रखा और ऐसे खार से नमक बनाने का आदेश दिया। उसी दिन से खारोल कौम की उत्पत्ति हुई। इस जाति के लोगों का यह भी कहना है कि वे प्राम्प में राजपूत थे। राजपूत लोग नमक बनाने का व्यवसाय करने लग गये।
खारोल समाज के वंश :-
इनके वंशों के नाम राजपूत वंशों से मिलते हैं जो निम्नलिखित हैं-
- सोनगरा
- हाडा
- चौहान
- राठौड़
- भाछलिया
- गामती
- सीसोदिया
- हदावत
- पंवार आदि
खारोल जाति अपना मूल निवास स्थान दिल्ली बताती है जहाँ से अजमेर आये और अजमेर से मेवाड़ गये और खाली जमीनों में नमक बनाने लगे। वहीं से मारवाड़ में आये। इस प्रकार खारोल जाति अधिकांशत: जहाँ पर नमक की खाने पायी गयी उसके आस-पास जाकर बस गयी और वहाँ पर नमक बनाने का मुख्य व्यवसाय अपनाया है।
खारोल जाति की कुलदेवी :-
खारोल जाति शक्ति के उपासक है। मोरन माता, संभरा माता, अंबाजी आदि की पूजा करते हैं। खारोल जाति के वंश सोनगरा, हाडा, चौहान में अन्तर्विवाह नहीं करते हैं बाकी सभी वंशों में परस्पर अन्तर्विवाह करते हैं। इनमें मदिरा एवं मास का सेवन किया जाता है। विवाह सम्बन्ध एवं नाता से सिर्फ पिता का गौत्र छोड़ा जाता है अन्यथा सासु और बहू एक ही पिता वी बेटी हो सकती है। इनमें नाता प्रथा प्रचलित है। मुर्दों को जलाते हैं मगर जो खारोल आईजी के डोरे बन्द हो उनको गाड़ते हैं। अन्य हिन्दू जातियों की प्रथाओं से खारोल जाति की विवाह सम्बन्धी प्रथा भिन्न है क्योंकि इनमें सास एवं बहू एक ही पिता की हो सकती है। अन्य हिन्दू जातियों में ऐसी प्रथा नहीं है।